२२अमृत वाणी (भाग-४)
निश्चय करना, विचार करना। उसकी रुचि आत्माकी ओर जानी चाहिये। जबतक बाहरकी रुचि है, जिसे बाहरमें रुचता है उसे तो आत्माकी ओर (आना कठिन है)। इस जन्म- मरणसे, इस विकल्पकी झालमें जिसे शान्ति नहीं लगती है। शान्ति कहाँ है उसकी जिसे खोज करनी हो तो उसे विचार करना, लगन लगानी, उस जातके शास्त्र पढना, उस जातके गुरुका परिचय करना। उस प्रकारका सत्संग करना कि जिससे उसे सच्चा मार्ग मिल जाय। सच्चा मार्ग मिले तो उस प्रकारका विचार, लगनी सब वही करने जैसा है। लेकिन आत्माकी अंतरमेंसे लगनी चाहिये।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!