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मुमुक्षुः- नहीं, नहीं। पहले समझेंगे ना। पहले समझेंगे फिर करेंगे। समझेंगे तब तो विचार आयेंगे।
समाधानः- समझे तो आये। बिना समझे तो कुछ समझमें नहीं आता, ऐसा हो जायेगा। उसकी रुचि, महिमा आवे। पहचान करे, ऐसा प्रयत्न करना। भेदज्ञान साथ- साथ करे, उसमें देर लगे तो भी उतावली नहीं करना।
मुमुक्षुः- एक तो मैं श्वेतांबर मतसे निकली, एक तो भाषा यहाँकी सब नयी है। द्रव्य-गुण-पर्याय, हमारा सुना हुआ नहीं है। मेरेको घरमें बोलते हैं, क्या सुनती है? कुछ समझमें नहीं आता था। लेकिन इतना अच्छा लगता है। छः महिने कुछ पल्ले नहीं पडा। मैंने कहा, क्यों नहीं आयेगा?
समाधानः- पहले ऐसा लगा, द्रव्य-गुण-पर्यायकी बात कोई अलग ही दुनियाकी बात है। जब समझता जाय, तब महिमा आती जाय।
मुमुक्षुः- ज्ञेय-ज्ञायक पुस्तक मेरेको बहुत अच्छी लगी, बहुत ही अच्छी लगी थी। पीछेके प्रकरण, वस्तुविज्ञानसार, मेरेको उससे बहुत महिमा आयी। पहले तो समझमें नहीं आया। अभी एक-दो महिनेसे चालू किया है। ज्यादा पढ नहीं सकती, देढ- दो पेज ही पढती हूँ, फिर विचारती हूँ।
समाधानः- ऐसे समझन यथार्थ होवे तब ख्यालमें आयेगा कि कैसे करुँ? कैसे भेदज्ञान? कैसे ध्यान? यह सब बादमें जब समझमें आता है तब ख्यालमें आता है। समझे बिना चलने लगे तो दूसरा मार्ग आ जाता है। भावनगर कैसे जाना? क्या मार्ग है? पहले मार्ग जान लेना चाहिये, फिर चलने लगे तो यथार्थ मार्ग पर चले।
मुमुक्षुः- नहीं, नहीं। जबही तो हम यहाँ आये हैं। जबही तो हम यहाँ आये हैं। हमने थोडे ही सुना है, हमने तो स्वामीजीका नाम भी सुना दो साल पहले। पुस्तक पढे, बात दिमागमें लगने लगी कि सही है। मन तो कहता है, सही है। अब तरीका भी तो मालूम होना चाहिये न? कि किस तरीकेसे अब हम आगे अभ्यास करे? बात तो पक्की बैठ गयी। बात तो ऐसी ही है। अब मार्गमें हम आगे कैसे चले?
समाधानः- पहले यथार्थ समझ करनी। रुचि, महिमा, यथार्थ समझन करनी। समझना, अभी और विशेष समझना।
मुमुक्षुः- ... शास्त्र पढे, हम तो ज्यादा नहीं पढते हैं। मोक्षमार्ग प्रकाशक..
समाधानः- अपनेआप समझना (पडता है)।
मुमुक्षुः- पहला हम कौनसा पढे, जिससे हमको सही मार्ग मिले।
समाधानः- मोक्षमार्ग प्रकाशक?