Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 21 : Nishchayakal Ane Vyavaharakalnu Swaroop.

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लोकाकाशप्रमितासंख्येयकालाणुद्रव्याणि, प्रत्येकं लोकाकाशप्रमाणं धर्माधर्मद्वयमित्युक्तलक्षणाः
पदार्थाः कथमवकाशं लभन्त इति ? भगवानाह
एकप्रदीपप्रकाशे नानाप्रदीप-
प्रकाशवदेकगूढरसनागगद्याणके बहुसुवर्णवद्भस्मघटमध्ये सूचिकोष्ट्रदुग्धवदित्यादिदृष्टान्तेन
विशिष्टावगाहनशक्तिवशादसंख्यातप्रदेशेऽपि लोकेऽवस्थानमवगाहो न विरुध्यते
यदि
पुनरित्थंभूतावगाहनशक्तिर्न भवति तर्ह्यसंख्यातप्रदेशेष्वसंख्यातपरमाणूनामेव व्यवस्थानं, तथा
सति सर्वे जीवा यथा शुद्धनिश्चयेन शक्तिरूपेण निरावरणाः शुद्धबुद्धैकस्वभावास्तथा
व्यक्तिरूपेण व्यवहारनयेनापि, न च तथा प्रत्यक्षविरोधादागमविरोधाच्चेति
एवमाकाशद्रव्यप्रतिपादनरूपेण सूत्रद्वयं गतम् ।।२०।।
अथ निश्चयव्यवहारकालस्वरूपं कथयति :
दव्वपरिवट्टरूवो जो सो कालो हवेइ ववहारो
परिणामादीलक्खो वट्टणलक्खो य परमट्ठो ।।२१।।
लोकमां अनंत जीवो, तेनां करतां पण अनंतगुणा पुद्गलो, लोकाकाश प्रमाण असंख्यात
काळद्रव्यो, प्रत्येक लोकाकाशप्रमाण एवा धर्म अने अधर्म बे द्रव्यो
ए पदार्थो केवी रीते
अवकाश मेळवे छे?
भगवान उत्तर आपे छेःएक दीपकना प्रकाशमां अनेक दीपकोनो प्रकाश, एक
गूढ रसना शीशामां घणुं सुवर्ण, राखथी भरेला घडामां सोय तथा ऊंटडीनुं दूध जेम समाई
जाय छे
इत्यादि द्रष्टांते, विशिष्ट अवगाहनशक्तिने लीधे असंख्यप्रदेशवाळा लोकमां पण
पूर्वोक्त पदार्थोना अवगाहमां विरोध आवतो नथी. वळी, जो आ प्रकारनी अवगाहन-
शक्ति न होय तो लोकना असंख्य प्रदेशोमां असंख्य परमाणुओनो ज समावेश थात अने
एम थतां जेम शुद्धनिश्चयनयथी शक्तिरूपे बधा जीवो निरावरण अने शुद्ध
बुद्धएक
स्वभाववाळा छे, तेम व्यक्तरूपे व्यवहारनयथी पण थई जाय! परंतु एम तो नथी, केमके
प्रत्यक्ष अने आगमबन्ने प्रकारे तेमां विरोध छे.
आ प्रमाणे आकाशद्रव्यना प्रतिपादनरूपे बे गाथाओ पूरी थई. २०.
हवे, निश्चयकाळ अने व्यवहारकाळनुं स्वरूप कहे छेः
द्रव्यनिके परिवर्तनरूप, काल लखो व्यवहार विरूप;
लख्यो पडै परिणामनि एह, निश्चय वर्तन लक्षण तेह. २१.
षड्द्रव्य-पंचास्तिकाय अधिकार [ ६७