Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 10 : Jeeva Nishchyanayathi Lokpraman Asankhyat Pradeshmatra Hova Chhata Vyavaharanayathi Shareerapraman Chhe.

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तदेवातीन्द्रियसुखं सर्वप्रकारेणोपादेयमित्यभिप्रायः एवं कर्ता कर्मफलं न भुक्तं इति
बौद्धमतनिषेधार्थं भोक्तृत्वयाख्यानरूपेण सूत्रं गतम् ।।।।
अथ निश्चयेन लोकप्रमितासंख्येयप्रदेशमात्रोऽपि व्यवहारेण देहमात्रो जीव
इत्यावेदयति
अणुगुरुदेहपमाणो उवसंहारप्पसप्पदो चेदा
असमुहदो ववहारा णिच्छयणयदो असंखदेसो वा ।।१०।।
अणुगुरुदेहप्रमाणः उपसंहारप्रसर्प्पतः चेतयिता
असमुद्घातात् व्यवहारात् निश्चयनयतः असंख्यदेशो वा ।।१०।।
सुखामृत) सर्व प्रकारे उपादेय छे एवो अभिप्राय छे.
आ रीते, ‘कर्ता, कर्मफळने भोगवतो नथी’ ए बौद्धमतनो निषेध करवा माटे
‘भोक्तृत्वना’ व्याख्यानरूपे सूत्र पूरुं थयुं. ९.
हवे निश्चयनयथी लोकप्रमाण असंख्यात प्रदेशमात्र होवा छतां व्यवहारनयथी,
पोताना शरीरप्रमाण जीव छे एम बतावे छेः
गाथा १०
गाथार्थःसमुद्घात सिवाय, आ जीव व्यवहारनयनी अपेक्षाए संकोच -
पंडित हीरालालजी रचित अने मथुरा संघ द्वारा प्रकाशित द्रव्यसंग्रहनी टीका पा. २३ मां गाथा
९ संबंधमां नीचे प्रमाणे लख्युं छेः
‘‘जीवना कर्तृत्व अने भोक्तृत्वनुं विवेचन करवानो ग्रंथकारनो एवो अभिप्राय छे के जीव
यथार्थ वस्तुस्वरूपने जाणीने, परनी अने विकारनी कर्तृत्व अने भोक्तृत्वबुद्धिने छोडे अने पोताना
सहज निर्विकार चिदानंदस्वरूप शुद्धपर्यायनो कर्ता
- भोक्ता थवानो सतत प्रयत्न करे.’’
परवस्तुनुं कांई पण जीव करी शकतो नथी तेम तेने भोगवी पण शकतो नथी. असद्भूत
व्यवहारनये शाताअशाताना उदयने तथा इष्टअनिष्ट इन्द्रियविषयोने जीव भोगवे छे, एम
कहेवामां आवे छे.
[असद्भूत = जूठो]
अणुगुरुदेहमान व्यवहार, सकुचै फैलै जिय निरधार;
समुद्घातबिन कहिए एम, निश्चय देश असंख्य जु नेम. १०.
२८ ]
बृहद्द्रव्यसंग्रह