Paryay ko Apne Parinaman mein Kisi Dusre Vastu (Dravya, Paryay ) ki
Jarurat nahi.
१४० उसे द्रव्यका आश्रय है।
इसलिये द्रव्यकी स्वतंत्रता और पर्यायकी स्वतंत्रतामें फर्क है। उसके षटकारक और इसके षटकारकमें फर्क है। द्रव्य स्वतंत्र स्वतःसे है। वैसे पर्यायको तो द्रव्यका आश्रय है। उसके षटकारक समझना है तो उस प्रकारसे समझना कि द्रव्यके आश्रय बिना पर्याय ऊपरसे नहीं होती।
मुमुक्षुः- चन्दुभाईने कहा कि ऊपरसे राग होता है। मुमुक्षुः- .. आत्माका भी नहीं सकते और पुदगलका भी नहीं कह सकते, स्वयंने नया खडा किया है।
समाधानः- स्वयं नया है। अपना स्वभाव नहीं है। स्वयं जुडता है। आकाशके फूलको कोई आश्रय नहीं है, ऐसे नहीं। ... पुरुषार्थकी मन्दतासे होता है। फर्क है। पर्याय है (उसको) द्रव्यका आश्रय होता है। रागकी बात अलग है। अपना स्वभाव नहीं है।
मुमुक्षुः- पर्यायका वेदन होता है, आलम्बन नहीं होता। और ध्रुवका आलम्बन होता है, द्रव्यका वेदन नहीं होता।
समाधानः- उसका आलम्बन है, पर्यायका वेदन है।
मुमुक्षुः- सब विद्वानोंको, पण्डितोंको सबको बहुत सरल भाषामें बोल दिया। उपकार है, माताजी! अनन्त उपकार है।
मुमुक्षुः- सिद्ध भगवानको जो अव्याबाध आनन्द प्रगट हुआ, चौथे गुणस्थानमें क्या सिद्ध जैसा ही सुख प्रगट होता है?
समाधानः- चतुर्थ गुणस्थानमें सिद्ध भगवान जैसा ही सुख (प्रगट होता है)। आंशिक सिद्ध भगवान जैसा। जाति तो एक है। सिद्ध भगवानको पूर्ण प्रगट हुआ है, वह अंश है। जाति तो जैसा सिद्ध भगवानका स्वरूप है, वैसा अंश प्रगट होता है। द्रव्य तो सिद्ध भगवान जैसा है। सिद्ध भगवानका जो स्वभाव है, वैसा ही स्वभाव आत्माका है। परन्तु प्रगट होता है वह अंश प्रगट होता है।
मुमुक्षुः- आनन्दका स्वाद आंशिक रूपमें आता है। समाधानः- अंश आता है, परन्तु सिद्ध भगवान जैसा ही है। भेदज्ञानकी धारा भीतरमें प्रगट कर क्षण-क्षणमें मैं ज्ञायक चैतन्य हूँ, ये मैं नहीं हूँ, ऐसी धारा प्रगट करते-करते विकल्प टूटकर स्वानुभूति होती है। (उसमें) सिद्ध भगवानकी जातिका अंश प्रगट होता है।