Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

मुमुक्षुः- ...यह पर्याय इस द्रव्यकी और यह पर्याय इस गुणकी है। सब पर्याय स्वतंत्ररूपसे परिणमती है। अब आपके शब्द ग्रहण किये थे, वास्तवमें तो पर्याय स्वतंत्र है... यह पुरुषार्थ करनेमें ऐसी भावना हो कि मैं ऐसा करुँ, ऐसा करुँ। तो यदि दोनों एक न हो अथवा द्रव्यका आश्रय न हो तो... ऐसे शब्दोंमें रहा कि ये स्वरूपसे भिन्न है, वस्तु भी वह है। परन्तु भावमें कहाँ अलग पड जाता है, वह अंतरमें ख्यालमें नहीं आता।

समाधानः- द्रव्य कूटस्थ होने पर भी उसे पारिणामिक भी कहनेमें आता है। इसलिये अखण्डमें ऐसे आता है। फिर भी पर्याय परिणमे तो भी वह द्रव्यकी शक्तियाँ हैं, द्रव्यमेंसे परिणमती है। सब पर्याय प्रगट होती है वह द्रव्यमेंसे प्रगट होती है। द्रव्यसे बाहर नहीं है। द्रव्यकी शुद्धि, द्रव्यकी निर्मलता और द्रव्यदृष्टिमेंसे प्रगट होती है। फिर उसकी जो तारतम्यता प्रगट होती है वह सब स्वतंत्र प्रगट होता है। वह स्वयं....

...द्रव्यके स्वभावमेंसे ... परिणमती है। .. कुछ लोग ऐसा मानते हैं। जैसे द्रव्य स्वतंत्र है, वैसे पर्याय (स्वतंत्र नहीं है)। स्वतंत्रता उतनी कि पर्याय परिणमनेवाली है, एक क्षणका सत... द्रव्य जो अखण्ड सामर्थ्यसे भरा हुआ, परिपूर्ण सामर्थ्यसे भरा हुआ, पर्याय कहाँ वैसी है। जितना सामर्थ्य द्रव्यमें, उतना सामर्थ्य पर्यायमें कहाँ है। पर्याय तो द्रव्यमें है। मुझे वह याद नहीं आया। ... कोई खीँचता हो तो उसे प्रयोजनवशात कहना पडे कि इसका ऐसा है। कोई कुछ खीँचता है। नहीं है, पर्याय सर्वथा नहीं है, पर्याय है ही नहीं, ऐसा थोडा ही है। ऐसा नहीं है। व्यवहार नहीं है, पर्याय नहीं है... ... पर्याय स्वतंत्र है, जब परिणमना होगा तब परिणमेगी। स्वयंके कुछ होता नहीं। पर्यायके सब कारक स्वतंत्र हैं। एक गुण दूसरे गुणकी पर्यायको कर सकता नहीं। द्रव्य भिन्न, पर्याय भिन्न, सबके कारक स्वतंत्र। भावना करे, पुरुषार्थ करे तो कौन रहे? बलगुण है वह उसे कर सकता नहीं। तो फिर भावना किसके आधारसे? कौन किसका निमित्त हो और उपादान रहे? कुछ नहीं होगा। ... गुण भिन्न, पर्याय भिन्न, द्रव्य भिन्न, सब भिन्न। किसीको किसीका आश्रय ही नहीं है। आश्रय मात्र बोलने तक सिमीत रह जाता है। फिर अन्दर क्या समझता है, वह कुछ नहीं रहता। आश्रय है, आश्रय है कहने पर भी टूकडे-टूकडे मान लेता है। गुरुदेव स्वतंत्रता कहते थे, परंतु ऐसे टूकडे थोडे ही कहते थे।

... पर्याय है, स्वतंत्र तो वह स्वयं तक सिमीत है। द्रव्य तो एक वस्तु है। पर्याय तो क्षण-क्षणमें होती है। द्रव्यके आश्रयसे होती है। स्वयं स्वतंत्र है, उसकी तारतम्यता होती है वह स्वतंत्र, उस प्रकारसे स्वतंत्र है। परन्तु उसका पूरा सामर्थ्य द्रव्यमें भरा है। द्रव्यके आश्रयसे होनेवाली है। ऐसा कहनेमें आय, ... सब स्वतंत्र है। तो भी द्रव्य