Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Chha Dhala; Aavrutti; Prastavana; Jeevane Anadithi Sat Tattva Vishe Bhoolo; Uparni Bhoolonu Phal; Dharm Pamavano Samay; Mithyatvanu Mahapap; Vastunu Swaroop; Samyagdrashtini Bhavana; Samyak Charitra Tatha Maha Vrat; Dravyarthik Naye Nishchyanu Swaroop Ane Tena Ashraye Thato Suddha Paryay; Paryayarthiknaye Nishchy Ane Vyavaharnu Swaroop; Bija Vishyo; Pathakone Vinnati; Prakashkiy Nivedan; Vrat-sanyam Kyare?; Jain Shastrona Arth Karavani Paddhati; Vishayanukramanika.

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भगवानश्रीकुंदकुंद-कहानजैनशास्त्रमाळा, पुष्प
कविवर अध्यात्मप्रेमी पंडित
श्री दौलतरामजी कृत
छ ढाळा
[ टीका सहित ]
ः प्रकाशकः
श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट,
सोनगढ३६४ २५० (सौराष्ट्र)

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अत्यार सुधी छपायेल कुल प्रतः १९,८००
बारमी आवृत्ति प्रतः ३,००० वि. सं. २०५८
ः मुद्रकः
कहान मुद्रणालय
जैन विद्यार्थीगृह, सोनगढ-
फोनः (०२८४६) ४४०८१
आ आवृत्तिनी पडतर किंमत रुा. २०=०० थाय छे.
अनेक मुमुक्षुओनी आर्थिक सहायथी तेनी किंमत
रुा. १८=०० थाय छे. तेमांथी ५०% स्व श्री शांतिलाल
रतिलाल शाह तरफथी किंमत घटाडवामां आवतां आ
आवृत्तिनी वेचाण-किंमत रुा. ९=०० राखवामां आवी छे.
श्री छ ढाळा(गुजराती)ना
स्थायी प्रकाशन-पुरस्कर्ता
श्रीमती लताबेन अनंतराय शाह, जलगांव
अ.सौ. रश्मि सुधेश, अ.सौ. रुपल हितेश, मोक्षा, आगम.
किंमत रूा. ९=००


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प्रस्तावना
कविवर पंडित दौलतरामजी कृत ‘छ ढाळा’ जैनसमाजमां
सारी रीते प्रचलित छे. घणा भाईबहेनो तेनो नित्य पाठ करे
छे; जैन पाठशाळाओनुं ते एक पाठ्यपुस्तक छे. संवत १८९१ना
वैशाख सुद ३ (अक्षय त्रीज)ना रोज ग्रंथकारे तेनी रचना पूरी
करी हती. आ ग्रंथमां धर्मनुं स्वरूप टूंकामां सारी रीते बताववामां
आव्युं छे, अने ते बाळकथी मांडी वृद्ध सुधी सर्वे जीवो तरत
समजी शके तेवी सरळ भाषामां आपवामां आव्युं छे.
आ ग्रंथमां छ-ढाळ (छ प्रकरणो) छे; तेमां आवतां
विषयो टूंकमां आपवामां आवे छेः
जीवने अनादिथी सात तत्त्व विषे भूलो
आ ग्रंथनी बीजी ढाळमां जीवने अनादिथी चाली आवती
सात तत्त्व विषे भूलोनुं स्वरूप आपवामां आव्युं छे, ते टूंकमां
नीचे मुजब छेः
१. ‘शरीर ते हुं छुं’ एम जीव अनादिथी मानी रह्यो
छे, तेथी हुं तेने हलावीचलावी शकुं, शरीरनां कार्यो हुं करी
शकुं, शरीर सारुं होय तो मने लाभ थायए वगेरे प्रकारे
ते शरीरने पोतानुं माने छे, आ महा भ्रम छे. आ जीवतत्त्वनी
भूल छे एटले के जीवने ते अजीव माने छे.
२. शरीरनी उत्पत्तिथी जीवनो जन्म अने शरीरना
वियोगथी जीवनुं मरण ते माने छे, तेमां अजीवने जीव माने
[ ३ ]

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छे, आ अजीवतत्त्वनी भूल छे.
३. मिथ्यात्व, रागादि प्रगट दुःख देनारां छे, छतां तेनुं
सेवन करवामां सुख माने छे. आ आस्रवतत्त्वनी भूल छे.
४. शुभने लाभदायक अने अशुभने नुकसानकारक ते
माने छे, पण तत्त्वद्रष्टिए ते बन्ने नुकसानकारक छे एम
ते मानतो नथी
बंधतत्त्वनी भूल छे.
५. सम्यग्ज्ञान तथा ते पूर्वकनो वैराग्य जीवने सुखरूप
छे, छतां ते पोताने कष्ट आपनार अने न समजाय एवां
छे
एम जीव माने छेते संवरतत्त्वनी भूल छे.
६. शुभाशुभ इच्छाओने नहि रोकतां, इन्द्रियोना विषयो
प्रत्ये इच्छा कर्या करे छे ते निर्जरातत्त्वनी भूल छे.
७. सम्यग्दर्शनपूर्वक ज पूर्ण निराकुळता प्रगट थाय छे,
अने ते ज खरुं सुख छेएम न मानतां, बाह्य वस्तुओनी
सगवडोथी सुख मळी शके एम जीव माने छे ते मोक्षतत्त्वनी
भूल छे.
उपरनी भूलोनुं फळ
आ ग्रंथनी पहेली ढाळमां आ भूलोनुं फळ बताव्युं छे.
आ भूलोनुं फळ जीवने समये समये अनंत दुःखनो
भोगवटो छे; एटले के चारे गतिओमां
मनुष्य, देव, तिर्यंच
के नारक तरीके जन्मीमरी दुःख भोगवे छे. लोको
देवगतिमां सुख माने छे पण ते भ्रमणा छेखोटुं छे. गाथा
[ ४ ]

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१५१६मां ते स्पष्ट बताववामां आव्युं छे.
आ गतिओमां मुख्य गति निगोदएकेन्द्रियनी छे,
संसारदशामां वधारेमां वधारे काळ जीव तेमां काढे छे. ते
अवस्था टाळी बेइन्द्रियथी पंचेन्द्रिय भाग्ये ज थाय छे; अने
तेमां पण मनुष्यपणुं प्राप्त करवुं तो अति
अति दीर्घकाळे
बने छे, एटले के जीव मनुष्यभव ‘लगभग नहिवत्’ पामे
छे.
धर्म पामवानो समय
जीवने धर्म पामवानो मुख्य समय मनुष्यपणुं छे; तेथी
जो जीव धर्म समजवानी शरूआत करे तो ते कायमने माटे
दुःख टाळी शके. परंतु मनुष्यभवमां पण कां तो धर्मनो यथार्थ
विचार करतो नथी, अगर तो धर्मने नामे चालती अनेक
मिथ्या मान्यताओमांथी कोई ने कोई खोटी मान्यताने ग्रहण
करे छे अने कुदेव, कुगुरु तथा कुशास्त्रमां ते फसाई जाय
छे; अथवा तो ‘बधा धर्मो एक छे’ एम उपलक द्रष्टिए
मानी लईने बधानो समन्वय करवा लागे छे अने पोतानी
ए भ्रमणावाळी बुद्धिने, विशाळबुद्धि मानीने अभिमान सेवे
छे; कदी ते जीव सुदेव, सुगुरु अने सुशास्त्रनुं बाह्य स्वरूप
समजे तोपण पोतानुं खरुं स्वरूप समजवा जीव यथार्थ प्रयास
करतो नथी; तेथी ते फरी फरीने संसारचक्रमां रखडी पोतानो
मोटामां मोटो काळ निगोद
एकेन्द्रियपणामां काढे छे.
[ ५ ]

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मिथ्यात्वनुं महापाप
उपर कह्युं ते बधानुं मूळ कारण पोताना स्वरूपनी जीवने
भ्रमणा छे. परनुं हुं करी शकुं, पर मारुं करी शके, परथी मने
लाभ थाय, परथी मने नुकशान थाय
एवी मिथ्या मान्यतानुं
नित्य अपरिमित महापाप दरेक क्षणे जीव सेव्या करे छे; ते
महापापने शास्त्रीय परिभाषामां मिथ्यादर्शन कहेवामां आवे छे.
तेना फळ तरीके क्रोध, मान, माया, लोभ जे परिमित पाप छे
तेने तीव्र के मंदपणे सेवे छे. जीवो क्रोधादिकने पाप गणे छे,
पण तेनुं मूळियुं मिथ्यादर्शनरूप महापाप छे तेने तेओ
ओळखता नथी, तो पछी तेने टाळे क्यांथी?
वस्तुनुं स्वरूप
वस्तुस्वरूप कहो के जैनधर्म कहो, ते बंने एक ज छे.
तेनो विधि एवो छे केपहेलां मोटुं पाप छोडावी पछी नानुं
पाप छोडावे छे, माटे महापाप शुं अने नानुं पाप शुं ते
प्रथम समजवानी खास जरूर छे.
जुगार, २मांसभक्षण, ३मदिरापान, ४वेश्या-
गमन, ५शिकार, ६परनारीनो संग अने ७चोरी.
सात जगतमां मोटा व्यसनो गणाय छे, पण ए साते व्यसनो
करतां मिथ्यात्व ते महापाप छे, तेथी तेने प्रथम छोडाववानो
जैनधर्मनो उपदेश छे; छतां उपदेशको, प्रचारको अने
अग्रेसरोनो मोटो भाग मिथ्यात्वना यथार्थ स्वरूपथी अजाण छे;
[ ६ ]

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आ स्थितिमां महापापरूप मिथ्यात्व टाळवानो उपदेश तेओ
क्यांथी आपी शके? तेओ ‘पुण्य’ने धर्ममां सहायक मानी तेना
उपदेशनी मुख्यता करे छे; ए प्रमाणे धर्मने नामे महा
मिथ्यात्वरूपी पापने अव्यकत रीते पोषे छे. आ भूल जीव टाळी
शके ते माटे सम्यग्दर्शन अने मिथ्यादर्शन तथा सम्यग्ज्ञान अने
मिथ्याज्ञाननुं स्वरूप आ ग्रंथनी त्रीजी अने चोथी ढाळमां आपेल
छे. आनो अर्थ एवो नथी के शुभने बदले अशुभभाव जीवे
करवा; पण शुभ भावने धर्म के धर्ममां सहायक मानवो नहीं,
नीचली अवस्थामां शुभ भाव थया विना रहे नहीं, पण तेने
धर्म मानवो ते मिथ्यात्वरूप महापाप छे.
सम्यग्द्रष्टिनी भावना
पांचमी ढाळमां बार भावनानुं स्वरूप आप्युं छे;
सम्यग्द्रष्टि जीवने ज आ खरी भावना होय छे.
सम्यग्दर्शनथी ज धर्मनी शरूआत थाय छे, तेथी सम्यग्द्रष्टि
जीवने ज आ बार प्रकारनी भावना होय छे; तेमां जे शुभ
भाव थाय छे तेने ते धर्म मानता नथी पण बंधनुं कारण माने
छे, जेटलो राग टळे छे तथा सम्यग्दर्शन
ज्ञाननी जे द्रढता थाय
छे तेने ते धर्म माने छे, तेथी तेने संवरनिर्जरा थाय छे.
अज्ञानीओ तो शुभ भावने धर्म अथवा धर्ममां सहायक माने
छे तेथी तेमने आ खरी भावना होती नथी.
सम्यक्चारित्र तथा महाव्रत
सम्यग्द्रष्टि जीव पोताना स्वरूपमां स्थिर रहे तेने
[ ७ ]

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सम्यक्चारित्र कहेवामां आवे छे, अने तेमां स्थिर रही शके
नहि त्यारे तेने शुभभावरूप अणुव्रत के महाव्रत होय छे,
पण तेमां थता शुभ भावने ते धर्म मानता नथी; ते वगेरेनुं
स्वरूप छठ्ठी ढाळमां कह्युं छे.
द्रव्यार्थिकनये निश्चयनुं स्वरूप अने तेना
आश्रये थतो शुद्धपर्याय
आत्मानो स्वभाव त्रिकाळी शुद्ध अखंड चैतन्यमय छे
ए सम्यग्दर्शननो तथा निश्चयनयनो विषय होवाथी
द्रव्यार्थिकनये आ त्रिकाळी शुद्ध अखंड चैतन्यस्वरूप आत्माने
‘निश्चय’ कहेवामां आवे छे, आत्मानो ते त्रिकाळी सामान्य
स्वभाव द्रव्यार्थिकनये आत्मानुं स्वरूप छे, त्रिकाळी शुद्धता
तरफना वलणथी जीवनो जे शुद्ध पर्याय प्रगटे छे ते शुद्ध
पर्यायने ‘व्यवहार’ कहेवामां आवे छे, ते सद्भूत व्यवहार
छे. अने अवस्थामां जे विकार के रागनो अंश रहे छे ते
पर्याय जीवनो असद्भूत व्यवहार छे; असद्भूत व्यवहार
जीवनुं परमार्थ स्वरूप नहि होवाथी टळी शके छे, अने तेथी
निश्चयनये ते जीवनुं स्वरूप नथी एम समजवुं.
पर्यायार्थिकनये निश्चय अने व्यवहारनुं स्वरूप
अथवा
निश्चय अने व्यवहार पर्यायनुं स्वरूप
उपर कहेल स्वरूप नहि जाणनार जीवो शुभ करतां करतां
[ ८ ]

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धर्म (शुद्धता) थाय एम माने छे अने तेओ शुभने व्यवहार
माने छे तथा ते करतां करतां भविष्यमां निश्चय (शुद्धभाव
धर्म)
थशे एम तेओ माने छेआ एक महान भूल छे; तेथी तेनुं
साचुं स्वरूप अहीं टूंकमां आपवामां आवे छेः
सम्यग्द्रष्टि जीवने निश्चय (शुद्ध) अने व्यवहार (शुभ)
एवा चारित्रना मिश्र पर्याय नीचली अवस्थामां एकी वखते
होय छे. कोई वखते निश्चय (शुद्ध भाव) मुख्यपणे होय छे
कोई वखते व्यवहार (शुभभाव) मुख्यपणे होय छे. आनो
अर्थ एवो छे के सम्यग्द्रष्टि जीव पोताना स्वरूपमां स्थिर रहे
तेनुं नाम निश्चयपर्याय (शुद्धता) छे, अने तेमां स्थिर रही
शके नहि त्यारे स्वलक्षे अशुभभाव टाळी शुभमां रहे अने
ते शुभने धर्म माने नहीं, तेने व्यवहारपर्याय (शुभपर्याय)
कहेवामां आवे छे; केमके ते जीवने शुभपर्याय थोडा वखतमां
टळी शुद्धपर्याय प्रगटे छे; आ अपेक्षा लक्षमां राखी व्यवहार
साधक अने निश्चय साध्य
एम पर्यायार्थिकनये कहेवामां आवे
छे; तेनो अर्थ एवो छे के सम्यग्द्रष्टिनो शुभ पर्याय टळी
क्रमे क्रमे शुद्ध पर्याय थतो जाय. आ बन्ने पर्यायो होवाथी
ते पर्यायार्थिकनयनो विषय छे. आ ग्रंथमां केटलेक ठेकाणे
निश्चय अने व्यवहार एवा शब्दो वापरवामां आव्या छे, त्यां
तेनो आ अर्थ समजवो. व्यवहार (शुभभाव)नो व्यय ते
साधक अने निश्चय (शुद्धभाव)नो उत्पाद ते साध्य एवो तेनो
अर्थ थाय छे; तेने टूंकामा ‘व्यवहार साधक, निश्चय साध्य’
एम पर्यायार्थिकनये कहेवामां आवे छे.
[ ९ ]

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बीजा विषयो
आ पुस्तकमां बहिरात्मा, अंतरात्मा, परमात्मा वगेरे
विषयोनुं स्वरूप आपवामां आव्युं छे. बहिरात्मा ते
मिथ्याद्रष्टिनुं बीजुं नाम छे, केम के बहारना संयोग
वियोग,
शरीर, राग, देवशास्त्रगुरु आदिथी खरेखर (परमार्थ)
पोताने लाभ थाय एम ते माने छे. अंर्तआत्मा ते
सम्यग्द्रष्टिनुं बीजुं नाम छे; केमके पोताना अंतरथी ज एटले
के मारा त्रिकाळी शुद्ध चैतन्यस्वरूपना लक्षे ज मने लाभ थई
शके एम ते माने छे. परमात्मा ते आत्मानी संपूर्ण शुद्ध
अवस्था छे. आ सिवाय बीजा अनेक विषयो आ ग्रंथमां
लेवामां आव्या छे; ते बधा काळजीपूर्वक समजवानी जरूर छे.
पाठकोने विनंती
पाठकोए आ पुस्तकनो सूक्ष्म द्रष्टिथी अभ्यास करवो;
केम के सत्शास्त्रनो धर्मबुद्धि वडे अभ्यास ते सम्यग्दर्शननुं
कारण छे; आ उपरांत शास्त्राभ्यासमां नीचेनी बाबतो खास
ख्यालमां राखवीः
१. सम्यग्दर्शनथी ज धर्मनी शरूआत थाय छे.
२. सम्यग्दर्शन पाम्या सिवाय कोई पण जीवने साचां
व्रत, सामायिक, प्रतिक्रमण, तप, प्रत्याख्यान वगेरे होय नहीं.
केमके ते क्रिया प्रथम पांचमे गुणस्थाने शुभभावरूपे होय छे.
३. शुभभाव ज्ञानी अने अज्ञानी ए बंनेने थाय छे.
[ १० ]

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पण अज्ञानी तेनाथी धर्म थशे एम माने छे अने ज्ञानीने
बुद्धिमां ते हेय होवाथी तेनाथी कदी धर्म न थाय एम ते
माने छे.
४. आ उपरथी धर्मीने शुभ भाव होतो ज नथी एम
समजवुं नहीं, पण शुभ भावने धर्म के तेथी क्रमे क्रमे धर्म
थशे एम ते मानतो नथीकेम के अनंत वीतरागोए तेने
बंधनुं कारण कह्युं छे.
५. एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई करी शके नहीं,
परिणमावी शके नहीं, प्रेरणा करी शके नहीं, लाभनुकसान
करी शके नहीं, प्रभाव पाडी शके नहीं, असर, मदद के
उपकार करी शके नहीं, मारी
जीवाडी शके नहीं. एवी दरेक
द्रव्य-गुण-पर्यायनी संपूर्ण स्वतंत्रता अनंत ज्ञानीओए
पोकारी
पोकारीने कही छे.
६. जिनमतमां तो एवी परिपाटी छे के पहेलां सम्यक्त्व
होय पछी व्रत होय; हवे सम्यक्त्व तो स्व-परनुं श्रद्धान थतां
थाय छे, तथा ते श्रद्धान द्रव्यानुयोगनो अभ्यास करतां थाय छे;
माटे पहेलां द्रव्यानुयोग अनुसार श्रद्धान करी सम्यग्द्रष्टि थवुं.
७. पहेले गुणस्थाने जिज्ञासु जीवोने शास्त्रनो अभ्यास,
वांचनमनन, ज्ञानी पुरुषनो धर्मोपदेश सांभळवो, निरंतर
तेमना समागममां रहेवुं, देवदर्शन, पूजा, भक्ति, दान वगेरे
शुभ भावो होय छे; परंतु पहेले गुणस्थाने साचां व्रत, तप
वगेरे होतां नथी.
[ ११ ]

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उपलक द्रष्टिए जोनारने नीचेनी बे शंका थवानो संभव
छेः
१. आवा कथन सांभळवाथी के वांचवाथी लोकोने घणुं
नुकसान थवा संभवे छे (२) हाल लोको जे कांई व्रत, पचखाण,
प्रतिक्रमणादि क्रिया करे छे ते छोडी देशे.
तेनो खुलासो नीचे प्रमाणे छेः
सत्यथी कोई पण जीवने नुकसान थाय एम कहेवुं ते
भूलभरेलुं छे अर्थात् असत् कथनथी लोकोने लाभ थाय एम
मानवा बराबर थाय छे. सत् सांभळवाथी के वांचवाथी जीवोने
कदी नुकसान थाय ज नहि अने व्रतपचखाण करनाराओ ज्ञानी
छे के अज्ञानी छे ते जाणवानी जरूर छे. जो तेओ अज्ञानी होय
तो तेने साचां व्रतादि होतां ज नथी तेथी ते छोडवानो प्रश्न
ज नथी. जो व्रत करनार ज्ञानी हशे तो छद्मस्थ दशामां ते व्रत
छोडी अशुभमां जशे तेम मानवुं न्यायविरुद्ध छे. परंतु एम बने
के ते क्रमे क्रमे शुभभावने टाळी शुद्धने वधारे. पण ते तो लाभनुं
कारण छे, नुकसाननुं कारण नथी. माटे सत्य कथनथी कोईने
नुकसान थाय नहि. आ कथननुं मनन करवानी खास जरूर छे.
जिज्ञासुओ कंई विशेष स्पष्ट खुलासाथी समजी शके ते वात
लक्षमां राखीने ब्रह्मचारी भाईश्री गुलाबचंदजीए यथाशक्य
शुद्धि
वृद्धि करी छे.
कार्तिक सुद १५, सं. २०१८
सोनगढ (सौराष्ट्र)
रामजी माणेकचंद दोशी (प्रमुख)
श्री दि. जैन स्वा० मंदिर ट्रस्ट
[ १२ ]

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प्रकाशकीय निवेदन
आ गुजराती ‘छ ढाळा’ ग्रंथनी अगयारमी आवृत्ति खपी
जवाथी तेनी बारमी आवृत्ति फरी छपाववामां आवेल छे.
आगळनी आवृत्तिमां जे मुद्रण-अशुद्धिओ हती ते ब्र. श्री चंदुभाई
झोबाळियानां मार्गदर्शन नीचे आ आवृत्ति मुद्रित करवामां आवी
छे.
मुद्रणकार्य ‘कहान मुद्रणालय’ना मालिक श्री ज्ञानचंदजी जैने
काळजीपूर्वक सारुं करी आप्युं छे, ते बदल तेमनो ट्रस्ट आभार
माने छे.
आ ग्रंथना पठन-पाठनथी मुमुक्षु जीव आत्मलक्षी तत्त्वज्ञान
प्राप्त करी आत्मार्थने विशेष पुष्ट करे ए ज भावना.
वैशाख सुदि २
वि. सं. २०५८
इ. स. २००२
व्रतसंयम क्यारे?
शंकाःद्रव्यानुयोगरूप अध्यात्म-उपदेश छे ते उत्कृष्ट
छे, अने ते उच्च दशाने प्राप्त होय तेने ज कार्यकारी छे पण
नीचली दशावाळाओने तो व्रत
संयम आदिनो ज उपदेश
आपवो योग्य छे.
साहित्य-प्रकाशनसमिति
श्री दि. जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट,
सोनगढ (सौराष्ट्र)
[ १३ ]

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समाधानःजिनमतमां तो एवी परिपाटी छे के पहेलां
सम्यक्त्व होय पछी व्रत होय; हवे सम्यक्त्व तो स्व-परनुं
श्रद्धान थतां थाय छे तथा ते श्रद्धान द्रव्यानुयोगनो अभ्यास
करतां थाय छे; माटे पहेलां द्रव्यानुयोग अनुसार श्रद्धान करी
सम्यग्द्रष्टि थाय अने त्यारपछी चरणानुयोग अनुसार व्रतादिक
धारण करी व्रती थाय. ए प्रमाणे मुख्यपणे तो नीचली दशामां
ज द्रव्यानुयोग कार्यकारी छे, तथा गौणपणे जेने मोक्षमार्गनी
प्राप्ति थती न जणाय तेने, पहेलां कोई व्रतादिकनो उपदेश
आपवामां आवे छे. माटे उच्च दशावाळाओने अध्यात्म-
उपदेश करवा योग्य छे एम जाणी नीचली दशावाळाओए
पराङ्मुख थवुं योग्य नथी.
(श्री मोक्षमार्गप्रकाशक पृ. २९५)
जैन शास्त्रोना अर्थ करवानी पद्धति
जिनमार्गमां कोई ठेकाणे तो निश्चयनयनी मुख्यता सहित
व्याख्यान छे तेनो तो ‘‘सत्यार्थ एम ज छे’’ एम जाणवुं; तथा
कोई ठेकाणे व्यवहारनयनी मुख्यता सहित व्याख्यान छे तेने
‘‘एम नथी पण निमित्तादिनी अपेक्षाए उपचार कर्यो छे’’
एम जाणवुं; अने ए प्रमाणे जाणवानुं नाम ज बन्ने नयोनुं
ग्रहण छे. पण बन्ने नयोनां व्याख्यानने समान सत्यार्थ जाणी
‘‘आ प्रमाणे पण छे तथा आ प्रमाणे पण छे’’ एवा भ्रमरूप
प्रवर्तवाथी तो बन्ने नयो ग्रहण करवा कह्या नथी.
(श्री मोक्षमार्गप्रकाशक पृ. २५६)
[ १४ ]

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विषयानुक्रमणिका
विषयपृष्ठ
(पहेली ढाळ पृ. १ थी ३०)
मंगलाचरण ...
ग्रंथरचनानो उद्देश अने जीवनी चाहना ...
गुरुशिक्षा अने संसारनुं कारण ...
ग्रंथनी प्रामाणिकता अने निगोदनुं दुःख ...
निगोदनां दुःखोनुं वर्णन ...
तिर्यंचगतिनां दुःखोनुं वर्णन ...
नरकगतिनां दुःखोनुं वर्णन ....११
मनुष्यगतिनां दुःखोनुं वर्णन ...१७
देवगतिनां दुःखोनुं वर्णन ...१८
पहेली ढाळनो सारांश, भेद-संग्रह, लक्षण-संग्रह,
अंतर-प्रदर्शन अने प्रश्नावली ...
२१३०
[बीजी ढाळ पृ. ३१ थी ५४]
संसारपरिभ्रमणनुं कारण ...३१
अगृहीत मिथ्यादर्शन अने जीवतत्त्वनुं लक्षण ...३२
जीवतत्त्वना विषयमां विपरीत श्रद्धा ...३३
मिथ्याद्रष्टिनो शरीर ने पर वस्तुओ उपर विचार अने
जीवतत्त्वनी भूल ...
३४
अजीव अने आस्रवतत्त्वनुं विपरीत श्रद्धान ...३५
आस्रवतत्त्वनी भूल ...३७
[ १५ ]

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बंध अने संवरतत्त्वनी विपरीत श्रद्धा ...३७
निर्जरा अने मोक्षनी विपरीत श्रद्धा अने अगृहीत
मिथ्याज्ञान ...
३९
निर्जरातत्त्वनी भूल ...३९
मोक्षतत्त्वनी भूल ...४०
अगृहीत मिथ्याचारित्रनुं लक्षण४०
गृहीत मिथ्यादर्शन अने कुगुरुनां लक्षण ...४१
कुदेव(मिथ्यादेव)नुं स्वरूप ...४३
कुधर्म अने गृहीत मिथ्यादर्शननुं संक्षिप्त लक्षण ...४४
गृहीत मिथ्याज्ञाननुं लक्षण ...४५
गृहीत मिथ्याचारित्रनुं लक्षण ...४७
मिथ्याचारित्रना त्यागनो अने आत्महितमां
लागवानो उपदेश ...
४७
बीजी ढाळनो सारांश, भेद-संग्रह, लक्षण-संग्रह,
अंतर-प्रदर्शन अने प्रश्नावली ...
४९-५४
[त्रीजी ढाळ पृ. ५५ थी ९८]
साचुं सुख; बे प्रकारे मोक्षमार्गनुं कथन ...५५
निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रनुं स्वरूप ...५८
व्यवहार सम्यक्त्वनुं स्वरूप ...५९
बहिरात्मा तथा उत्तम अंतरात्मानुं लक्षण ...६१
मध्यम अने जघन्य अंतरात्मा तथा सकल परमात्मा ...६३
निकल परमात्मानुं लक्षण अने परमात्माना ध्याननो उपदेश... ६५
अजीव
पुद्गल, धर्म, अधर्म द्रव्यनां लक्षण
अने भेद...६६
[ १६ ]

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आकाश, काळ अने आस्रवनां लक्षण अथवा भेद ...६८
आस्रवत्यागनो उपदेश, बंध, संवर अने निर्जरानुं लक्षण...७०
मोक्षनुं लक्षण, व्यवहार सम्यक्त्वनुं लक्षण अने तेनां कारण... ७४
सम्यक्त्वना २५ दोष तथा ८ गुणोनुं वर्णन ...
७६
सम्यक्त्वना आठ गुण अने शंकादि आठ दोष ...७८
मद नामक आठ दोष ...८१
छ अनायतन अने त्रण मूढता दोष ...८४
अव्रती सम्यग्द्रष्टिनी इन्द्र वगेरेथी पूजा अने ...८५
सम्यक्त्वनो महिमा, तेना अनुत्पत्ति स्थान, सर्वोत्तम सुख...८६
सम्यग्दर्शन विना ज्ञान अने चारित्रनुं मिथ्यापणुं ...८८
त्रीजी ढाळनो सारांश, भेद-संग्रह, लक्षण-संग्रह,
अंतर-प्रदर्शन अने प्रश्नावली ...
९०-९८
[चोथी ढाळ पृ. ९९ थी १३६]
सम्यग्ज्ञाननुं लक्षण अने समय ...९९
सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञानमां तफावत ...१००
सम्यग्ज्ञानना भेद, परोक्ष अने देशप्रत्यक्ष ...१०२
सकलप्रत्यक्ष ज्ञाननुं लक्षण अने महिमा ...१०४
ज्ञानी अने अज्ञानीना कर्मनाशमां तफावत ...१०५
ज्ञानना दोष अने मनुष्यपर्याय वगेरेनी दुर्लभता ...१०७
सम्यग्ज्ञाननो महिमा अने कारण ...१०९
सम्यग्ज्ञाननो महिमा अने विषयोनी
इच्छा रोकवानो उपाय ...
११०
पुण्य-पापमां हर्ष-शोकनो निषेध, सार-सार वातो...११२
[ १७ ]

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सम्यक्चारित्रनो समय अने भेद तथा अहिंसा
अने सत्य-अणुव्रत ...
११४
श्रावकनां बार व्रतोनां लक्षण ...११७१२३
निरतिचार श्रावक-व्रत पाळवानुं फळ ...१२४
चोथी ढाळनो सारांश, भेद-संग्रह, लक्षण-संग्रह,
अंतर-प्रदर्शन अने प्रश्नावली ....
१२५-१३६
[पांचमी ढाळ पृ. १३७ थी १६१]
भावनाओना चिंतवननुं कारण, तेना अधिकारी अने
तेनुं फळ...
१३७
भावनाओनुं फळ अने मोक्षसुख प्राप्तिनो समय१३८
अनित्यादि बार भावनाओनुं स्वरूप...१३९-१५६
आत्माना अनुभवपूर्वक भावलिंगी मुनिनुं स्वरूप...१५५
पांचमी ढाळनो सारांश, भेद-संग्रह, लक्षण-संग्रह,
अंतर-प्रदर्शन अने प्रश्नावली ...
१५५-१६१
[छठ्ठी ढाळ पृ. १६२ थी २०२]
अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य महाव्रतनां लक्षणो१६२
परिग्रहत्याग महाव्रत, इर्यासमिति, भाषासमिति१६४
एषणा, आदान-निक्षेपण अने प्रतिष्ठापन समिति१६६
मुनिओने त्रण गुप्ति अने पंचेन्द्रिय पर विजय१६९
मुनिओना छ आवश्यक, अने बाकीना सात मूळगुण१७१
मुनिओना बाकीना गुणो तथा राग-द्वेषनो अभाव१७३
मुनिओनां तप, धर्म, विहार तथा स्वरूपाचरणचारित्र;१७६
स्वरूपाचरणचारित्र(शुद्धोपयोग)नुं वर्णन१८०
[ १८ ]