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समाधानः- ... शरीर भिन्न, आत्मा भिन्न, अन्दर संकल्प-विकल्प जो होते हैं, वह अपना स्वभाव नहीं है। ऐसा अंतरसे उसकी यथार्थ प्रतीति करके, उस प्रकारका भेदज्ञान करके अन्दरसे विकल्प टूटकर जैसा आत्मा है, उसका वेदन हो, उसको स्वानुभूति कहते है।
आत्मा जैसा है, अनन्त गुणसे भरपूर, उसके गुणोंको जो जाने, उसका वेदन करे, आत्माका आनंद जो स्वानुभूतिमें वेदे, उसका नाम स्वानुभूति है। आत्माका वेदन जिसमें हो, उसका नाम स्वानुभूति है। सिद्ध भगवानका जो स्वरूप है, सिद्ध भगवानका अंश जिसे स्वानुभूतिमें प्रगट होता है, सिद्ध भगवान तो परिपूर्ण हो गये, उन्हें तो केवलज्ञान आदि अनन्त गुण परिपूर्ण पर्यायरूपसे प्रगट हो गये, परन्तु सम्यग्दृष्टिको उसका अंश प्रगट होता है। वह गृहस्थाश्रममें हो, कोई भी कार्यमें हो, तो भी जब वह विकल्पसे छूट जाता है, तब उसे स्वानुभूति (होती है)। स्व-अनुभव आत्माका वेदन होता है।
अनन्त गुणसे भरपूर जो आत्मा है, उस रूप आत्मा परिणमित हो जाता है। आनन्दरूप, ज्ञानरूप आदि अनन्त गुणरूप परिणमित हो जाता है। उसका नाम स्वानुभूति है। जो अनन्त कालमें जीवने बहुत क्रियाएँ की, शुभभाव किये, शुभभावसे पुण्य बन्ध होकर स्वर्गमें जाय, परन्तु जो स्वानुभूति प्रगट नहीं की है, वह स्वानुभूति ही मोक्षका उपाय है। परन्तु उसकी पहले प्रतीत करके भेदज्ञान करके, उसके ज्ञान-ध्यानकी उग्रतासे, ज्ञाताधाराकी उग्रतासे विकल्प टूटकर जो स्वानुभूति-निर्विकल्प दशा कि जिसमें विकल्प भी नहीं है। विकल्प रहित, जिसमें अकेले चैतन्यका अस्तित्त्व-आत्माका अस्तित्व है, उसका नाम स्वानुभूति है।
मुुमुक्षुः- बहिनश्री! उसमें क्या होता है? अनुभूति होती है, मतलब उसमें क्या होता है?
समाधानः- अनुभूति अर्थात आत्मस्वरूपका वेदन होता है।
मुमुक्षुः- अन्दरसे आनन्द आता है?
समाधानः- आनन्द आदि अनन्त गुणोंका जिसमें वेदन हो, उसका नाम स्वानुभूति है। वह कोई वाणीकी, कथनकी बात नहीं है। वह तो उसके वेदनमें आता है। आत्मा