Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Kaya Padarthono Karta Kon Tatha Kartutvana Vishayama Nayavibhaganu Kathan.

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बे पदार्थ छे, तेनुं कारण पूर्वोक्त, व्यवहार अने निश्चयरत्नत्रयथी विलक्षण मिथ्यादर्शन
ज्ञानचारित्र ए त्रण छे. आ रीते हेय अने उपादेयतत्त्वनुं व्याख्यान करवामां आवतां
साततत्त्व अने नवपदार्थो स्वयमेव सिद्ध थयां.
हवे, कया पदार्थनो कर्ता कोण छे तेनुं कथन करवामां आवे छेःनिज निरंजन
शुद्धात्मभावनाथी उत्पन्न परम आनंद जेनुं एक लक्षण छे, तेवा सुखामृतना रसास्वादथी
पराङ्मुख जीव बहिरात्मा कहेवाय छे; ते बहिरात्मा आस्रव, बंध अने पाप
ए त्रण
पदार्थोनो कर्ता थाय छे; अने कोई वखते मिथ्यात्व अने कषायनो मंद उदय होतां भोगोनी
आकांक्षा आदि निदानबंधथी भाविकाळमां पापानुबंधी पुण्यपदार्थनो पण कर्ता थाय छे.
जे पूर्वोक्त बहिरात्माथी विपरीत लक्षणवाळो सम्यग्द्रष्टि छे ते संवर, निर्जरा अने
मोक्ष
ए त्रण पदार्थोनो कर्ता थाय छे; ज्यारे ते रागादि विभावरहित परमसामायिकमां
स्थिर थवाने शक्तिमान न होय त्यारे विषय - कषायोथी उत्पन्न दुर्ध्यानथी बचवा माटे,
संसारनी स्थितिनो छेद करतो पुण्यानुबंधी तीर्थंकर नामकर्मनी प्रकृति वगेरे विशिष्ट
पुण्यपदार्थनो पण कर्ता थाय छे.
हवे, कर्तृत्वना विषयमां नयविभागनुं कथन करे छेः मिथ्याद्रष्टि जीवने
पुद्गलद्रव्यना पर्यायरूप आस्रव, बंध, पुण्य अने पापपदार्थोनुं कर्तापणुं
कारणं पूर्वोक्तव्यवहारनिश्चयरत्नत्रयाद्विलक्षणं मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्रयमिति एवं
हेयोपादेयतत्त्वव्याख्याने कृते सति सप्ततत्त्वनवपदार्थाः स्वयमेव सिद्धाः
इदानीं कस्य पदार्थस्य कः कर्त्तेति कथ्यतेनिजनिरञ्जनशुद्धात्मभावनोत्पन्न-
परमानन्दैकलक्षणसुखामृतरसास्वादपराङ्मुखो बहिरात्मा भण्यते स चास्रवबन्धपापपदार्थत्रयस्य
कर्ता भवति क्वापि काले पुनर्मन्दमिथ्यात्वमन्दकषायोदये सति भोगाकांक्षादिनिदानबंधेन
भाविकाले पापानुबंधिपुण्यपदार्थस्यापि कर्त्ता भवति यस्तु पूर्वोक्तबहिरात्मनो विलक्षणः
सम्यग्दृष्टिः स संवरनिर्जरामोक्षपदार्थत्रयस्य कर्त्ता भवति रागादिविभावरहितपरमसामायिके
यदा स्थातुं समर्थो न भवति तदा विषयकषायोत्पन्नदुर्ध्यानवञ्चनार्थं संसारस्थितिच्छेदं कुर्वन्
पुण्यानुबंधितीर्थंकरनामप्रकृत्यादिविशिष्ट पुण्यपदार्थस्यापि कर्ता भवति
कर्तृत्वविषये
नयविभागः कथ्यते मिथ्यादृष्टेर्जीवस्य पुद्गलद्रव्यपर्यायरूपाणामास्रवबंधपुण्यपापपदार्थानां
सप्ततत्त्व-नवपदार्थ अधिकार [ ९३
१. जुओःश्री समयसार गाथा २७२ नी आत्मख्याति टीका. (पराश्रित व्यवहारनय छे.); श्री
समयसार गाथा २७२ नी तात्पर्यवृत्ति टीकामां उत्थानिका (परमअभेदरत्नत्रयात्मक
निर्विकल्पसमाधिरूप निश्चयनय वडे विकल्पात्मक व्यवहारनय खरेखर बाधित करवामां आवे छे.)