Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 892 of 1906

 

३९
ट्रेक-

१४१

ये सब कहते हैं, पंचमकालमें केवलज्ञान नहीं है। पंचमकालमें केवलज्ञान नहीं है, परन्तु सम्यग्दर्शन है। सम्यग्दर्शन यानी क्या, यह भी कोई समझता नहीं था। मोक्ष यहाँ सम्यग्दर्शनमें आंशिकरूपसे हो जाता है, यह भी कोई समझता नहीं था।

.. इसलिये अपने परिणाम हैं, वह तीव्र कलुषितता अथवा कैसे तीव्र हों, वह अपने हाथकी बात है। उसमें शान्ति रखनी, आत्माको पहिचानना, वह सब अपने हाथकी बात है। बाह्य संयोग कैसे हो, वह (अपने हाथकी बात नहीं है)। किसीको अच्छा लगे, किसीको बूरा लगे, स्वयं कुछ भी करे तो भी दूसरेको खराब ही लगे। ऐसा कोई उदय हो तो वह सब उदयकी बात है। शान्ति रखनी अपने हाथकी बात है। इसलिये आत्माको पहिचानना और शान्ति रखनी। बाह्य संयोग (अपने) हाथकी बात नहीं है।

मुमुक्षुः- सहजतासे प्राप्त कर लिया। तो आत्म-स्वरूप प्राप्त करना ऐसा सहज है?

समाधानः- पुरुषार्थ करे तो सहज है और पुरुषार्थ न करे तो कठिन है। अनन्त काल गया, परन्तु यदि स्वयं पुरुषार्थ नहीं करता है तो कठिन हो जाता है और पुरुषार्थ करे तो सहज होता है। उसमें पूर्वके संस्कार किसीको निमित्त बनते हैं और कोई करता है तो प्रथम बार होता है।

... हाँ, अपने पास है। अनन्त शक्ति (है)। निगोदमेंसे निकलकर अंतर्मुहूर्तमें जो प्रगट करते हैं, वह शक्ति कहाँ-से (आयी)? इसलिये उतना पुरुषार्थ चैतन्यमें है। अनन्त कालसे निगोदमें थे और फिर ... हुए हैं, उसके बाद राजाके कुंवर हुए हैं, और फिर एकदम मुनि बन गये। वह शक्ति कहाँसे (आयी)? अपने चैतन्यमें है। पूर्वमें कहीं सुनने नहीं गये थे। सर्व प्रथम भगवानके घर राजकुमार होकर दीक्षा लेते हैं। भगवानकी वाणी सुनते हैं। एकदम पुरुषार्थ अंतर्मुहूर्तमें जागृत हो। जीवमें स्वयंमें अनन्त शक्ति है। राजकुमार कितने... एकदम दीक्षा लेकर चल पडते हैं।

मुमुक्षुः- वह इस शक्तिकी ही बात है न? समाधानः- हाँ, अनन्त शक्ति। जैसे भगवान हैं, वैसी अनन्त शक्ति तेरेमें है, ऐसा गुरुदेव कहते थे।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!