Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 136.

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ट्रेक-
अमृत वाणी (भाग-४)
(प्रशममूर्ति पूज्य बहेनश्री चंपाबहेन की
आध्यात्मिक तत्त्वचर्चा)
ट्रेक-१३६ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- माताजी! ... और बराबर बैठता नहीं था, क्योंकि दोनों विरोधाभासी दिखता था। दर्शनसे मिलान करनेका आता नहीं था। क्योंकि यह ज्ञानगुणकी पर्याय, ... उसके अविभाग प्रतिच्छेद, या गुण-पर्याय स्वतंत्रपने परिणमे, फिर भी द्रव्यके आश्रय बिना पर्याय होती है... एक अपेक्षासे तो द्रव्य ही कर्ता, कर्म,..

समाधानः- हाँ, द्रव्य ही कर्ता-कर्ता (है)। द्रव्यके आश्रयसे (होती है)। ... कहीं खीँचा जाता हो, ऐसे वजन देनेमें आता है। अपेक्षा तो यहाँ गुरुदेव जो कहते थे, वह सबको बरसोंसे ख्यालमें है कि गुरुदेव निश्चय मुख्य रखकर व्यवहार कहते थे यह सबने ग्रहण किया है। परन्तु गुरुदेव व्यवहारको निकाल देनेको नहीं कहते थे। बरसोंसे सुना है इसलिये उस प्रकारका सबको ख्याल है। ... उसकी पक्कड नहीं करनी, वैसे पर्यायको निकाल नहीं देना तथापि पर्याय पर दृष्टि नहीं करनी। ऐसे गुरुदेवका आशय वह था।

... तो स्वयं उस बात पर भी उछल पडते और निश्चयकी बात आये तो उसमें भी। इसलिये गुरुदेवके (प्रवचनमें) दोनोंकी सन्धि है। उनका उस प्रकारका वर्तन, परिणमन ही ऐसा था। निषेध करे, उसे करना क्या बाकी रहा? दृष्टि उसकी नहीं होती, परन्तु भावना आये, सब बीचमें आये। उस पर वजन नहीं देना है।