अथवा नरनारकादिपर्यायस्य जीवोपादानकारणवदिति
तथैव घटिकाकालपर्यायोत्पत्तौ घटिकासामग्रीभूतजलभाजनपुरुषहस्तादिव्यापारो, दिवसपर्याये
तु दिनकरबिम्बमुपादानकारणमिति
शुक्लकृष्णादिगुणाः प्राप्नुवन्ति, न च तथा
पर्यायना उपादानकारण चोखानी जेम, कुंभार, चाक, दोरी आदि बहिरंग निमित्तथी उत्पन्न
माटीना घटपर्यायना उपादानकारण माटीना पिंडानी जेम. अथवा नर
ते पण शा माटे? ‘उपादानकारणना जेवुं ज कार्य थाय छे’ एवुं वचन होवाथी.
निमेषरूप पर्यायनी उत्पत्तिमां आंखोनुं मींचावुं अने ऊघडवुं, घडीरूप काळपर्यायनी
उत्पत्तिमां घडीनी सामग्रीरूप पाणीनो वाटको, माणसना हाथ आदिनो व्यापार अने
दिवसरूप पर्यायनी उत्पत्तिमां सूर्यनुं बिंब उपादानकारण छे.’’ पण एम नथी. जो एम
होय तो, जेम चावलरूप उपादानकारणथी उत्पन्न थयेल भातरूप पर्यायमां सफेद, कृष्ण
वगेरे रंग, सारी के नरसी गंध, स्निग्ध के रूक्षादि स्पर्श, मधुर वगेरे रस इत्यादि
विशेष गुणो देखाय छे, तेम पुद्गलपरमाणु, आंखोनुं मींचावुं-ऊघडवुं, पाणीनो कटोरो
अने मनुष्यनो व्यापार आदि, तथा सूर्यबिंबरूप उपादानभूत पुद्गलपर्यायोथी उत्पन्न
समय, निमिष, घडी, दिवस आदि काळपर्यायोमां पण सफेद, कृष्ण आदि गुणो प्राप्त
थवा जोईए! पण तेम थतुं नथी. कारण के, उपादानकारण समान कार्य थाय छे; एवुं
वचन छे.