समाधानः- जरूरत नहीं है, मेरेमेंसे ही सब (प्रगट होगा)। अनन्त ज्ञान, अनन्त सुखका धाम, अनन्त आनन्दका धाम, अनन्त अपूर्व गुणोंसे भरा, अनन्त शक्तियोंसे भरा है। शाश्वत रहकर अनन्त अनन्तारूप परिणमित होनेवाला (है)। अनन्त शक्ति मुझमें भरी है। उसे विश्वास आ जाता है।
मुमुक्षुः- उसका अंतर संशोधन उग्र होता जाता है।
समाधानः- हाँ, अंतरकी ओरका उग्र होता जाता है। दृष्टिके बलसे, भेदज्ञानकी धारा आदि सब उग्र होता जाता है। उसकी ज्ञातापनेकी धारा प्रगट होकर उग्र होती है। समझे तो सरल है। नहीं समझा है इसलिये अनन्त कालसे दुष्कर हो गया है।
मुमुक्षुः- बहुत बढ जाता है।
समाधानः- अपना स्वभाव है इसलिये सरल है। एक अंश स्वानुभूतिका प्रगट हो तो सर्वगुणांश सो सम्यग्दर्शनके साथ सर्व गुण शुद्धतारूप परिणमते हैं। सब अपनी ओरकी परिणति प्रगट होती है। फिर तो सहजतासे उसकी दशा बढती जाती है। परन्तु पहले उसे कठिन लगता है। जिसे होता है, उसे अंतर्मुहूर्तमें हो जाता है। नहीं होता उसे अभ्यास करे तब होता है।
मुमुक्षुः- उसके पीछे पड जाना चाहिये।
समाधानः- पीछे पडना चाहिये, तो होता है। जरूरत लगे तो उसके पीछे प्रयत्न करता ही रहता है, छोडता नहीं है। वैसे इसे छोडना नहीं चाहिये। आकुलता न करे, परन्तु धैर्यसे भावनापूर्वक उसका अभ्यास करता रहे।
मुमुक्षुः- उसकी आकुलता नहीं करनी, परन्तु उसके प्रयत्नमें सातत्य..
समाधानः- प्रयत्न चालू रखना चाहिये, अपनी भावना चालू रखे। यह करना ही है, ऐस प्रयत्न चालू रखे। तो मिल जाता है। गुरुदेव मिले इसलिये सब मिल गया है, फिर भी अभी करना तो स्वयंको है।
मुमुक्षुः- ऐसी भावना होती है कि किस दिशामें जाना है, कैसे जाना है, उसका मार्गदर्शन...
समाधानः- दिशा दर्शानेवाले गुरुदेवने दिशा बता दी है। कहीं रुकते थे, अटकते थे उन सबको दृष्टि बता दी कि यह दृष्टि प्रगट कर। कहीं क्रियामें, शुभभावोंमें कहीं- कहीं रुकते थे, उसे दिखाया कि तू अंतरमें जा। अन्दर शाश्वत द्रव्यको ग्रहण कर। गुरुदेव मिले इसलिये इस पंचम कालमें महाभाग्यसे गुरुदेव मिले, एक तिरनेका मार्ग सब मुमुक्षुओंको बता दिया। पुरुषार्थ स्वयंको करना है।
मुमुक्षुः- गुरुदेव भी पधारे और आप भी साथमें पधारे।
समाधानः- गुरुदेवने मार्ग बताया। गुरुदेवके दास हैं। सब गुरुदेवने ही बताया है।