४०२ हो जाता है, समझमें ही नहीं आती बात। जैसे अपने अभ्यास करते हैं तो पढते- पढते ऐसा होता है, कई बार तो बडा अच्छा लगता है। कई बार समझमें ही नहीं पडती है बात।
समाधानः- वह तो अपना दोष है। क्या करे? अनादि कालसे ऐसे विकल्पमें विभ्रम हो रहा है, क्षयोपशमज्ञान ऐसा है नहीं, रुचि ऐसी है नहीं, पुरुषार्थ ऐसा है नहीं, कहाँसे होवे? कभी पुरुषार्थ चले, कभी नहीं चले। अपनी मन्दता है, अपनी मन्दता है।
मुमुक्षुः- आप ध्यानमें कैसा विचार करती हैं?
समाधानः- यह कोई कहनेकी बात थोडी है।
मुमुक्षुः- नहीं मतलब ऐसा, जैसा शास्त्रमेें (आता है), ४८ मिनिटमें केवलज्ञान हो जाता है। तो कितना.. जैसे ध्यान होता है तो अंतर्मुहूर्त होनेके बाद आप... हमको उत्सुकता हुयी किस प्रकारके विकल्प आते हैं? हम नहीं कर पाते हैं तो जाननेकी इच्छा होती है न। कैसे विचार आते हैं आपको?
समाधानः- विकल्प तो विकल्प है। विकल्प विकल्पमें है, आत्मा आत्मामें है।
मुमुक्षुः- ऐसा ही आपके मनमें हमेशा चलता रहता है?
समाधानः- जिसको यथार्थ ज्ञान होता है, उसको भेदज्ञानकी धारा चलती रहती है। विकल्प तो विकल्पमें है, आत्मा आत्मामें है।
मुमुक्षुः- यह बात ऐसी अन्दरमें पक्की जम जानी चाहिये?
समाधानः- ऐसी सहज धारा होनी चाहिये। सहज। विकल्प होते नहीं, वह तो केवलज्ञानीको नहीं होते। परन्तु भेदज्ञानकी धारा तो सम्यग्दृष्टिको होती है।
मुमुक्षुः- अन्दरमें भावमें आने लगता है न? ज्ञान अलग है, राग अलग है, ज्ञान अलग है।
समाधानः- वह तो सहज होता है।
मुमुक्षुः- हम लोगोंको महेनत लगती है।
समाधानः- एकत्वबुद्धिको याद नहीं करनी पडती है ना? यह शरीर और मैं आत्मा एक हैं, ऐसी एकत्वबुद्धि तो सहज चलती है। अनादिसे सहज चलती है न? यह शरीर और आत्मा सब एक है, विकल्प सब एक है, एसी एकत्वबुद्धि चलती है। उसी तरह भेदज्ञान भिन्नता ऐसे चलती है।
मुमुक्षुः- आपको सोचना नहीं पडता। हम लोगोंको बहुत सोच-सोचके लाना पडता है। आपकी पुस्तक पढते हैं, हम तो यहाँ आये नहीं, सुने नहीं। उसमें कहा है, मैं ज्ञायक, मैं ज्ञायक। उसमें भी हमको तो महेनत पडती है, हम तो भूल जाते