Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 11 : Sansari Jeevanu Swaroop Nayavibhagathi.

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पुढविजलतेयवाऊ वण्णफ्फ दी विविहथावरेइंदी
विगतिगचदुपंचक्खा तसजीवा होंति संखादी ।।११।।
पृथिवीजलतेजोवायुवनस्पतयः विविधस्थावरैकेन्द्रियाः
द्विकत्रिकचतुःपञ्चाक्षाः त्रसजीवाः भवन्ति शंखादयः ।।११।।
व्याख्या‘‘होंति’’ इत्यादिव्याख्यानं क्रियते ‘‘होंति’’ अतीन्द्रियामूर्तनिजपरमात्म-
स्वभावानुभूतिजनितसुखामृतरसस्वभावमलभमानास्तुच्छमपीन्द्रियसुखमभिलषन्ति छद्मस्थाः,
तदासक्ताः सन्त एकेन्द्रियादिजीवानां घातं कुर्वन्ति तेनोपार्जितं यत्त्रसस्थावरनामकर्म
तदुदयेन जीवा भवन्ति
कथंभूता भवन्ति ? ‘‘पुढविजलतेयवाऊ वणफ्फ दी
विविहथावरेइंदी’’ पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः कतिसंख्योपेता ? विविधा आगम-
कथितस्वकीयस्वकीयान्तर्भेदैर्बहुविधाः स्थावरनामकर्मोदयेन स्थावरा, एकेन्द्रियजाति-
नामकर्मोदयेन स्पर्शेनेन्द्रिययुक्ता एकेन्द्रियाः, न केवलमित्थं भूताः स्थावरा भवन्ति
गाथा ११
गाथार्थःपृथ्वी, जळ, अग्नि, वायु अने वनस्पति वगेरे विविध प्रकारना स्थावर,
एकेन्द्रिय जीवो छे अने शंखादि बे, त्रण, चार तथा पांच इन्द्रियवाळा त्रस जीवो छे.
टीकाः‘‘होंति’’ वगेरे पदोनी व्याख्या करवामां आवे छे. ‘‘होंति’ छद्मस्थ जीव,
अतीन्द्रिय अमूर्त निजपरमात्मस्वभावनी अनुभूतिथी उत्पन्न सुखरूपी अमृतरसस्वभावने
प्राप्त न करतां, इन्द्रियसुख तुच्छ होवा छतां तेनी अभिलाषा करे छे, तेमां आसक्त थईने
एकेन्द्रियादि जीवोनो घात करे छे, ते जीवघातथी उपार्जित त्रस अने स्थावर नामकर्मना
उदयथी जीवो थाय छे. केवा थाय छे?
‘‘पुढविजलतेयवाऊ वणफ्फ दी विविहथावरेइंदी’’ पृथ्वी,
जळ, तेज, वायु अने वनस्पतिएवा प्रकारना छे, आगममां कहेला पोतपोताना अनेक
प्रकारना अवान्तर भेदवाळा छे. स्थावर नामकर्मना उदयथी स्थावर, एकेन्द्रियजाति-
नामकर्मना उदयथी स्पर्शेन्द्रियसहित एकेन्द्रिय होय छे. तेओ मात्र आवा स्थावरो ज नथी
भूमि तेज जल वृक्ष समीर, एकेन्द्रिय थावर जु शरीर;
बे ते चउ पण इन्द्रिय जीव, त्रस है संख आदि भवनीव. ११.
षड्द्रव्य-पंचास्तिकाय अधिकार [ ३३
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