Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

४०० पडता। जिसको सहज स्वभाव पहचानमें आ गया, उसको सहज हो जाता है कि मैं ज्ञायक हूँ। कामकाज करते हुए भी उसे सहज भेदज्ञानकी दशा चलती है। जिसको सहज होता है उसको तो। परन्तु सहज नहीं होता है, वह अनादिका विभावका अभ्यास है। इसलिये अभ्यास करनेके लिये रटना, पढना आदि सब बीचमें होता है।

मुमुक्षुः- जैसे कि आपने अभी बोले कि विकल्पसे अपनेको अलग करना। जैसे मैं आपसे बात कर रही हूँ। बात करते-करते मैं अन्दर ऐसा विचार करुँगी कि मुझको राग आ रहा है यह मैं नहीं हूँ। ऐसा बार-बार विचार करुँगी क्या?

समाधानः- बार-बार (विचार) नहीं, ऐसी श्रद्धा करना कि मैं इससे भिन्न हूँ। एकत्वबुद्धि चल रही है, एकत्वबुद्धिको तोडना, फिर उसे रटना नहीं पडता। एकत्वबुद्धि तोडनेका अभ्यास करना। एकत्वबुद्धि हो रही है, मैं शरीर हूँ, मैं विकल्प हूँ। एकत्वबुद्धि निरंतर चलती है तो उसको तोडनेका अभ्यास करना।

मुमुक्षुः- तोडनेके लिये अभ्यास करना, उसके लिये मुख्य मार्ग क्या है?

समाधानः- मुख्य मार्ग, उसकी रुचि, महिमा करना। उसकी महिमा लगे, बाहर सुख नहीं लगे, बाहर चैन नहीं पडे, मैं चैतन्यको कैसे पहचानूं? उसकी महिमा (लगे)। बाहर कहीं चैन न पडे, अन्दर ही चैन पडे। ऐसे बारंबार स्वभावको पीछानना। जैसे बाहर वस्तु देखनेमें आती है, वैसे मैं चैतन्यको कैसे पीछानूँ? ऐसे बारंबार पीछाननेका अभ्यास करना। नहीं होवे तबतक अभ्यास करना। एकत्वबुद्धि तो अनादिसे चल रही है। बातचीत करते-करते, खाते-पीते एकत्वबुद्धि चलती रहती है, परन्तु उसको भिन्न करनेका अभ्यास करना। उसकी महिमा लगे तो अभ्यास होवे। श्रद्धा तो रखना। रटन कहाँसे करेगा? रुचि तो बाहरकी है। लेकिन जितना हो सके उतना अभ्यास करना।

मुमुक्षुः- ध्यानमें हम बैठे तो ध्यानमें किस तरहका चिंतवन ले कि ज्ञायककी ओर हमारी प्रवृत्ति जाये? कैसा चिंतन करे? हमको तरीका बताईये।

समाधानः- तरीका, पहले तो यथार्थ ज्ञान करना। पहले, ज्ञायक कैसा है? द्रव्य कैसा है? गुण कैसा है? पर्याय कैसी है? यह पुदगल द्रव्य है। वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श है। यह अलग है, मैं चैतन्य अलग हूँ। ऐसे पहले यथार्थ ज्ञान करना। बादमें यथार्थ ध्यान होता है। मैं यह चैतन्य हूँ, उसका अस्तित्व ग्रहण करके ध्यान यथार्थ होता है। ज्ञान यथार्थ हुए बिना ध्यान यथार्थ हो सकता नहीं। पहले तो यथार्थ ज्ञान करना। जो गुरुदेवने मार्ग बताया उसका पहले यथार्थ ज्ञान करना। क्या मार्ग है? कैसे मिलता है? कैसा स्वभाव है? कैसे मैं निर्मल हूँ? यह विभाव है, यह स्वभाव है, कैसा मुक्तिका मार्ग है? कैसे मोक्षस्वरूप आत्मा है? उसको यथार्थ पहचानकरके बादमें ध्यान करना। तो ध्यान यथार्थ जमता है। और ज्ञानके बिना ध्यान जमता नहीं है।