Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 9 : Jeeva Shuddhanayathi Nirvikar Sukhamrutano Bhokta Chhe Topan Ashuddhanaythi Sansarik Sukh-Dukhano Bhokta Thay Chhe.

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न च हस्तादिव्यापाररूपाणामिति यतो हि नित्यनिरञ्जननिष्क्रियनिजात्मस्वरूपभावनारहितस्य
कर्मादिकर्तृत्वं व्याख्यातम्, ततस्तत्रैव निजशुद्धात्मनि भावना कर्तव्या एवं सांख्यमतं
प्रत्येकान्ताकर्तृत्वनिराकरणमुख्यत्वेन गाथा गता ।।।।
अथ यद्यपि शुद्धनयेन निर्विकारपरमाह्लादैकलक्षणसुखामृतस्य भोक्ता तथाप्यशुद्धनयेन
सांसारिकसुखदुःखस्यापि भोक्तात्मा भवतीत्याख्याति
ववहारा सुहदुक्खं पुग्गलकम्मप्फलं पभुंजेहि
आदा णिच्छयणयदो चेदणभावं खु आदस्स ।।।।
व्यवहारात् सुखदुःखं पुद्गलकर्म्मफलं प्रभुङ्क्ते
आत्मा निश्चयनयतः चेतनभावं खलु आत्मनः ।।।।
भावनारूपे, विवक्षित एकदेश शुद्ध निश्चयनयथी कर्ता छे अने मुक्त अवस्थामां शुद्धनयथी
अनंत ज्ञान
सुखादि शुद्धभावोनो कर्ता छे.
परंतु परिणमता एवा शुद्धअशुद्ध भावोनुं ज कर्तापणुं जीवमां जाणवुं, हस्तादिना
व्यापाररूप (पुद्गलपरिणामो)नुं नहि.
नित्यनिरंजननिष्क्रिय निजात्मस्वरूपनी भावना रहित जीवने कर्मादिनुं कर्तापणुं
कह्युं छे, तेथी ते निज शुद्धात्मामां ज भावना करवी.
आ रीते सांख्यमत प्रत्ये एकांत अकर्तृत्वनुं (जीव एकांते अकर्ता होवानुं)
निराकरण करवानी मुख्यताथी गाथा पूरी थई. ८.
हवे, जोके आत्मा शुद्धनयथी निर्विकार परम आह्लाद जेनुं एक लक्षण छे एवा
सुखामृतनो भोक्ता छे, तोपण अशुद्धनयथी सांसारिक सुख - दुःखनो पण भोक्ता थाय छे,
एम कहे छेः
१. श्री समयसारमां पण जीव पुद्गलादि के अन्य जीवोनी पर्यायोनो कर्ता नथी, एम कर्ताकर्मअधिकार
तथा सर्वविशुद्धज्ञानअधिकारमां कह्युं छे. शरीरनी, परपदार्थोनी, बोलवानी, खावापीवानी इत्यादि
क्रियाओमां जे अनादि अज्ञानथी जीवनी कर्तृत्वबुद्धि छे, ते पोताना त्रिकाळ आत्मस्वरूपना लक्षे शुद्धरूपे
परिणमवाथी ज तूटे माटे ‘जीव परपदार्थनी कोई क्रिया खरेखर एक समय पण करी शकतो नथी’
एवो निर्णय करवो
ए आ गाथानुं तात्पर्य छे.
सुखदुःखमय फल पुद्गलकर्म, भोगै नय व्यवहार सुमर्म;
निश्चयनय निज चेतनभाव, जीव भोगवै सदा कहाव. ९.
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