Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 834 of 1906

 

ट्रेक-

१३३

४०१

मुमुक्षुः- जैसे कि हम शास्त्र पढे, जानकारीमें आया तो ध्यानमें उसका क्या विचार करे?

समाधानः- विचार करना। पहले ध्यान कैसे होवे? मुमुक्षुः- जैसे शास्त्र पढे, पूरे समय पठन भी करेंगे तो फिर गहराई नहीं आयेगी।

०६६

पठन किया जिस चीज पर, उसका ध्यान नहीं किया, उसकी चिंतवन नहीं हुआ।

समाधानः- शास्त्रका अभ्यास (किया), उसमें आचार्यदेव क्या बताते हैं उसका विचार करना। क्या मार्ग शास्त्रमें आया? वस्तुका स्वरूप कैसा है? ऐसा विचार करना, चिंतवन करना कि यह वस्तु है, आत्मा है, यह स्वभाव है, यह विभाव है, यह ज्ञान है, दर्शन है, चारित्र है, मैं आत्मा हूँ। यह गुणका भेद है। मैं अनन्त चैतन्यस्वरूप हूँ। पहले ऐसी यथार्थ समझन करनी, बादमें ध्यान होता है। सच्ची समझनके बिना ध्यान नहीं हो सकता। समझे बिना ध्यान करता है तो ऐसी उलझन होती है, यथार्थ जमता नहीं। पहले यथार्थ ज्ञान करके, यथार्थ श्रद्धा करके, बादमें ध्यान करना। प्रयोजनभूत तत्त्वको यथार्थ पहचान लेना।

मुमुक्षुः- बार-बार आता है कि पुदगलका परिणमन स्वयं अपने-अपनेमें हो रहा है। हमको तो मोटा-मोटा दिखता है। दिनभर ऐसी हमको अस्ति क्यों नहीं आ रही है? ऐसे कैसे आयेगी अस्ति? इसकी बात मालूम हो जाय तो हमारी करु-करुकी बुद्धि खत्म हो जाय। यहीं हमारा गडबड खा रहा है कि पुदगलका परिणमन प्रतिपल स्वयं हो रहा है, ज्ञानमें नहीं आ रहा है। पढ तो लेती हूँ, बोल तो देती हूँ, ज्ञानमें यह बात आ नहीं रही है।

समाधानः- यह सब पुदगलका परिणमन है। ज्ञानमें कैसे आवे? अनादि कालसे भ्रम हो रहा है, ज्ञानमें कैसे आवे? विकल्प और संकल्प, ज्ञान सब एकत्वबुद्धि हो रही है। उसको यथार्थ समझन करके बिठाना कि यह सब पुदगलका परिणमन है। मैं चैतन्य हूँ। शरीरका परिणमन है, वह पुदगलका है। बाहरका तो है, लेकिन इस शरीर भी पुदगलका (परिणमन है)। इसमें रोग आता है वह भी पुदगलका परिणमन है। वह कोई आत्माका परिणमन नहीं है। ऐसी यथार्थ श्रद्धा करके बिठाना।

अनादिका अभ्यास है, कैसे बैठे? एकत्वबुद्धि अनादिसे ऐसी जोरदार हो रही है। यथार्थ श्रद्धा करे, बारंबार अभ्यास करे, बारंबार उसका अभ्यास करे तब बैठता है। चुतर्थ कालमें तो अंतर्मुहूर्तमें बैठ जाता है। पंचमकालमें ऐसा नहीं होता है। एक बार विचार करके बैठ गया, ऐसा हो जाता है, ऐसा नहीं हो सकता। ऐसा तो कोई- कोईको होता है।

मुमुक्षुः- कई बार वह बात समझमें आ जाती है। कई बार ऐसा कैसा-कैसा