Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 92 of 272
PDF/HTML Page 104 of 284

 

background image
प्रश्नःहे भगवान! जोके कथंचित् परिणामीपणाना बळथी, भेदप्रधान
पर्यायार्थिकनयथी नव पदार्थो अने सात तत्त्वो सिद्ध थयां, तोपण तेमनाथी शुं प्रयोजन
छे? जेवी रीते अभेदनयथी पुण्य अने पापपदार्थनो अंतर्भाव सात तत्त्वोमां थयो तेवी
ज रीते विशेष अभेदनयनी विवक्षामां आस्रवादि पदार्थोनो पण जीव अने अजीव ए
बे द्रव्योमां अंतर्भाव करवामां आवतां, जीव अने अजीव ए बे पदार्थो ज सिद्ध थाय
छे! ए शंकानो परिहार करे छेः
हेय अने उपादेय तत्त्वनुं परिज्ञान कराववारूप प्रयोजन
माटे आस्रवादि पदार्थोनुं व्याख्यान करवा योग्य छे. ते ज कहे छेः अक्षयअनंत सुख
ते उपादेयतत्त्व छे, तेनुं कारण मोक्ष छे, मोक्षनुं कारण संवर अने निर्जराए बे छे,
तेनुं कारण विशुद्ध ज्ञानदर्शनस्वभावी निजात्मतत्त्वनां सम्यक् श्रद्धाज्ञानअनुचरणरूप
लक्षणवाळुं निश्चयरत्नत्रयस्वरूप अने तेनुं साधक व्यवहाररत्नत्रयरूप छे. हवे, हेयतत्त्व
कहेवामां आवे छेआकुळता उत्पन्न करनारुं नरकगति आदिनुं दुःख अने निश्चयथी
इन्द्रियजनित सुख हेयतत्त्व छे. तेनुं कारण संसार छे, संसारनुं कारण आस्रव अने बंध
पुण्यपापयोरास्रवपदार्थस्य, बन्धपदार्थस्य वा मध्ये अन्तर्भावविवक्षया सप्ततत्त्वानि भण्यन्ते हे
भगवन् ! यद्यपि कथंचित्परिणामित्वबलेन भेदप्रधानपर्यायार्थिकनयेन नवपदार्थाः सप्ततत्त्वानि
वा सिद्धानि तथापि तैः किं प्रयोजनम्
यथैवाभेदनयेन पुण्यपापपदार्थद्वयस्यान्तर्भावो
जातस्तथैव विशेषाभेदनयविवक्षायामास्रवादिपदार्थानामपि जीवाजीवद्वयमध्येऽन्तर्भावे कृते
जीवाजीवौ द्वावेव पदार्थाविति
तत्र परिहार :हेयोपादेयतत्त्वपरिज्ञानप्रयोजनार्थ-
मास्रवादिपदार्थाः व्याख्येया भवन्ति तदेव कथयतिउपादेयतत्त्वमक्षयानन्तसुखं, तस्य
कारणं मोक्षः, मोक्षस्य कारणं संवरनिर्जराद्वयं, तस्य कारणं विशुद्धज्ञानदर्शन-
स्वभावनिजात्मतत्त्वसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुचरणलक्षणं निश्चयरत्नत्रयस्वरूपं, तत्साधकं
व्यवहाररत्नत्रयरूपं चेति
इदानीं हेयतत्त्वं कथ्यतेआकुलत्वोत्पादकं नारकादिदुःखं
निश्चयेनेन्द्रियसुखं च हेयतत्त्वम् तस्य कारणं संसार; संसारकारणमास्रवबन्धपदार्थद्वयं, तस्य
१. आत्माश्रित निश्चयनय छे. [जुओ, श्री समयसार गाथा २७२नी श्री आत्मख्याति टीका.]
२. अहीं, ‘साधक’ कह्युं छे ते ‘भिन्न साधक’ना अर्थमां समजवुं. भिन्न साध्य
साधनपणुं छे ते वास्तविक
साध्यसाधनपणुं नथी, मात्र उपचरित छे. [जुओ, श्री पंचास्तिकाय संग्रह पृष्ठ २३३ (भिन्न
साध्यसाधनभाव); श्री समयसार गाथा ४१४ नी तात्पर्यवृत्ति टीका [बहिरंग सहकारी कारण (अर्थात्
निमित्त); श्री मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २५३ (जे मोक्षमार्ग तो नथी, परंतु मोक्षमार्गनुं निमित्त छे वा
सहचारी छे; तेने उपचारथी मोक्षमार्ग कहीए ते व्यवहारमोक्षमार्ग छे.)]
९२ ]
बृहद्द्रव्यसंग्रह