Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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परिस्पन्दलक्षणरूपया वा क्रियया तथैव दूरासन्नचलनकालकृतपरत्वापरत्वेन च लक्ष्यते ज्ञायते
यः, स परिणामक्रियापरत्वापरत्वलक्षण इत्युच्यते
अथ द्रव्यरूपनिश्चयकालमाह
स्वकीयोपादानरूपेण स्वयमेवपरिणममानानां पदार्थानां कुम्भकारचक्रस्याधस्तनशिलावत्,
शीतकालाध्ययने अग्निवत्, पदार्थपरिणतेर्यत्सहकारित्वं सा वर्त्तना भण्यते
सैव लक्षणं यस्य
स वर्त्तनालक्षणः कालाणुद्रव्यरूपो निश्चयकालः, इति व्यवहारकालस्वरूपं निश्चयकालस्वरूपं
च विज्ञेयम्
कश्चिदाह ‘‘समयरूप एव निश्चयकालस्तस्मादन्यः कालाणुद्रव्यरूपो निश्चयकालो
नास्त्यदर्शनात् ?’’ तत्रोत्तरं दीयतेसमयस्तावत्कालस्तस्यैव पर्यायः स कथं पर्याय इति
चेत् ? पर्यायस्तोत्पन्नप्रध्वंसित्वात् तथाचोक्तं ‘‘समओ उप्पण्णं पद्धंसी’’ स च पर्यायो
द्रव्यं विना न भवति, पश्चात्तस्य समयरूपपर्यायकालस्योपादानकारणभूतं द्रव्यं तेनापि
परिणामथीपर्यायथी तथा एक प्रदेशथी बीजे प्रदेशे चालवारूप अथवा गाय दोहवी, रसोई
करवी वगेरे परिस्पंदरूप क्रियाथी तेमज दूर के नजीक चालवारूप काळकृत परत्व अने
अपरत्वथी ते लक्षित थाय छे
जणाय छे; तेथी ते व्यवहारकाळ परिणाम, क्रिया, परत्व
अने अपरत्वलक्षणवाळो कहेवाय छे.
हवे, द्रव्यरूप निश्चयकाळ विषे कहे छेःपोताना उपादानरूपे स्वयमेव परिणमता
पदार्थोनेकुंभारना चाकडाने फरवामां नीचेनी शिलाना सहकारीपणानी पेठे, ठंडीमां
अभ्यास करता विद्यार्थीने अध्ययनमां अग्निना सहकारीपणानी पेठेपदार्थ परिणतिमां
जे सहकारीपणुं छे तेने ‘वर्तना’ कहे छे; ए ‘वर्तना’ जेनुं लक्षण छे ते, वर्तनालक्षणवाळो
काळाणुद्रव्यरूप ‘निश्चयकाळ’ छे.
ए रीते व्यवहारकाळ अने निश्चयकाळनुं स्वरूप जाणवुं.
कोई कहे छे के, समयरूप ज निश्चयकाळ छे; तेनाथी भिन्न बीजो काळाणुद्रव्यरूप
निश्चयकाळ नथी, केमके ते देखवामां आवतो नथी. तेनो उत्तर आपे छेःप्रथम तो समय
काळनो ज पर्याय छे. समय काळनो पर्याय केवी रीते छे? पर्याय उत्पन्नध्वंसी होय छे
तेथी. तथा कह्युं छे के
‘‘समओ उप्पण्ण पद्धंसी । (समय उत्पन्न थाय छे अने नाश पामे
छे.)’’ अने ते पर्याय द्रव्य विना होतो नथी. ते समयरूप पर्यायकाळना उपादानकारणरूप
१. श्री प्रवचनसार गाथा १३९ छेल्लो भाग.
षड्द्रव्य-पंचास्तिकाय अधिकार [ ६९