Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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मुमुक्षुः- लगन लगायी है, परन्तु जैसे ही भेदज्ञान करते हैं, वैसे..

समाधानः- बार-बार उस ओर पुरुषार्थ, ज्ञान, उस ओर दृष्टि, उस ओर परिणति बारंबार उसका पुरुषार्थ करना चाहिये। ... स्वयं किये बिना रहता ही नहीं। बाहरकी ... स्वयं ही करता है।

मुमुक्षुः- ... जैसा पुरुषार्थ उठना चाहिये उस प्रकारका नहीं उठता है।

समाधानः- स्वयंकी क्षति है।

समाधानः- ... सिद्ध भगवान जैसा स्वरूप प्रगट करना हो तो आत्मा सिद्ध भगवान जैसा है। तो वह सब विकल्पसे छूटकर आत्माको पहचाने तो भवका अभाव हो। शुभभाव आये उससे पुण्यबन्ध हो तो देवलोक मिले। ... अंतरमें आत्माकी स्वानुभूति हो वह मोक्षका उपाय है। अंतरमें दृष्टि करके अंतरमेंसे मुक्तिका मार्ग (प्रगट होता है)।

पहले आंशिक मोक्षका स्वरूप आंशिकरूपसे स्वानुभवमें आता है। फिर विशेष- विशेष अन्दर लीनता करते-करते मुनिदशा आयेे, उसमें केवलज्ञान होता है। मोक्षका उपाय वही है। आत्माको पहिचाने। मैं चैतन्य ज्ञायक आत्मा जाननेवाला अन्दर तत्त्व है उसे पहिचाने। उसमें आनन्द, उसमें सुख है। उसके लिये तत्त्वविचार, वांचन, स्वाध्याय आदि करे। उसे सर्व प्रकारकी आसक्ति टूट जाती है, बाहरकी रुचि छूट जाय, छूट जाती है। उसे सबका त्याग हो जाता है ऐसा नहीं, परन्तु उसे अंतरमेंसे सब रस छूट जाता है और आत्माको पहचाननेका प्रयत्न करे तो अंतरमें मोक्ष है। मोक्ष बाहरसे नहीं होता है। शुभभावनाओंसे पुण्यबन्ध होता है।

मुमुक्षुः- मेरा यह कहना है कि जो मन्दिर, मूर्ति और ये जो सब करते हैं, उसमें अपनी भावना तो शुभ होती है,...

समाधानः- हाँ, वह तो शुभ (भाव है)। पुण्य बन्धता है।

मुमुक्षुः- पुण्य बन्धता है और जो मन्दिर हम बनवाते हैं, उसके एक अन्दर आज सुबह मैं बैठा था, वहाँ एक भाई बैठे थे, इसमें पैसे देते हैं, ... उन लोगोंको पुण्यानुबन्ध पाप आता है? वहाँ जानके बाद ...

समाधानः- पुण्य ही बन्धता है। दूसरे लोग चाहे जो करते हों, परन्तु जो मन्दिर बँधवाता है, उसकी तो शुभभावना होती है। उसे श्रद्धा तो वही रखनी है कि ये तो शुभभाव है। मोक्ष तो अन्दर स्वानुभूतिसे होता है। उसे श्रद्धा तो यही रखनी है। परन्तु बीचमें शुभभावनाएँ आये बिना नहीं रहती। इसलिये मन्दिर बँधवाये उसमें कोई कुछ भाव करे, कोई कुछ भाव करे, वह तो उसकी स्वतंत्रता पर है। उसके साथ कुछ नहीं है। स्वयं अपने शुभभाव करता है। दूसरे लोग क्या करते हैं, वह दूसरे पर निर्भर करता है। प्रत्येक आत्मा स्वतंत्र हैं। दूसरे लोग क्या करते हों, कोई शुभभाव