१५६ जो स्वसंवेदन होता है, वह पूरे असंख्य प्रदेशमें होता है कि कोई ... प्रदेशोंसे होता है?
समाधानः- कोई प्रदेशमें ऐसे नहीं होता है। चेतन अखण्डमें होता है। कोई अमुक प्रदेशमें होता है ऐसा नहीं है।
मुमुक्षुः- मनसे निर्णय किया तो मनसे ... पूर्ण हूँ, ऐसा विशेष जो ... शान्ति मिलती है, वह नियत प्रदेशसे ही आती है कि सर्वांगसे आती होगी?
समाधानः- नहीं, सर्वांगसे आती है। मन तो विकल्प है। मन तो वहाँ रहता है, तो इधरसे लगता है। इधरसे लगता है।
मुमुक्षुः- तो आनन्द भी सर्वांग ही आना चाहिये।
समाधानः- हाँ, सर्वांग आता है। पूर्ण नहीं आता है। सम्यग्दर्शनमें तो अंश आता है। सर्वांग आता है। अमुक प्रदेशमें आता है और अमुक प्रदेशमें नहीं आता है, ऐसा नहीं है। आत्मा तो अखण्ड है। तो अखण्डमें ऐसा खण्ड नहीं पडता कि अमुक प्रदेशमें आनन्द आता है और अमुक प्रदेशमें नहीं आता है, ऐसा नहीं है। आत्मा तो अखण्ड है। सबमेंसे आता है। मुख्य यहाँ मन है न, इसलिये मनके द्वारा हुआ ऐसा कहनेमें आता है। यह मन है इसलिये।
मुमुक्षुः- ... सर्व प्रदेशमेंसे होता होगा?
समाधानः- सर्व प्रदेशमें अंश प्रगट होता है।
मुमुक्षुः- ये बात ख्यालमें आयी कि जो निर्णय हो, उसमें श्रद्धाकी भी .... है, उसमें खामी है।
समाधानः- खामी है, जो निर्णय है ऐसा कार्य नहीं है, परिणति नहीं हुयी। तो निर्णयमें भी खामी है। बुद्धिसे निर्णय हुआ। बुद्धिमें निर्णय तो हुआ, निर्णय तो हुआ कि मैं कर्ता नहीं हूँ, राग मेरा नहीं है, ऐसा नहीं है, मैं ज्ञायक हूँ, मैं ज्ञायक हूँ ऐसा निर्णय तो किया परन्तु ज्ञायक कौन है? एकत्वबुद्धि तो चलती रहती है।
मुमुक्षुः- ऐसे ही लगता है कि ज्ञायक ही हूँ, ऐसा जोर आता है।
समाधानः- जोर आता है, परन्तु इसका लक्षण पहचानकरके मैं ये ज्ञायक हूँ, ये ज्ञायक हूँ, ऐसा भीतरमें तो नहीं होता। ये ज्ञायक हूँ, ये मेरा नहीं है, ऐसी ज्ञाताबुद्धि (होकर) कर्ताबुद्धि टूट जाय ऐसा तो नहीं हुआ। इसलिये जोरदार निर्णय पहले आता है, परन्तु जैसा वह सहज परिणतिरूप होता है, ऐसा निर्णय नहीं हुआ। इसलिये पुरुषार्थकी भी कमी है और निर्णय भी जैसा कार्यरूप होता है, वैसा नहीं हुआ।
मुमुक्षुः- ऐसा उपाय फरमाओ कि कमी निकल जाय और पुरुषार्थकी, .. श्रद्धाकी गलती निकल जाय और पुरुषार्थकी ठोसता-मजबूती आ जाय।