करे, कोई क्या करे, क्यों करे, वह उस पर निर्भर करता है।
मुमुक्षुः- जो व्यंतर देव गिनते हैं... वे लोग कैसे जाते हैं?
समाधानः- सच्चे देव तो अरिहंत, गुरु और शास्त्र। अरिहंतके सिवा कोई देवको माने नहीं। सच्चे सुदेव, सुगुरु और सुशास्त्रके सिवाय किसीको (माने नहीं)। कुगुरु, कुदेवको माननेवाले तो... वह तो तारनेवाले नहीं है। .. हर जगह घुमते रहे ऐसे देव ही थोडे ही होते हैैं। अपने बाप-दादाको ऐसे मान लेना कि वह सब देव होते हैं और उसको इच्छा रहा करती है,... सब बाप-दादा ऐसे ही होते होंगे? कोई अच्छी गति, ऊँची गतिमें नहीं जाते होंगे, ऐसा क्यों मान लेना? सब वैसे ही देव होते हैं। उसका भव वैसा ही होता है ऐसा कैसे मान लेना? .. वह क्यों नहीं हो? और ऐसे सुरधन ही होते होंगे सब? देवलोकके देवसे किसीका उद्धार नहीं होता। वह तो भगवान अरिहंतदेवसे उद्धार होता है, भगवानकी वाणीसे उद्धार होता है। देवलोकके देवसे किसीका उद्धार नहीं होता। देवलोकके देव तो भगवानकी सेवा, पूजा करने आते हैं। वह देव किसीका उद्धार नहीं करते, उस देवसे किसीका उद्धार नहीं होता। वह किसीको तारते नहीं। ... जूठी भ्रमणा और मान्यताएँ हैं।
मुमुक्षुः- जो .. वह कौन है?
समाधानः- वह सब भ्रमणा है।
मुमुक्षुः- .. आते हैं, वह कोई भी आत्मा होगा।
मुमुक्षुः- पहले देवलोकमें यह और दूसरे देवलोकमें इस प्रकारसे वहाँ आयुष्य है। वहाँ इस प्रकारसे...
समाधानः- भले ही हो, जो भी हो। अपने तो आत्माका करना है न। देवलोकमें तो देवकी ऋद्धि है तो उसमें सब होता है। देवको सब होता है। देवोंकी ऋद्धि ज्यादा होती है। देवोंको खाना-पीना नहीं है। उनको तो ऊच-नीच जातिके देव होते हैं।
मुमुक्षुः- तो बडे देवोंकी छोटे देव सेवा करे।
समाधानः- हाँ, ऐसा होता है। छोटे देव, बडे देव ऐसा होता है।
मुमुक्षुः- ..वर्तमानमें पंचम काल चलता है।
समाधानः- मोक्ष भले न हो, परन्तु आत्माको पहिचाना जा सकता है।
मुमुक्षुः- आत्माको पहिचाना ऐसा कब ख्यालमें आये?
समाधानः- वह तो स्वयं अपना जान सकता है। स्वयं अपना जान सकता है।
मुमुक्षुः- पंचमकालमें जब तक केवलज्ञान न होता, तब तक मोक्ष नहीं होता। तो पंचमकालमें केवलज्ञान नहीं होता, क्योंकि पंचमकाल चलता है। इसलिये पंचमकालमें कभी केवलज्ञान नहीं होता।