Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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व्याख्या‘‘अणुगुरुदेहपमाणो’’ निश्चयेन स्वदेहाद्भिन्नस्य केवलज्ञानाद्यनन्तगुण-
राशेरभिन्नस्य निजशुद्धात्मस्वरूपस्योपलब्धेरभावात्तथैव देहममत्वमूलभूताहारभयमैथुन-
परिग्रहसंज्ञाप्रभृतिसमस्तरागादिविभावानामासक्तिसद्भावाच्च यदुपार्जितं शरीरनामकर्म तदुदये
सति अणुगुरुदेहप्रमाणो भवति
स कः कर्ता ? ‘‘चेदा’ चेतयिता जीवः कस्मात् ?
‘‘उवसंहारप्पसप्पदो’’ उपसंहारप्रसर्पतः शरीरनामकर्मजनितविस्तारोपसंहारधर्माभ्यामित्यर्थः
कोऽत्र दृष्टान्तः ? यथा प्रदीपो महद्भाजनप्रच्छादितस्तद्भाजनान्तरं सर्वं प्रकाशयति
लघुभाजनप्रच्छादितस्तद्भाजनान्तरं प्रकाशयति
पुनरपि कस्मात् ? ‘असमुहदो’
असमुद्घातात् वेदनाकषायविक्रियामारणान्तिकतैजसाहारककेवलिसंज्ञसप्तसमुद्घातवर्जनात्
विस्तारने कारणे पोताना नाना के मोटा शरीरप्रमाण रहे छे अने निश्चयनयनी अपेक्षाए
असंख्यातप्रदेशी छे.
टीकाः‘‘अणुगुरुदेहपमाणो’’ निश्चयनयथी पोताना देहथी भिन्न अने केवळ-
ज्ञानादि अनंत गुणसमूहथी अभिन्न एवा निजशुद्धात्मस्वरूपनी उपलब्धिना
अभावथी तथा देहनी ममता जेनुं मूळ छे एवी आहार - भय - मैथुन - परिग्रहरूप संज्ञा
वगेरे समस्त रागादि विभावोमां आसक्तिनो सद्भाव होवाथी जीवे जे शरीरनामकर्म
उपार्जित कर्युं होय छे, तेनो उदय थतां (जीव पोताना) नाना के मोटा देहनी बराबर
थाय छे. ते कोण थाय छे?
‘‘चेदा’’ चेतन अर्थात् जीव. शा कारणे?
‘‘उवसंहारप्पसप्पदो’’ संकोच तथा विस्तारथी; शरीरनामकर्मथी उत्पन्न विस्तार अने
संकोचरूप (जीवना) धर्मथीएवो अर्थ छे.
अहीं द्रष्टान्त शुं छे? जेम दीवो मोटा वासणमां मूकवामां आव्यो होय तो
ते वासणनी अंदर सर्वने प्रकाशे छे अने नाना वासणमां मूकवामां आव्यो होय तो
ते वासणमां सर्वने प्रकाशे छे तेम. वळी, बीजा क्या कारणे आ जीव देहप्रमाण
छे?
‘असमुहदो’ असमुद्घातने लीधे. वेदना, कषाय, विक्रिया, मारणान्तिक, तैजस,
आहारक अने केवळी नामना सात प्रकारना समुद्घात छोडी दीधा होवाने लीधे
(
समुद्घात सिवायनी वात करी होवाने कारणे). सात समुद्घातनुं लक्षण आ रीते
कह्युं छे
१. अहीं एक ज भावने भिन्न अने अभिन्न दर्शावी अनेकान्तस्वरूप सिद्ध कर्युं छे.
षड्द्रव्य-पंचास्तिकाय अधिकार [ २९