अनादिअनन्त जो आत्मा है, उसे ग्रहण कर। वह सब तो प्रगट होती है। उपशमभाव, क्षायिकभावको ग्रहण नहीं करके एक पारिणामिकभावको ग्रहण कर। तो तत्त्वका मूल असली स्वरूप उसने ग्रहण किया है। वह तो ऊपरका है, असल स्वरूप नहीं है, वह तो प्रगट होता है। अनादिअनन्त स्वरूप पारिणामिकभाव है, उसे ग्रहण करना। उसे ग्रहण करनेसे उसका मूल चैतन्यतत्त्वका असली मूल उसने ग्रहण किया। असली स्वभाव ग्रहण किया। असली स्वभाव ग्रहण करे तो उसमेंसे निर्मलता प्रगट होती है। असली स्वभाव यदि ग्रहण न करे तो उसमेंसे निर्मलता प्रगट नहीं होती। (नियमसारमें) पारिणामिकभावको बहुत ही गाया है।
मुमुक्षुः- .. ३२० गाथामें कहा है। समाधानः- परमपारिणामिक? अनादिअनन्त परमपारिणामिक कहनेमें आता है। .. अपेक्षा लागू नहीं पडती। निरपेक्ष भाव है, अनादिअनन्त। उपशमभाव, कर्मके क्षयकी अपेक्षा, उपशमकी अपेक्षा, उपशमभावकी या कर्मके क्षयकी और उदयकी अपेक्षा, कोई अपेक्षा नहीं है। जो निरपेक्ष भाव है, अनादिअनन्त है, वह परमपारिणामिकभाव है।