३९६ आनन्दगुण आदि सबका, द्रव्य-गुण-पर्याय सबको जानता है। और दृष्टि शाश्वत ध्रुवरूप द्रव्य (पर है)। चैतन्यकी सब बातें कोई अद्भूत है। गुरुदेवने अद्भूत मार्ग प्रकाशित किया है। बाकी नर्क, स्वर्गका मैं कुछ विस्तारसे नहीं कहती हूँ। परन्तु जगतमें सब यथार्थ है। वह सब क्षेत्र है, सब है।
मुमुक्षुः- बचपनमें कहती थी कि मैं वहाँ बकरी थी। मैंने देखा है, .. था, ऐसे देव थे, ऐसा चँवर ढालते थे, ऐसी आवाज आती थी। दूसरा कुछ ज्यादा याद नहीं है, परन्तु समवसरणका वर्णन किया।
समाधानः- समवसरणका?
मुमुक्षुः- हाँ, मैं समवसरणको गप समझता था, इतना सब वर्णन जैनियोंने अधिकताके लिये ही किया होगा। फिर विश्वास आ गया। यहाँ आनेसे भी सभी बातों पर बहुत विश्वास हो गया। कोई इन्द्र ऊतरकर समझाये तो भी समझे नहीं, कहाँ अटकते हैं, यह समझमें नहीं आता है। या फिर धारणाज्ञानमें..
समाधानः- समवसरणमें भगवान विराजते हैं। समवसरणमें दिव्यध्वनि छूटती है। मुनिओं, गणधर सब सभामें (आते हैं)। बकरी थी?
मुमुक्षुः- हाँ, स्पष्ट बात की और बहुत सुन्दर रूपसे वर्णन किया। मुमुक्षुः- सात सालकी छोटी थी। ... श्रीमद राजचंद्रका मन्दिर है, वहाँ १५- १५ दिन रहते थे। वह भक्ति करती थी, वहाँ ऐसा फोटो था, तो कहा, यह तो मैंने देखा है। मैं बडे जंगलमें रहती थी। मैं बकरी थी। दूसरे बच्चे उसे चिठाने लगे कि बकरी.. बकरी। तब हमें मालूम पडा कि यह बकरी-बकरी क्यों कहते हैं? तब उसने कहा कि, मैंने यह सब देखा है। घुमा-घुमाकर डाक्टर टी. वी. शाह थे उस वक्त पूछा था।
मुमुक्षुः- बकरीका भव था इसलिये ज्यादा... वह छोटी थी, ऐसा कहती है, मेरे बगलमें बडी बकरी थी। फिर ऐसी बात कही कि, बाघ, सिंह, हाथी भी देखा, सब बोलने लगी। इसलिये मुझे आश्चर्य हुआ कि यह बकरीके बगलमें बाघ, यह क्या कहती है? लेकिन सब वर्णन किया। तबसे एकदम विश्वास आ गया कि, यह बा सत्य है। समवसरणमें सब जीव जाते हैं, बाघ, बकरी आदि। सब गजब बातें की। लेकिन इतना समवसरण ही, फिर कहाँ गयी, क्या हुआ, वह कोई बात नहीं।
समाधानः- कहीं भी अटक जाता है। आत्माकी ओरका पुरुषार्थ चलता नहीं। उसे जहाँ रुचि होती है, वहाँ अटक जाता है। आत्माकी रुचि करने जैसी है। आत्मार्थताकी मुख्यता रखने जैसी है। बाकी कहीं भी अटक जाता है, उसे जहाँ रुचि होती है वहाँ। कोई प्रमादमें, अनेक जातके विकल्पोंमें, अनेक जातके विचारोंमें कहीं भी अटक जाता