Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 142.

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४०अमृत वाणी (भाग-४)
ट्रेक-१४२ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- माताजी! वह पुरुषार्थ करना कैसे?

समाधानः- स्वयं लगन लगानी, बाहरमें कहीं रुचि न लगे, आत्माका स्वरूप कैसे प्राप्त हो? ऐसी रुचि यदि जागृत हो तो फिर उसका चित्त उस ओर मुडे। शास्त्र स्वाध्याय, तत्त्व विचार, गुरुकी वाणी सुननी। गुरु विराजते थे तब उनकी वाणी मिलती थी। गुरुने जो कहा उस प्रकारके शास्त्र पढे, विचार करे, उसकी लगन लगाये। देव- गुरु-शास्त्रकी महिमा, गुरुने क्या कहा है, आत्माका स्वरूप कैसे प्राप्त हो, उसके विचार करे। उस प्रकारका वांचन करे, उस प्रकारकी महिमा करे। बाहरकी रुचि कम करे।

.. जन्म-मरण, जन्म-मरण (चलते रहता है)। राग हो उसे ऐसा लगे, बाकी जन्म- मरण संसारका स्वरूप ही है। बडे चक्रवर्ती चले जाते हैं, दूसरोंका क्या? लाख पूर्वका आयुष्य हो तो भी आयुष्य पूरा हो जाता है। सागरोपमका आयुष्य पूरा हो जाता है। तो इस पंचमकालमें तो आयुष्य कितना है? जन्म-मरण देखकर वैराग्य करने जैसा है। आत्माका स्वरूप समझे। किसीके सम्बन्ध एकसमान निश्चित होते ही नहीं। कोई कहाँ-से आता है, कोई कहाँ-से आता है। ... फिर उसके आयुष्यका जितना मेल हो उतना रहे, फिर चले जाते हैं।

... आत्माकी रुचि की, वैसा सब किया ऐसा मानकर शान्ति रखनी। देव-गुरु- शास्त्र पर... शरणरूप आत्मा ही है। देव-गुरु-शास्त्र शुभभावमें और अंतरमें आत्मा ज्ञायक, वही करने जैसा है। पुरुषार्थ स्वयंसे करना है। जिसे लगन लगी हो वह स्वयं ही (करता है)। करना वही है, जीवनकी सार्थकता (उसीमें है)।

मुमुक्षुः- ..

समाधानः- स्व-परकी एकत्वबुद्धि है। एकत्वबुद्धि तोडकर अपनमेमें (एकत्वबुद्धि करे)। परके साथ एकत्वबुद्धि है, वह स्वकी ओर एकत्वबुद्धि करके परसे विभक्त होना वह करनेका है। ... परन्तु दृष्टि तो अंतरमें ... द्रव्य पर दृष्टि करनी है। उसका ज्ञान, उसमें लीनता वह करना है। पुरुषार्थ तो स्वयंको ही करना पडता है। उसकी लगन लगानी, महिमा करनी। चैतन्यके मूलमें जाकर उसे ग्रहण करना, वह करना है। ... उसकी ओर उसकी लगन लगनी चाहिये तो होता है।