Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 958 of 1906

 

१०५
ट्रेक-

१५१ ओर सीमंधर भगवानके पास (जाते हैं)।

मुमुक्षुः- हमारे पुण्य थे इसीलिये तो पधारे थे, पुण्य खत्म नहीं हो गये हैं, ऐसा विचार क्यों न करें।

समाधानः- आते हों तो कोई देख भी नहीं सके। ... अपनी ओर एकत्वबुद्धिको दृढ करनी।

मुमुक्षुः- बाहरकी एकत्वबुद्धिको ढीली की है, इसलिये तो पुरुषार्थ और ज्ञानका व्यापार अंतरमें जाकर..

समाधानः- उसे तोड देना चाहिये।

मुमुक्षुः- तोड दे तो यहाँ आत्माका स्पर्श हो जाय। यहाँ एकत्वबुद्धि टूट जाय तो आत्माका स्पर्श हो जाय। यहाँ एकताबुद्धि टूट जाय तो आत्माकी एकताबुद्धि हो जाय।

समाधानः- तो उसका अभ्यास करे, अभ्यास करना चाहिये न। अभ्यास करे तो अपनी एकत्वबुद्धि हो।

मुमुक्षुः- अभ्यास करें कि मैं ज्ञायक हूँ, मैं ज्ञायक हूँ।

समाधानः- उस अभ्यासमें क्षति है।

मुमुक्षुः- कौन-सी क्षति है?

समाधानः- क्षति ही है, उसकी दृढताकी क्षति है। वह क्षति है।

मुमुक्षुः- आपने तो एक ही जवाब, दृढताकी क्षति है, पुरुषार्थकी कचास है, ज्ञानका जोर नहीं है।

समाधानः- लेकिन एक ही जवाब हो न। दूसरा क्या जवाब हो?

मुमुक्षुः- उसे कैसे प्राप्त करना? कि तू स्वयं कर तो हो। वह जवाब दोगे।

समाधानः- उसका एक ही जवाब है, दूसरा जवाब क्या हो? स्वयंको ही करना है।

मुमुक्षुः- कुछ विधि-विधान होगा न?

समाधानः- उसकी विधि एक ही है, ज्ञाताका भेदज्ञान करना, ज्ञाताको पहचानना, उसका पुरुषार्थ करना, एक ही उपाय है, दूसरा कोई उपाय नहीं है। कोई कर नहीं देगा, कहींसे आनेवाला नहीं है। अपनेमें सब भरा है, अपनेमेंसे सब आयेगा और स्वयंको प्रगट करना है। कैसे करना? वह तो स्वयंको ही करना है।

मुमुक्षुः- जैसे-जैसे ज्ञानीका उपदेश सुनें, ज्ञानी जैसे-जैसे इस प्रकारकी विधि बताये, वैसे-वैसे यहाँ पुरुषार्थ उठता हुआ दिखे,..

समाधानः- विधि बताये बादमें करना स्वयंको बाकी रहता है। वे करवा नहीं