१४२ भेदज्ञान करके ज्ञायक आत्माको पहिचान लिया।
मुमुक्षुः- .. आत्माकी पहिचान होती नहीं है, आत्माकी बातें सुनते हैं,...
समाधानः- अन्दर पुरुषार्थकी क्षति है, रुचिकी कमी है। मार्ग पकडमें (नहीं आता है)। जो गुरु और शास्त्रमें.. जो गुरुने कहा है, उसका विचार करना। किस मार्ग पर जाया जाता है? उसका मार्ग क्या है? आत्माका क्या स्वभाव है? मैं कौन हूँ? मेरा स्वभाव क्या है? वह सब विचार करना और बाहरकी रुचि छोड देनी।
मुमुक्षुः- तो आत्माका अनुभव होता है?
समाधानः- तो होता है, हाँ, तो होता है।
मुमुक्षुः- रुचि लगनेकी आवश्यकता है।
समाधानः- अंतरसे रुचि लगनी चाहिये। रुचि लगे तो विचार आये तो उसका वांचन हो, उस ओर अंतरसे झुके तो होता है। बिना रुचिके नहीं होता। बाहरकी रुचि लगी हो तब तक (नहीं होता)। अन्दरकी रुचि लगनी चाहिये, उतनी लगन लगनी चाहिये।
... गुरुदेवने कहा उसी मार्ग पर जाने जैसा है। वही रुचि और देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा। आत्मा ज्ञायकको पहिचानना और देव-गुरु-शास्त्रकी जैसे महिमा हो वैसे करने जैसा है। जिनेन्द्र देवकी पूजा करनी, जिनेन्द्र देवकी महिमा, गुरुकी महिमा, शास्त्र महिमा वह सब करने जैसा है। अंतर आत्माको पहिचाननेके लिये ज्ञायक आत्मा कैसे पहिचानमें आये? ध्येय एक है। आपके माता और पिताको वह रुचि थी और वह सबको करने जैसा है। हसमुखभाई तो...
मुमुक्षुः- यहाँ तो एक-एक रजकणमें गुरुदेवके स्मरण भरे हैं।
समाधानः- देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा। जिनेन्द्र देव, गुरु, गुरु क्या कहते हैं, गुरुने मार्ग बताया उस मार्ग पर चलने जैसा है। शास्त्रमें भी वही आता है कि आत्मा ज्ञायक है, जाननेवाला है, वह सब आता है। देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा और ज्ञायक आत्माको कैसे पहिचानना। आत्मा भिन्न है, यह शरीर भिन्न है। आत्माको पहिचाननेके लिये देव- गुरु-शास्त्रकी महिमा.. अन्दर आत्मा कोई अपूर्व चीज है। गुरुदेव कहते थे, उनकी वाणीमें अपूर्वता था। यह कोई अलग ही वस्तु है। स्वानुभूति कैसे प्रगट करनी? उसके लिये भेदज्ञान करना, ये विकल्प, संकल्प-विकल्प अपना स्वभाव नहीं है। उससे आत्माको भिन्न करके आत्मा कैसे पहचाना जाय? वह महिमा, वह रुचि आदि करने जैसा है। और शुभभावमें देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा जो हो वह करने जैसा है।
मुमुक्षुः- दूसरी कोई जगह ऐसा नहीं है।
समाधानः- नहीं, सब तुच्छ है। यही एक करने जैसा है, सच्चा यह है। पहलेसे