Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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व्याख्या‘‘ववहारा सुहदुक्खं पुग्गलकम्मफलं पभुंजेदि’’ व्यवहारात् सुखदुःखरूपं
पुद्गलकर्मफलं प्रभुंक्ते स कः कर्त्ता ? ‘‘आदा’’ आत्मा ‘‘णिच्छयणयदो चेदणभावं
आदस्स’ निश्चयनयतश्चेतनभावं भुंक्ते ‘‘खु’’ स्फु टम् कस्य सम्बन्धिनमात्मनः स्वस्येति
तद्यथाआत्मा हि निजशुद्धात्मसंवित्तिसमुद्भूतपारमार्थिकसुखसुधारसभोजनमलभमान
उपचरितासद्भूतव्यवहारेणेष्टानिष्टपञ्चेन्द्रियविषयजनितसुखदुःखं भुंक्ते, तथैवानुपचरिता-
सद्भूतव्यवहारेणाभ्यन्तरे सुखदुःखजनकं द्रव्यकर्म्मरूपं सातासातोदयं भुंक्ते, स
एवाशुद्धनिश्चयनयेन हर्षविषादरूपं सुखदुःखं च भुंक्ते
शुद्धनिश्चयनयेन तु
परमात्मस्वभावसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुष्ठानोत्पन्नसदानन्दैकलक्षणं सुखामृतं भुंक्त इति अत्र
यस्यैव स्वाभाविकसुखामृतस्य भोजनाभावादिन्द्रियसुखं भुञ्जानः सन् संसारे परिभ्रमति
गाथा ९
गाथार्थःव्यवहारनयथी आत्मा सुख - दुःखरूप पुद्गलकर्मना फळने भोगवे छे
अने निश्चयनयथी पोताना चेतनभावने भोगवे छे.
टीकाः‘‘ववहारा सुहदुक्खं पुग्गलकम्मफलं पभुंजेदि’’ व्यवहारनयनी अपेक्षाए सुख
दुःखरूप पुद्गलकर्मनां फळोने भोगवे छे. ते कर्मफळोनो भोक्ता कोण छे? ‘‘आदा’’
आत्मा. ‘‘णिच्छयणयदो चेदणभावं आदस्स’’ निश्चयनयनी अपेक्षाए चेतनभावनो भोक्ता छे.
‘‘खु’’ प्रगटपणे, कोना चेतनभावनो? आत्माना पोताना चेतनभावनो. ते आवी रीतेआत्मा
ज निज शुद्धात्मसंवित्तिथी उत्पन्न पारमार्थिक सुखसुधारसना भोजनने नहि प्राप्त करतो,
उपचरित असद्भूत व्यवहारनयथी इष्ट - अनिष्ट पंचेन्द्रिय विषयजनित सुख - दुःखने भोगवे
छे, तेवी ज रीते अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनयथी अंतरंगमां सुख - दुःखजनक
द्रव्यकर्मरूप शाता अने अशाताना उदयने भोगवे छे अने ते ज अशुद्धनिश्चयनयथी हर्ष
- विषादरूप सुख - दुःखने भोगवे छे; शुद्धनिश्चयनयथी तो परमात्मस्वभावनां सम्यक् श्रद्धान
- ज्ञान - आचरणथी उत्पन्न, सदा आनंद जेनुं एक लक्षण छे एवा सुखामृतने भोगवे छे.
अहीं, जे स्वाभाविक सुखामृतना भोजनना अभावथी आत्मा इन्द्रियसुख
भोगवतो थको संसारमां परिभ्रमण करे छे, ते ज अतीन्द्रिय सुख (स्वाभाविक
१. संसारमां परिभ्रमण करनार प्रथम गुणस्थानधारी सर्वे मिथ्याद्रष्टि छे. चतुर्थ गुणस्थानथी सिद्ध
सुधीना सर्वे जीवो तेमनी भूमिकानी शुद्धि अनुसार आत्मिक अतीन्द्रियसुख भोगवे छे, एवुं आ
गाथानुं तात्पर्य छे.
षड्द्रव्य-पंचास्तिकाय अधिकार [ २७