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हैं। फिर थोडी देर बाद याद आता है कि अरे..! हम तो भूल गये अपनेको। ऐसा हमको बहुत जोर लगता है। भूल जाते हैं। .. याद करते हैं तो उसमें भी हमको महेनत पडती है। ऐसे ही अभ्यास करें?
समाधानः- श्रीमद राजचन्द्रमें ऐसा आता है कि, प्रथम भूमिका विकट होती है। समझ पीछे सब सरल है, बिन समझे मुश्किल। प्रथम भूमिकामें ऐसी विकटता होती है, भूल जाते हैं। जिसको ज्ञान होता है, उसको सहज होता है। समझ पीछे सब सरल है।
मुमुक्षुः- तो हम लोग मतलब ऐसे रटे? आपने जितनी बात बतायी वह तो .. किसीकी बात ही नहीं है। अभी तो हमारी बात है। अभी हम तो इसीलिये आये हैं। क्योंकि हमारे जीवनमें यह घट रहा है। हमको बडी आतुरता थी, भूल जाते हैं, फिर बैठ-बैठकर याद करते हैं। और फिर काम-धन्धा करने जाते हैं, फिर भूल जाते हैं।
समाधानः- एकत्वबुद्धि अनादिसे है। ऐसी महिमा नहीं है, ऐसी रुचि नहीं है।
मुमुक्षुः- रुचि तो आती है, रुचि तो आती है।
समाधानः- पुरुषार्थकी मन्दता है।
मुमुक्षुः- नहीं, अब करेंगे पुरुषार्थ। रुचि आती है, रुचि तो होती है मेरेको।
समाधानः- अभ्यास करना। भूल जाये तो बारंबार याद करना। ऐसे रूखा नहीं होना चाहिये। बारंबार उसकी महिमापूर्वक कि ज्ञायकमें सबकुछ भरा है, वह खाली नहीं है। महिमावंत पदार्थ है। चैतन्य भगवान महिमासे भरपूर है। उसको रूखा करके मैं ज्ञायक हूँ, ज्ञायक हूँ, ऐसे नहीं करना। महिमापूर्वक करना, भूल जाय तो भी।
मुमुक्षुः- कभी तो रूखा भी आयेगा, कभी तो ऐसा भी आयेगा, जैसी गहराई आयेगी। कभी-कभी यह भी आ जाता है, कभी लूखा-लूखा भी आता है।
समाधानः- महिमापूर्वक होना चाहिये।
मुमुक्षुः- जैसे कि हम अकेले खा रहे हैं, छत पर। तो जाननेके तत्त्वको हमको लक्ष्यमें लेना है। तो यह सबको जाननेवाला मैं हूँ, ऐसा बार-बार, बार-बार ऐसे अकेलेमें अपनी तरफलक्ष्य ले? यह प्रक्रिया कैसी रहेगी?
समाधानः- पहले यथार्थ ज्ञान करना, विचार करना, चिंतवन करना। बारंबार मैं जाननेवाला हूँ, यह मैं नहीं हूँ, मैं जाननेवाला हूँ। पहले उसका यथार्थ ज्ञान होना चाहिये। फिर यह सब प्रश्न ही नहीं उठेंगे कि कैसे करुँ। ऐसा विचार करना, बारंबार ज्ञान यथार्थ करना। समझना। बिना समझे करने बैठ जाय तो मूढता जैसा (हो जायेगा), कुछ मालूम ही नहीं पडता, ऐसा हो जाय।