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समाधानः- सम्यग्दर्शन होता है, मोक्षका प्रारंभ होता है, मोक्षका अंश प्रगट होता है। सम्यग्दर्शन होता है।
मुमुक्षुः- सम्यग्दर्शन अर्थात क्या?
समाधानः- आत्माकी स्वानुभूति। आत्माको अंतरमें पहिचानकर, आत्माको अंतरसे निराला प्रगट कर स्वयं आत्माका अनुभव कर सकता है। इस शरीरके अन्दर आत्मा है। आत्मा विकल्पसे भिन्न, विकल्पकी जालसे भिन्न आत्माका अनुभव कर सकता है। वह सम्यग्दर्शन है। सिद्ध भगवान है, उसका अंश जिसे प्रगट होता है वह सम्यग्दर्शन, वह स्वानुभूति।
मुमुक्षुः- लोग जो आज तीर्थयात्रा करते हैं..
समाधानः- पुण्य बन्धता है, दूसरा कुछ नहीं है। पुण्य बन्धता है।
मुमुक्षुः- उसके बजाय वह घर बैठकर अपने आत्माका कल्याण करे तो ज्यादा अच्छा मान सकते हैं?
समाधानः- आत्माका करे तो। नहीं तो जिसको जो ठीक लगे वह करे। आत्माकी जिज्ञासा करके आत्माको पहिचाने तो ज्यादा अच्छा है।
मुमुक्षुः- आत्माको पहिचाननेके लिये शुभकर्मकी जरूरत है?
समाधानः- आत्माको पहिचाननेका कार्य करे उसमें शुभकर्म साथमें आ ही जाते हैं। मनुष्यपना प्राप्त किया, ... आत्माकी जिज्ञासा जागे उसमें शुभभावना साथमें आ ही जाती है। .. पहले यह विचारने जैसा है। जिसमें बहुभाग आत्माकी बात आये वह आगम है। आगम किसे कहना वह करने जैसा है। ये सब आगम हैं उसमें आत्माकी बात कितनी आती है, यह विचारने जैसा है। जो शास्त्रमें, जिसमें आत्माकी बातें आती हैं, आत्माका मोक्ष कैसे हो, द्रव्य-गुण-पर्याय, उत्पाद-व्यय-ध्रुव ऐसी जो सूक्ष्म-सूक्ष्म आत्माकी स्वानुभूतिकी बात आये वह आगम है। यह सब आगम है या नहीं, इसका विचार करने जैसा है।
मुमुक्षुः- मैं वही पूछता हूँ, आगम हैं और आप विचार करने जैसा है ऐसा आप कहते हो, इसलिये मैं कहता हूँ...
समाधानः- हाँ, विचारने जैसा है। आगम किसे कहना वह विचारने जैसा है।
मुमुक्षुः- जिसमें आत्माकी बातें आती हो...
समाधानः- आगम किसे कहते हैं, यह विचारने जैसा है, विचार करके नक्की करने जैसा है।
समाधानः- भगवानका समवसरण होता है, ऐसे शक्तिशाली जीव ही होते हैं। बीस हजार सिढीयाँ चढकर भगवानके समवसरणमें वाणी सुनने ऊपर जाते हैं। देवोंमें