मुमुक्षुः- जहाँ साक्षात चैतन्यप्रभु विराजते हो, वह तो अहोभाग्य है। दर्शन मिलना इस कालमें...
समाधानः- .. जल्दी आते थे। आत्माका करना वही जीवनकी सफलता है। मुुमुक्षुः- आपने जो आशीर्वाद दिया वह तो मेरा कल्याणका कारण है। मेरा कल्याण होकर ही रहेगा।
समाधानः- ... बहुत ग्रहण किया है, वही करना है। ... ये तो कोई प्रश्न पूछे तो कहते हैैं, स्वास्थ्य ऐसा है न।
मुमुक्षुः- जी हाँ, आपकी घणी कृपा हुयी, बहुत कृपा है।
समाधानः- कैसेटमें बहुत ऊतरा है।
मुमुक्षुः- आपके वचनामृतकी कैसेट मेरे पास है।
मुमुक्षुः- ...कर्ता-धर्ता नहीं है, रागमें धर्म होता नहीं, .. जो लक्षण है, ... ख्यालमें आता है। भूले रह जाती है कि कुछ पुरुषार्थकी कमी है?
समाधानः- पुरुषार्थकी कमी है। जो निर्णय होता है वह निर्णय भीतरमें कार्य नहीं करता है। निर्णय निर्णयमें रह जाता है। जो निर्णयका कार्य होना चाहिये कि... एक द्रव्य दूसरे द्रव्यको करता नहीं है, ऐसा निर्णय तो किया और जो कार्य करता है, उसमें मैं करता हूँ, मैं करता हूँ, वह बुद्धि तो छूटती नहीं। और बुद्धिमें निर्णय होता है कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्यको करता नहीं है। फिर भी जो कार्य करता है वह प्रतिक्षण मैं करता हूँ, मैं करता हूँ, ऐसी परिणति तो हो रही है। पुरुषार्थ कम है तो उसमें श्रद्धाकी भी क्षति है।
मुमुक्षुः- श्रद्धाकी भी क्षति है?
समाधानः- हाँ। यथार्थ सम्यग्दर्शन किसको कहते हैं? जिसको यथार्थ प्रतीति होवे। जब यथार्थ प्रतीत नहीं हुयी, सम्यग्दर्शन नहीं हुआ तब निर्णय भी बुद्धिसे हुआ है। प्रतीतमें भी परिणति नहीं होती है, मैं कर्ता नहीं हूँ, ये बुद्धिमें तो आया, परन्तु करता हूँ, करता हूँ उसकी परिणति तो हो रही है। विकल्पमें एकत्वबुद्धि और राग-द्वेषकी एकत्वबुद्धि चल रही है। मैं ऐसा करता हूँ, ऐसा करता हूँ, ऐसी बुद्धि तो भीतरमें चालू रहती है। भीतरमें देखे तो भीतरमें कर्ताबुद्धि चल रही है। बुद्धिमें कर्ता नहीं हूँ आता है, तो भी परिणति तो वैसी चलती है। परिणतिमें यदि देखे कि परिणतिमें ऐसा चलता है कि मैंने यह कार्य किया, मैंने ऐसा किया, मैंने ऐसा किया ऐसी एकत्वबुद्धि तो भीतरमें चलती है। इसलिये पुरुषार्थकी भी कमी है और परिणतिमें जो निर्णय किया वैसी परिणति नहीं हुयी है।
मुमुक्षुः- सम्यकके पहले सम्यककी सन्मुखतावाला जो जीव है, वह सविकल्प