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.. आत्मा शाश्वत है। देह तो छूटकर ग्रहण होता है। तो ऐसा कुछ कर लेना कि आत्मा शाश्वत है, फिर भवका अभाव हो, भव ही प्राप्त न हो, ऐसा आत्मा शाश्वत है। मुक्तिका पंथ प्रगट हो और मुक्ति हो कि शरीर ही प्राप्त न हो। ऐसे भाव कर लेने जैसे हैं। गुरुदेवने मार्ग बताया है, भवका अभाव होनेका।
.. भूतकालमें कितनी माताका दूध पिया, कितनी माताओंको रुलाया, ऐसे अनन्त- अनन्त जन्म-मरण हुए हैं। उसमें इस पंचम कालमें गुरुदेव मिले वह महाभाग्यकी बात है। गुरुदेवने यह मार्ग बताया और जैसे-तैसे भी उस मार्गकी आराधना करनी और स्वानुभूतिका पंथ अन्दरसे ग्रहण करने जैसा है। मुक्तिका अंश प्रगट हो, आत्माको ग्रहण करना। .. लेकिन उसे मुक्तिकी पर्याय कैसे प्रगट हो, वह करने जैसा है। वहाँ उनका देह छूटनेवाला होगा तो वहाँ गये।
मुमुक्षुः- एक महिना पूरा हुआ।
समाधानः- आयुष्य पूरा हो तब ऐसे हो जाता है। आत्मा उसकी गति करके चला जाता है। उतना राग होता है इसलिये दुःख होता है, लेकिन पलटे बिना छूटकारा नहीं है। संसार तो ऐसा ही है। याद आये तो ... उसका कोई उपाय नहीं है। जहाँ आयुष्य पूरा हो, वहाँ किसीका उपाय नहीं चलता है। शान्ति रखनी वह एक ही उपाय है। जितना सम्बन्ध हो और जिस जातका राग हो वह राग अन्दरसे आये, परन्तु परिणामको बदले बिना (छूटकारा नहीं है)। शान्ति रखनी वही उसका उपाय है। शान्ति ही समाधान है। गुरुदेवने कहा है। क्योंकि प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र हैं। आयुष्य पूरा होता है, इसलिये जन्म-मरण तो होते ही रहते हैं। उसे कोई रोक नहीं सकता। कोई इन्द्र या चक्रवर्तीओंके आयुष्य पूर्ण होते हैं, कोई रोक नहीं सकता। सागरोपमका देवोंका आयुष्य (होता है)। उसकी माला मुरझाती है, अब आयुष्य पूरा होनेवाला है। उसे दूसरी गतिमें जाना होता है, कोई ऐसे देव हो तो आक्रंद करते हैं, अच्छे देव होते हैं तो वह तो समझता है संसारका स्वरूप ही ऐसा है। आयुष्य तो पूरा होता है। गुरुदेवने भवका अभाव करनेका जो मार्ग बताया है, उसी मार्गकी आराधना करने जैसी है कि भव ही न हो, ऐसा मार्ग बताया। जन्म-मरण टलकर आत्मा शाश्वत है, वह शाश्वत स्वरूपको ग्रहण करना।
चत्तारी मंगलं, अरिहंता मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपणत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारी लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपणत्तो धम्मो लोगुत्तमा।
चत्तारी शरणं पवज्जामि, अरिहंता शरणं पवज्जामि, सिद्धा शरणं पवज्जामि, केवली पणत्तो धम्मो शरणं पवज्जामि।