Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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द्रव्यपरिवर्तनरूपः यः सः कालः भवेत् व्यवहारः
परिणामादिलक्ष्यः वर्त्तनालक्षणः च परमार्थः ।।२१।।
व्याख्या‘‘दव्वपरिवट्टरूवो जो’’ द्रव्यपरिवर्त्तरूपो यः ‘‘सो कालो हवेइ ववहारो’’
स कालो भवति व्यवहाररूपः स च कथंभूतः ? ‘‘परिणामादीलक्खो’’
परिणामक्रियापरत्वापरत्वेन लक्ष्यत इति परिणामादिलक्ष्यः इदानीं निश्चयकालः कथ्यते
‘‘वट्टणलक्खो य परमट्ठो’’ वर्त्तनालक्षणश्च परमार्थकाल इति तद्यथाजीवपुद्गलयोः
परिवर्त्तो नवजीर्णपर्यायस्तस्य या समयघटिकादिरूपा स्थितिः स्वरूपं यस्य स भवति
द्रव्यपर्यायरूपो व्यवहारकालः
तथाचोक्तं संस्कृतप्राभृतेन‘‘स्थितिः कालसंज्ञका’’ तस्य
पर्यायस्य सम्बन्धिनी याऽसौ समयघटिकादिरूपा स्थितिः सा व्यवहारकालसंज्ञा भवति, न
च पर्याय इत्यभिप्रायः
यत एव पर्यायसम्बन्धिनी स्थितिर्व्यवहारकालसंज्ञां भजते तत एव
जीवपुद्गलसम्बन्धिपरिणामेन पर्यायेण तथैव देशान्तरचलनरूपया गोदोहनपाकादि-
गाथा २१
गाथार्थःजे द्रव्योना परिवर्तनरूप छे (अर्थात् द्रव्यपरिवर्तननी स्थितिरूप छे)
अने परिणामादिथी लक्षित थाय छे ते व्यवहारकाळ छे; वर्तना लक्षणवाळो जे काळ छे
ते निश्चयकाळ छे.
टीकाः‘‘दव्वपरिवट्टरूवो जो’’ जे द्रव्यना परिवर्तनरूप छे (अर्थात् द्रव्यना पर्याय
साथे संबंधवाळी काळावधिरूप छे) ‘‘सो कालो हवेइ ववहारो’’ ते काळ व्यवहाररूप छे. अने
ते केवो छे? ‘‘परिणामादीलक्खो’’ परिणाम, क्रिया, परत्व अने अपरत्वथी लक्षित थाय छे
जणाय छे, तेथी ते परिणामादिथी लक्ष्य छे.
हवे, निश्चयकाळ विषे कहेवामां आवे छे. वट्टणलक्खो य परमट्ठो’’ जे वर्तनलक्षणवाळो
छे ते परमार्थकाळ छे.
ते स्पष्ट करवामां आवे छेःजीव अने पुद्गलना परिवर्तनरूप जे नवी अने
जूनी पर्याय तेनी समयघडी इत्यादिरूप ‘स्थिति’ जेनुं स्वरूप छे, ते द्रव्यपर्यायरूप
व्यवहारकाळ छे. संस्कृतभाषामां पण ते ज कह्युं छे‘‘स्थितिः कालसंज्ञकाः (स्थितिने काळ
एवी संज्ञा छे).’’ ते पर्याय साथे संबंधवाळी जे समय, घडी वगेरेरूप स्थिति छे ते ‘स्थिति’
व्यवहारकाळ छे. (पुद्गलादिना परिवर्तनरूप) पर्याय व्यवहारकाळ नथी
एवो अभिप्राय
छे. पर्यायसंबंधी स्थितिने व्यवहारकाळ एवुं नाम मळे छे, तेथी ज जीव अने पुद्गलना
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