और मनुष्योंमें इतनी शक्ति होती है। वर्तमान जैसे शरीर उसके नहीं होते। उसके शरीरमें चढ जाय ऐसी शक्ति (होती है)। अभी आप कोई चींटीको कहो तो वह कैसे चल सके, उसके जैसी बात है। वर्तमानकालके मनुष्योंके शरीर और चौथे कालके मनुष्योंके शरीरमें फर्क होता है। वह पुण्यशाली जीव होते हैं। उनका आयुष्य बडा होता है, उनका शरीर अलग होता है।
मुमुक्षुः- महावीर भगवानके समयकी बात है न यह तो?
समाधानः- महावीर भगवानके समयमें वह चतुर्थ काल था।
मुमुक्षुः- काल चतुर्थ परन्तु सबका आयुष्य..
समाधानः- भले आयुष्य नहीं था, परन्तु शरीर अलग थे। सब सुनते हैं। तिर्यंच सुनने जाते हैं, मनुष्य जाते हैं। ... यथार्थ है, भगवानकी वाणी सुनने सब जाते थे। वह यथार्थ है। भगवानकी वाणी सुननेका, सबका उस प्रकारका पुण्य था। वह पुण्य अभी खत्म हो गये हैं।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- सबमें तारतम्यतामें फर्क था। सब अल्प-अल्प था। अभी वर्तमानमें बहुत बढ गया है। अभी सम्यग्दर्शन प्राप्त करना दुर्लभ है। उस समयमें तो क्षणमात्रमें सम्यग्दर्शन प्राप्त करते थे और मुनिदशा भी क्षणमात्रमें प्राप्त कर लेते थे। थोडी देरमें अंतर्मुहूर्तमें केवलज्ञान प्राप्त कर लेते थे। उस प्रकारके लोग आत्माका वैसा पुरुषार्थ करते थे।
... आत्माको पहिचानना, आत्माका कल्याण करना। देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा और आत्माका कल्याण करना।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- अभी यथार्थ नहीं हुआ है। सचमूचमें दुःख लगे तो सुखका मार्ग खोजे बिना रहे नहीं। सच्चा दुःख अभी नहीं लगता है। खरी रुचि लगे, अंतर विचार करे, वांचन करे..। बडे-बडे चक्रवर्ती भी सब छोड देते हैं। क्योंकि उसमें उसे सुख नहीं लगा है। जिनके पास देव हाजिर होते थे, ... चक्रवर्ती और तीर्थंकरोंने भी सब छोड दिया था। तब आत्मामें कुछ विशेषता होगी इसलिये छोड दिया था। उन सबको आत्मामें विशेषता लगी। जिन्हें पुण्यका कोई पार नहीं था, बाह्य अनुकूलताका पार नहीं था, ऐसे पुण्यशाली जीव थे। चतुर्थ कालमें ऐसे राजा, ऐसे चक्रवर्ती सबने छोड दिया। इसलिये अंतर आत्मामें सुख भरा है। बाहरमें व्यर्थ प्रयत्न करना वह जूठी भ्रान्ति है। बडे तीर्थंकरों, जिनकी देव सेवा करते थे, तो भी छोडकर आत्माकी साधना (करने चल पडे)। आत्मामें ही सब भरा है। ऐसी श्रद्धा करके अन्दरसे विकल्पजाल (तोडकर)