Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Ashrava Aadi Sat Padarthoni Siddhi.

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सप्ततत्त्व-नवपदार्थ अधिकार [ ९१
अहीं, शिष्य प्रश्न करे छेजो एकांते जीव अने अजीव ए बे द्रव्यो परिणामी
होय तो संयोगपर्यायरूप एक ज पदार्थ सिद्ध थाय अने जो एकांते अपरिणामी होय तो
जीव अने अजीव द्रव्यरूप बे ज पदार्थो सिद्ध थाय, तेथी आस्रव आदि सात पदार्थो केवी
रीते सिद्ध थाय? तेनो उत्तरः
कथंचित् परिणामीपणाने लीधे सात पदार्थो सिद्ध थाय
छे. ‘कथंचित् परिणामीपणा’नो शो अर्थ छे? जेम स्फटिकमणि जोके स्वभावथी निर्मळ छे,
तोपण जपापुष्पादि उपाधिजनित पर्यायांतररूप परिणतिने ग्रहण करे छे, जोके
(स्फटिकमणि) उपाधि ग्रहण करे छे, तोपण निश्चयथी शुद्धस्वभावने छोडतो नथी; तेम
जीव पण जोके शुद्धद्रव्यार्थिकनयथी सहजशुद्ध चिदानंद एकस्वभावी छे, तोपण अनादि
कर्मबंधपर्यायना वश रागादि परद्रव्यउपाधिपर्यायने ग्रहण करे छे, जोके (जीव)
परपर्यायरूपे परिणमे छे, तोपण निश्चयथी शुद्धस्वरूपने छोडतो नथी. पुद्गलनुं पण ते
ज प्रमाणे छे.
आवुं परस्पर सापेक्षपणुं ‘कथंचित् परिणामीपणुं’ शब्दनो अर्थ छे. आ
प्रमाणे कथंचित् परिणामीपणुं होवाथी जीव अने पुद्गलना संयोगरूप परिणतिथी बनता
होवाने लीधे आस्रवादि सात पदार्थो सिद्ध थाय छे अने ते सात पदार्थो पूर्वोक्त जीव
अने अजीव द्रव्य साथे मळीने नव थाय छे, तेथी नव पदार्थो कहेवामां आवे छे.
अभेदनयथी पुण्य अने पाप
ए बे पदार्थनो आस्रव पदार्थमां अथवा बंध पदार्थमां
समावेश करवानी अपेक्षाए सात तत्त्व कहेवामां आवे छे.
अत्राह शिष्य :यद्येकान्तेन जीवाजीवौ परिणामिनौ भवतस्तदा संयोगपर्यायरूप
एक एव पदार्थः, यदि पुनरेकान्तेनापरिणामिनौ भवतस्तदा जीवाजीवद्रव्यरूपौ द्वावेव पदार्थौ,
तत आस्रवादिसप्तपदार्थाः कथं घटन्त इति
तत्रोत्तरंकथंचित्परिणामित्वाद् घटन्ते
कथंचित्परिणामित्वमिति कोऽर्थः ? यथा स्फ टिकमणिविशेषो यद्यपि स्वभावेन निर्मलस्तथापि
जपापुष्पाद्युपाधिजनितं पर्यायान्तरं परिणति
गृह्णाति यद्यप्युपाधिं गृह्णाति तथापि निश्चयेन
शुद्धस्वभावं न त्यजति तथा जीवोऽपि यद्यपि शुद्धद्रव्यार्थिकनयेन सहजशुद्ध-
चिदानन्दैकस्वभावस्तथाप्यनादिकर्मबन्धपर्यायवशेन रागादिपरद्रव्योपाधिपर्यायं गृह्णाति
यद्यपि
परपर्यायेण परिणमति तथापि निश्चयेन शुद्धस्वरूपं न त्यजति पुद्गलोऽपि तथेति
परस्परसापेक्षत्वं कथंचित्परिणामित्वशब्दस्यार्थः एवं कथंचित्परिणामित्वे सति
जीवपुद्गलसंयोगपरिणतिनिर्वृत्तत्वादास्रवादिसप्तपदार्था घटन्ते ते च पूर्वोक्तजीवाजीवपदार्थाभ्यां
सह नव भवन्ति ततः एव नव पदार्थाः पुण्यपापपदार्थद्वयस्याभेदनयेन कृत्वा
१. ‘परिणमति’ इति पाठान्तरं