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है। किसीको कहाँ रुचि लगती है, किसीको कहाँ रुचि लगती है। ... चढ जाय और आत्मार्थीता गौण हो जाय।
मुमुक्षुः- यहाँ आनेसे सामान्य पाप भी पुण्यमें परिणमित हो जाते हैं, तो आपका स्वास्थ्य... आप तो ज्ञानी हैं। आपको तकलीफ रहे, आश्चर्य लगता है। हमें ऐसा लगता है, हमें बहुत लाभका कारण है। गुरुदेवकी अनुपस्थितिमें हमें (आपके समागमसे) कितना आनन्द होता है। वह कोई हाथकी बात नहीं है, गुरुदेव कहते थे न, वह हाथकी बात नहीं है। शरीरके कार्य शरीर (करता है)। स्वतंत्र होते हैं, अपने हाथकी बात नहीं है।
मुमुक्षुः- सबको आपकी वाणी पाँच-पाँच मिनिट मिले तो भी बहुत... बहुत विरह लगता है।
समाधानः- उनकी तो बात अलग थी, मैं तो उनका दास हूँ। अपने हाथकी बात नहीं है। शरीरकी क्रियाएँ स्वतंत्र हैं।