Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 885 of 1906

 

३२अमृत वाणी (भाग-४)

वास्तविक स्थिति देखते हैं, मैं दिगम्बर हूँ, मगर मैं...

मुमुक्षुः- .. सपना आयेगा वह मानेंगे? ... आप भी नहीं मानते हैं। सपना तो मनोकल्पना है, ऐसा कहेंगे। उसमें कुछ नहीं है। आत्माकी करो, ऐसी कोई झंझटमें मत पडो।

समाधानः- गुरुदेवने जो किया, बहुतोंको जागृत किये हैं। हिन्दुस्तानके लोगोंको अध्यात्मकी ... परिणति बहुत लोगोंकी हो गयी है। (जिसकी) नहीं हुयी, उसकी योग्यता। बाकी जिसकी लायकात थी, तो बहुत लोगोंको अध्यात्म, आत्माका विचार करनेवाले बहुत हो गये। बहुत साल पहले तो सब क्रियाकांडमें थे। ऐसा थोडा कर लिया, शुद्धि कर ली, अशुद्धि कर ली, इतना पाठ पढ लिया, ऐसा कर लिया, इसमें सब पडे थे। गुरुदेवके प्रतापसे अध्यात्मके शास्त्र, अध्यात्मका वांचन, अध्यात्म स्वरूप.. ऐसा बहुत करने लग गये। बहुत लोगोंका परिवर्तन हो गया।

मुमुक्षुः- एक जगह कहनेमें आता है कि, पर्याय अपने षटकारकसे उत्पन्न होती है और एक जगह कहनेमें आता है कि, अपने द्रव्यके आधारसे उत्पन्न होती है। तो इन दो निर्णयमें कौन-सा निर्णय जोरदार है जिसमें हम आत्माका लक्ष्य कर सके?

समाधानः- आत्माका लक्ष्य करना। तो पर्याय उस ओर आ जाती है। आत्माकी द्रव्यदृष्टिके आश्रयसे पर्याय उसमें आ जाती है। शुद्ध पर्याय उसमें प्रगट होती है। वह पर्याय स्वतंत्र, अमुक अपेक्षासे स्वतंत्र है। बाकी द्रव्य तो अनन्त सामर्थ्यसे भरा है तो जितना वह द्रव्य स्वतंत्र है, उतनी ही पर्यायको स्वतंत्र कहना वह तो अपने स्वभावसे है अथवा अमुक अपेक्षासे उसके षटकारक कहनेमें आते हैं, तो भी पर्यायको द्रव्यका आश्रय तो रहता है। पर्यायको द्रव्यका आश्रय तो है। जिस ओर द्रव्यकी परिणति होती है उस ओर पर्याय पलट जाती है। दृष्टि बाहर जाती हो तो उस ओर पर्याय जाती है। दृष्टि शुद्धात्मामें जाती है तो उस ओर पर्याय जाती है। इसलिये द्रव्यका आश्रय तो पर्यायमें रहता है। जितना द्रव्य स्वतंत्र है, पर्यायमें उतना फर्क है कि षटकारक है तो भी द्रव्यका आश्रय पर्यायमें रहता है। पर्यायको द्रव्यका आश्रय तो रहता है।

मुमुक्षुः- लक्ष्य द्रव्यका होता है? समाधानः- लक्ष्य तो द्रव्यका होता है, पर्यायका लक्ष्य नहीं होता। मुमुक्षुः- और उत्पत्तिकी अपेक्षासे द्रव्यके साथ पर्यायकी उत्पत्ति होती है? समाधानः- जिस ओर द्रव्यकी दृष्टि, उस ओर पर्याय होती है। पर्याय स्वतंत्र उस अपेक्षासे (कहते हैं कि), पर्यायका स्वरूप स्वतंत्र है। इसलिये पर्याय स्वतंत्र है। बाकी पर्यायमें आश्रय तो द्रव्यका रहता है। ऊपरसे पर्याय होती है किया? ज्ञानकी पर्याय, दर्शनकी पर्याय, चैतन्यकी चैतन्यरूप पर्याय, वह पर्याय ऊपरसे उत्पन्न नहीं होती।

Paryay Dravya se Utpan hoti Hai To Jis Tarah Se Dravya SWATANTRA hai
usi Tarah PARYAY bhi SWATANTRA hai (Dravya se Utpan Hone Ke Kaaran).