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मुमुक्षुः- वही पूछता हूँ। बहुत अल्प समयमें...
समाधानः- बहुत अल्प समयमें छः-आठ महिनेमें ही हो गया था।
मुमुक्षुः- हम तो तीस-तीस सालसे (लगे हैं), आप कहते हो पूरा दिन उसका अभ्यास चाहिये, पूरा दिन उसीका घुटन होना चाहिये। जीवनमें वर्तमानमें ध्येय यह एक ही किया है। फिर भी अभी आत्मा सामने दिखे, उसे पकडने जाय तो छटक जाता है। सामने दिखे, पकडने जाय तो छटक जाता है। ज्ञानके अन्दर उसका प्रतिभास दिखे कि यह ज्ञायक है, यह तू है। ऐसा ज्ञान स्वीकार करे, ज्ञान कबूल करे, फिर भी उसे ग्रहण करके यह पकडा, पकडने जाय तो छटक जाता है। ऐसे थोडा-थोडा दूर हो जाता है। उसका जवाब तो आप कहोगे कि पुरुषार्थकी परिणति अभी जितनी चाहिये उतनी नहीं है, भेदज्ञानका बल जितना चाहिये उतना नहीं है। वह तो बराबर है।
समाधानः- मुझे तो विचारकी धारा कुछ एक साल, डेढ साल चली। छः- आठ महिनेमें उग्रता हो गयी। वह तो अंतरमें..
मुमुक्षुः- तो वह कोई पूर्व संस्कारका बल, पुरुषार्थका बल था, ऐसा ले सकते हैं?
समाधानः- पूर्वका संस्कार कह सकते हो, लेकिन पुरुषार्थ तो अभी करना है।
मुमुक्षुः- पुरुषार्थ तो वर्तमानमें करनेका है। परन्तु पुरुषार्थके संस्कारका बल हो, तो वह पुरुषार्थ उस संस्कार पर जल्दी काम कर लेता है, ऐसा तो बनता होगा न?
समाधानः- जल्दी हो, लेकिन तैयारी तो स्वयंकी (होनी चाहिये)।
मुमुक्षुः- हाँ, उतनी तैयारी हो..
समाधानः- यहाँ इन लोगोंको कितने संस्कार पडे? यहाँ गुरुदेवके कितने सालके संस्कार सबको तैयार हो गये हैं। संस्कार अन्दर डाले तो कितने साल (हो गये)। वह सब पूर्वका गिन लेना। गुरुदेवने जो प्रवचन किये, वह सबने सुना, अंतरमें वह पूर्व ही था न। पूर्व संस्कार मान लेना।
मुमुक्षुः- हाँ, वह तो है। जरूर है। जो संस्कारका सिंचन हुआ उसका अमुक बल तो होता है।
समाधानः- उसका बल (है तो) सबको अन्दर आसान हो जाता है न।
मुमुक्षुः- हाँ, उतना आसान हो जाता है।
समाधानः- कोई ऐसा कहे कि पूर्वके संस्कार (थे)। तो संस्कार तो अभी गुरुदेवने बहुत दिये हैं।
मुमुक्षुः- दिये-दिये। चालीस-चालीस सालके संस्कार तो गुरुदेवने दिये ही हैं। उसका सिंचन भी हुआ है। वह पूर्व संस्कार ही है। पूर्व अर्थात पूर्व भवके ही संस्कार