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... क्रमबद्धके साथ सब कारण साथमें होते हैं। पुरुषार्थ, स्वभाव आदि सब साथमें होते हैं। जिसका पुरुषार्थ सुलटा, उसका क्रमबद्ध सुलटा होता है। पुरुषार्थपूर्वकका क्रमबद्ध समझना।
... महिमा गाये। गुरुदेव गाते थे। सब आचार्य गाते हैं। उसका स्वभाव .... आत्मामें अनन्त शक्ति भरी है। आत्मामें ज्ञान अनन्त, आत्मामें आनन्द अनन्त। आत्मा अदभुत तत्त्व है। ये बाहरका जो दिखाई देता है वह सब तुच्छ है। वह कुछ आत्माको सुखरूप नहीं है। इसलिये उसका विचार करके आत्माका स्वभाव पहचाने तो महिमा आये। देवलोकके देव भी आश्चर्यभूत नहीं हैं। देवलोकका सुख भी आश्चर्यभूत नहीं है। देवोंको भी भगवान जिनेन्द्र देवकी महिमा आती है। देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा आती है। जिन्होंने आत्मस्वरूपको प्रगट किया, ऐसे देव-गुरु-शास्त्रकी साधना करे, उसकी महिमा, जो उन्होंने प्रगट किया। इसलिये करने जैसा है वैसा आत्मा है। इसलिये आत्माकी महिमा करनी। आत्माका स्वभाव ऐसा है। जैसा भगवानका आत्मा है, वैसा अपना आत्मा है। इसलिये उसका- आत्माका स्वभाव पहिचानना। जो जिनेन्द्र देव-गुरु कहते हैं, उसे अन्दर पहिचानना कि आत्मा ऐसा ही है। आत्मामें कोई अदभूतता भरी है, आत्मा कोई आश्चर्यकारी तत्त्व है। ये सब दिखाई देता है, वह अलग है और अंतरमें आत्मा कोई अलग है। उसकी महिमा लानी।
... विशेषता नहीं है। जीवनकी विशेषता आत्मामें कुछ प्रगट हो तो जीवनकी विशेषत है, तो मनुष्यजीवनकी सफलता है। बाकी ये सब संसार तो पुण्यके कारण चलता रहता है। वह प्रयत्न करे तो भी अपनी इच्छानुसार नहीं होता है। इसलिये अंतरमेंसे-आत्मामेंसे कुछ प्रगट हो, कुछ नवीनता आत्माका स्वभाव। तो वही जीवनका कर्तव्य है। इसलिये उसकी रुचि, महिमा, उसका विचार, उसका घोलन, वांचन आदि सब उसका करने जैसा है।