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जो ग्रहण करना हो वह करे, सबकी योग्यता पर आधारित है।
... उस ओरकी अपेक्षा लेनी हो तो वैसे ले, ऐसी अपेक्षा लेनी हो तो ऐसे ले। जीव अनादि कालसे ऐसे ही समझता नहीं है। निश्चय-व्यवहारकी सन्धि आती नहीं। .. अथवा तो सन्धि आती नहीं। उसका अर्थ कैसे करना वह आना चाहिये। परके साथ एकत्व नहीं होता है, लेकिन परको नहीं जानता है इसलिये परका ज्ञान ही नहीं होता है, ऐसा नहीं है। ज्ञेयको जानता नहीं है तो उसका ज्ञान .. हो गया। ऐसा हो गया। ज्ञानकी अनन्तता कहाँ रही? उसमें प्रवेश करके नहीं जानता है। अपेक्षा समझनी। जैसे चलता है चलने दो, सबकी योग्यता।
... पडते नहीं थे। बहुत लोग चर्चा-प्रश्न करो, चर्चा-प्रश्न करो। गुरुदेव कहते थे, वह मेरा काम नहीं है। किसीके साथ चर्चा-प्रश्न करते ही नहीं थे। जयपुरमें की, सब पण्डितोंने की। बहुत पहलू हैं। गुरुदेव चर्चा-प्रश्नमें नहीं पडते थे। वह कहे, व्यवहारसे ऐसा तो है। एकदूसरेका खीँचते थे, उसमें कहाँसे सन्धि हो? दोनों बात अपेक्षासे होती है, उसमें वह एक बातको खीँचे, दूसरा दूसरी बातको खीँचे। मेल कहाँसे हो?