Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 22 : Nishchayakalana Rahevana Kshetranu Tatha Dravyani Sankhyanu Pratipadan.

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बहुना योऽसावनाद्यनिधनस्तथैवामूर्त्तो नित्यः समयाद्युपादानकारणभूतोऽपि समयादि-
विकल्परहितः कालाणुद्रव्यरूपः स निश्चयकालो, यस्तु सादिसान्तसमयघटिकाप्रहरादिविवक्षित-
व्यवहारविकल्परूपस्तस्यैव द्रव्यकालस्य पर्यायभूतो व्यवहारकाल इति
अयमत्र भावः यद्यपि
काललब्धिवशेनानन्तसुखभाजनो भवति जीवस्तथापि विशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावनिज-
परमात्मतत्त्वस्य सम्यक्श्रद्धानज्ञानानुष्ठानसमस्तबहिर्द्रव्येच्छानिवृत्तिलक्षणतपश्चरणरूपा या
निश्चयचतुर्विधाराधना सैव तत्रोपादानकारणं ज्ञातव्यम् न च कालस्तेन स हेय इति
।।२१।।
अथ निश्चयकालस्यावस्थानक्षेत्रं द्रव्यगणनां च प्रतिपादयति :
लोयायासपदेसे इक्किक्के जे ठिया हु इक्किक्का
रयणाणं रासी इव ते कालाणू असंखदव्वाणि ।।२२।।
लोकाकाशप्रदेशे एकैकस्मिन् ये स्थिताः हि एकैकाः
रत्नानां राशिः इव ते कालाणवः असंख्यद्रव्याणि ।।२२।।
घणुं कहेवाथी शुं? जे अनादिनिधन छे, अमूर्त छे, नित्य छे, समयादिना
उपादानकारणभूत होवा छतां समयादिना भेदरहित छे, ते कालाणुद्रव्यरूप निश्चयकाळ छे.
अने जे सादि
- सान्त छे, समय, घडी, प्रहर आदि विवक्षित व्यवहारनयना भेदरूप छे ते,
ते ज द्रव्यकाळना पर्यायरूप व्यवहारकाळ छे.
सारांश ए छे केजो के काळलब्धिना वशे जीव अनंतसुखनुं भाजन थाय छे,
तोपण विशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावी निजपरमात्मतत्त्वनां सम्यक्श्रद्धान - ज्ञान - आचरणरूप तथा
समस्त बहिर्द्रव्यनी इच्छानी निवृत्ति जेनुं लक्षण छे, एवा तपश्चरणरूप जे निश्चय चतुर्विध
आराधना छे ते ज तेमां उपादानकारण जाणवुं, काळ नहि; तेथी ते (काळ) हेय छे. २१.
हवे, निश्चयकाळना रहेवाना क्षेत्रनुं तथा द्रव्यनी संख्यानुं प्रतिपादन करे छेः
गाथा २२
गाथार्थःजे लोकाकाशना एक एक प्रदेश पर रत्नोना ढगलानी जेम
भिन्नभिन्नपणे एक एक स्थित छे, ते कालाणु असंख्य द्रव्य छे.
लोकाकाशप्रदेशनि मांहि, एक एक परि जुदे गिणांहि;
जे असंख्य तिष्ठै थिररूप, कालाणू जिम रत्ननि तूप. २२.
षड्द्रव्य-पंचास्तिकाय अधिकार [ ७१