Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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अभी केवलज्ञान नहीं हुआ है। केवलज्ञान हो तो अन्दर शाश्वत विराजते हों। आत्माका आनन्द और ज्ञानादि अनन्त गुणोंमें विराजते हों। परन्तु बाहर आते हैं तब विकल्प उत्पन्न होता है। विकल्पमें मुनिओंको एक देव-गुरु-शास्त्रका विकल्प (उत्पन्न होता है)। दूसरे विकल्प तो उन्हें (होते नहीं), कोई बार आहारका विकल्प आता है। दूसरे कोई विकल्प उन्हें (नहीं आते)। एकदम अल्प अस्थिरता है, संज्वलनका अल्प कषाय है, दूसरा कुछ नहीं है। विकल्प आता है तो उन्हें शुभ आता है, इसलिये शास्त्र लिखनेका विकल्प (आता है), मुनिओं जंगलमें बैठे हों, शास्त्रका विकल्प आता है। विकल्प आये तो लिखते हैं, वापस अन्दर स्थिर हो जाते हैं। स्थिर होनेके बाद बाहर आकर तो लिखते हैं। बाहर आते हैं उतना अधूरापन है।

केवलज्ञान हुआ हो तो कोई विकल्प नहीं है। केवलज्ञान नहीं है इसलिये बाहर आते हैं, विकल्प आता है इसलिये लिखते हैं। अमृतचन्द्राचार्य कहते हैं, "मम परमविशुद्धिः शुद्धचिन्मात्रमूर्ते' मेरी विशुद्धके लिये मैं यह शास्त्र लिखता हूँ। ऐसा प्रशस्त विकल्प आता है।

मुमुक्षुः- महाविदेह क्षेत्रका भी मुझे आपके कारण ही विश्वास हुआ। नहीं तो इस जमानेमें कौन मानता है? पृथ्वी ऐसी है। आपने, पूज्य गुरुदेवने जो बातें कही, बहुत अद्भूत बातें लगती हैं। अद्भूत-अद्भूत बातें लगती है।

समाधानः- अभी तो सब मतिकल्पनासे कुछ है ही नहीं, ऐसा कहते हैं। महाविदेह है, भगवान है, सब है। सीमंधर भगवान विराजते हैं, दिव्यध्वनि छूटती है, समवसरण है, सब है।

मुमुक्षुः- देवके भवमें आपने अवधिज्ञानसे नर्कके भी दुःख देखे होंगे, यह आपको याद है? उसे देखें तो हार्ट फेईल हो जाय, ऐसी बात है।

समाधानः- सब है, नर्क-स्वर्ग सब है। ज्ञान ऐसा है कि उसमें सब आ जाता है। सब आ सकता है। और वह सब यथार्थ है और इस जगतमें सब है। नर्क है, स्वर्ग है, महाविदेह है, सीमंधर भगवान हैं, दिव्यध्वनि छूटती है, सब है।

मुमुक्षुः- बहुत गजब है! आनन्द.. आनन्द.. आनन्द हो जाता है। स्वसंवेदनकी पर्याय भी स्वयंका लक्ष्य नहीं करती और मैं ध्रुव हूँ, ऐसा... पर्याय स्वयं अपना निषेध करे ऐसी अटपटी बातें तो गजब बातें लगती है। ध्रुव तो कूटस्थ ध्रुव है।

समाधानः- स्वयं ज्ञायकरूप ध्रुव है। ज्ञानमें सब जानता है, वेदनमें उसे सब आता है। स्वानुभूतिका वेदन होता है, ज्ञानमें आता है और ध्रुव एक स्वयं पारिणामिकभावस्वरूप पर दृष्टि है। सब साथमें वर्तता है। प्रत्येक गुण आत्माके... दृष्टि द्रव्य पर है, ज्ञानमें ज्ञात हो रहा है, सबका वेदन हो रहा है। अनन्त गुणोंका वेदन,