Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 874 of 1906

 

२१
ट्रेक-

१३८ ये विकल्पकी झाल है, वह टूटकर जो निर्विकल्प स्वानुभूति हो, सिद्ध भगवानका अंश प्रगट होता है, वह करने जैसा है। जीवनमें वह कैसे हो, वही सत्यार्थ मुक्तिका मार्ग है। गुरुदेवने और अनन्त तीर्थंकरोंने सबने वह मार्ग दर्शाया है।

मुमुक्षुः- स्वाध्याय मन्दिरमें सब बताया, आपका भूतकाल, भविष्यकाल। ये सब क्या है? आश्चर्य होता था कि ये सब है। ... भूत, भविष्य और वर्तमान सब बताया है...

समाधानः- अंतर आत्माको पहचाने। आत्मा ज्ञानसे भरा है। त्रिकाल केवलज्ञानी जगतमें है, वे लोकालोकको जानते हैं, समय-समयको जानते हैं। ये तो एक अल्प है। ज्ञान तो जीवका स्वभाव है। अंतर स्वानुभूति करके आत्मा प्रगट करना, वही सत्यार्थ है। भूत, भविष्य और वर्तमान वह तो आत्माका जाननेका स्वभाव ही है। समय- समयका जाने ऐसे केवलज्ञानी भगवान जगतमें विराजते हैं। ये तो एकदम अल्प है और वह तो आत्माका स्वभाव ही है, जान सके ऐसा है।

अनन्त जन्म-मरण करते-करते यह जीव आया है। कोई कहीं जन्मता है, कोई कहीं जन्मता है। स्वयंके जैसे पूर्वके उदय हों, उस अनुसार जन्म लेता है। उसमें कोई पूर्वका कारण है। पूर्वमें अनन्त भव करके आया है। वर्तमान जिस प्रकारका स्वयं करता है, उस जातका उसका भविष्य होता है। इसलिये ज्ञानस्वभावी आत्मा है। विकल्प तोडकर आत्मामें ज्ञानकी निर्मलता हो तो वह सब प्रगट हो सके ऐसा है। आत्मा ज्ञानस्वभावसे भरा है। आत्मामें अनन्त ज्ञान है।

मुमुक्षुः- ..

समाधानः- जिसे आत्माका करना है, आत्माकी खरी जिज्ञासा जागृत हुयी हो, वह सच्चे सत्पुरुषको पहचान लेता है। जिसे भवका अभाव करनेकी जिज्ञासा जागी हो, उसका हृदय ऐसा पात्र हो जाता है कि सच्चे गुरु कौन है, उनकी वाणी, उनका हृदय, उनका अंतरंग हृदय किस प्रकारका है, उनकी वाणी द्वारा और अमुक प्रकारके उनके परिचय द्वारा पहचान लेता है कि ये सत्पुरुष है। जिसे खरी जिज्ञासा जागृत हुयी है, वह पहचान ही लेता है। ऐसी स्वयंकी तैयारी चाहिये। तो सत्पुरुष पहचानमें आये बिना नहीं रहते। गुरुको पहचाना जा सके ऐसा है। जिसके हृदय-नेत्र ऐसे निर्मल हो जाय, वह सच्चे सत्पुरुषको पहचान लेता है। जिसे आत्माकी जिज्ञासा जागृद हुयी हो, प्रथम आत्माकी जिज्ञासा तैयार करनी। जिसे बाहरमें कहीं रुचि नहीं लगता, जिसे कहीं सुख नहीं लगता, ऐसी यदि जिज्ञासा हो और जिसे आत्माका ही करना हो, उसे स्वयं विचार करना, स्वाध्याय करना, सच्चे गुरुको पहचानना, सच्चे गुरु क्या कहते हैं, कैसा मार्ग बताया है, सच्चे गुरुकी पहचान करके वे क्या कहते हैं, उस मार्गका