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अंतर-प्रदर्शन अने प्रश्नावली ...
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छे, कल्पित नथी
जीवोने मारी नाखवा अने केटला काळ सुधी
एवी क्रूरता करवी एनी कोई हद नथी तेने
ते अतिशय क्रूर परिणामोना फळरूपे ज्यां
बेहद दुःख भोगववानुं होय छे एवुं स्थान ते
नरक छे. लाखो खून करनारने लाख वार
फांसी मळे एवुं तो आ लोकमां बनतुं नथी
ते अनंत दुःख भोगववाना क्षेत्रने नरक
कहेवाय छे. ते नरकगतिनां स्थान मध्यलोकनी
नीचे छे अने शाश्वत छे. तेनी साबिती युक्ति
अने न्यायथी बराबर करी शकाय छे.
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शिवस्वरूप शिवकार, नमहुं त्रियोग सम्हारिकैं.
(शिवस्वरूप) आनंद-स्वरूप [अने] (शिवकार) मोक्षनी प्राप्ति
करावनार छे तेने हुं (त्रियोग) त्रण योगनी (सम्हारिकैं)
सावधानीथी (नमहुं) नमस्कार करुं छुं.
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केवळज्ञानने नमस्कार करुं छुं.
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(दुखतैं) दुःखथी (भयवन्त) डरे छे (तातैं) तेथी (गुरु) आचार्य
(करुणा) दया (धार) करीने (दुखहारी) दुःखनो नाश करवावाळी
अने (सुखकार) सुखने आपवावाळी (सीख) शिक्षा-शिखामण
(कहैं) आपे छे.
करवावाळी अने सुखने आपवावाळी शिखामण आपे छे. १.
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मोह-महामद पियो अनादि, भूल आपको भरमत वादि. २.
ते शिक्षा (मन) मनने (थिर) स्थिर (आन) करीने (सुनो)
सांभळो [के आ संसारमां दरेक प्राणी] (अनादि) अनादि काळथी
(मोह-महामद) मोहरूपी जलद दारू (पियो) पीने, (आपको)
पोताना आत्माने (भूल) भूली (वादि) व्यर्थ (भरमत) भटके छे.
रीते कोई दारूडियो दारू पीने, नशामां चकचूर थईने, ज्यां
त्यां गोथां खाई पडे छे तेवी ज रीते जीव अनादिकाळथी
मोहमां फसी, पोताना आत्माना स्वरूपने भूली चारे गतिओमां
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(मुनि) पूर्वाचार्योए (कही) कही छे (यथा) ते प्रमाणे हुं पण
(कछु) थोडी (कहुं) कहुं छुं [के आ जीवनो] (निगोद मंझार)
निगोदमां (एकेन्द्री) एकेन्द्रिय जीवना (तन) शरीर (धार)
धारण करी (अनन्त) अनंत (काल) काळ (बीत्यो) वीत्यो छे
ग्रंथोमां कही छे, ते प्रकारे हुं (दौलतराम) पण आ ग्रंथमां
थोडीक कहुं छुं. आ जीवे, नरकथी पण निकृष्ट निगोदमां एक
इन्द्रिय जीवना शरीर धारण कर्यां अर्थात
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क्रम नथी, निगोदमांथी एकदम मनुष्यपर्याय पण प्राप्त थई शके
छे. जेम के
मर्यो [अने] (दुखभार) दुःखोना समूह (भर्यो) सहन कर्यां.
[अने त्यांथी] (निकसि) नीकळीने (भूमि) पृथ्वीकायिक जीव,
(जल) जलकायिक जीव, (पावक) अग्निकायिक जीव (भयो) थयो,
वळी (पवन) वायुकायिक जीव [अने] (प्रत्येक वनस्पति) प्रत्येक
वनस्पतिकायिक जीव (थयो) थयो.
पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक अने प्रत्येक
वनस्पतिकायिक
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लट पिपील अलि आदि शरीर, धर धर मर्यो सही बहु पीर.
(त्रसतणी) त्रसनो (पर्याय) पर्याय (दुर्लभ) मुश्केलीथी (लही)
प्राप्त थाय छे. [त्यां पण] (लट) इयळ (पिपील) कीडी (अलि)
भमरो (आदि) वगेरेना (शरीर) शरीरो (धर धर) वारंवार
धारण करीने, (मर्यो) मरण पाम्यो [अने] (बहु पीर) घणी पीडा
(सही) सहन करी.
प्राप्त कर्यो छे. आ त्रस पर्यायमां पण इयळ वगेरे बे इन्द्रिय
जीव, कीडी वगेरे त्रण इन्द्रिय जीव अने भमरो वगेरे चार
इन्द्रिय जीवना शरीर धारण करी मर्यो अने घणां दुःखो सहन
कर्या. ५.
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(निपट) अत्यंत (अज्ञानी) मूर्ख (थयो) थयो [अने] (सैनी) संज्ञी
[पण] (ह्वै) थयो [तो] (सिंहादिक) सिंह वगेरे (क्रूर) क्रूर जीव
(ह्वै) थईने (निबल) पोताथी नबळां, (भूर) घणां (पशु) तिर्यंचो
(हति) हणी-हणी खाधां.
कोईक वखत संज्ञी थयो तो सिंह वगेरे क्रूर-निर्दय थई,
पोतानाथी निर्बल अनेक जीवो मारी नाखीने खाधां अने घोर-
अज्ञानी थयो. ६.
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असमर्थ थवाथी (सबलनि करि) पोतानाथी बळवान प्राणीओ वडे
(खायो) खवायो [अने] (छेदन) छेदावुं, (भेदन) भेदावुं, (भूख)
भूख, (पियास) तरस, (भारवहन) बोजो उपाडवो, (हिम) ठंडी,
(आतप) गरमी [वगेरेना] (त्रास) दुःखो सहन कर्यां.
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बळवान प्राणीओ द्वारा खवाई गयो अने ते तिर्यंचगतिमां
छेदावुं, भेदावुं, भूख, तरस, भारवहन करवो, ठंडी, गरमी
वगेरेना दुःखो पण सहन कर्यां. ७.
दुःखो सहन कर्यां; [ते] (कोटि) करोडो (जीभतैं) जीभथी (भने
न जात) कही शकातां नथी. [आथी करीने] (अति संक्लेश) घणा
माठां (भावतैं) परिणामोथी (मर्यो) मरण पामीने (घोर) भयानक
(श्वभ्रसागरमें) नरकरूपी समुद्रमां (पर्यो) जई पड्यो.
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तेम नथी. अने अंते एवां अत्यंत माठां परिणामो (आर्तध्यान)थी
मर्यो के महामुश्केलीथी पार करी शकाय तेवा समुद्रसमान दुस्तर
नरकमां जई पहोंच्यो. ८.
तहां राध-श्रोणितवाहिनी, कृमिकुलकलित देहदाहिनी. ९.
हजारो (बिच्छू) वींछीओ (डसे) डंख मारे तोपण (नहिं तिसो)
एना जेवुं दुःख थतुं नथी. [वळी] (तहां) त्यां [नरकमां]
(राध-श्रोणितवाहिनी) लोही अने परु वहेवडावनारी [एक
वैतरणी नामनी नदी छे] जे (कृमिकुलकलित) नाना नाना क्षुद्र
कीडाओथी भरेली छे अने (देहदाहिनी) शरीरमां दाह उत्पन्न
करवावाळी छे.
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साथे डंख मारे तोपण तेटलुं दुःख थतुं नथी. वळी ए नरकमां
परु, लोही अने नाना नाना कीडाओथी भरेली अने शरीरमां
दाह उत्पन्न करवावाळी एक वैतरणी नदी छे; जेमां
शांतिलाभनी इच्छाथी नारकी जीव प्रवेश करे छे पण त्यां तो
तेनी पीडा वधारे भयंकर थई पडे छे.
निमित्त-कारण छे.)
मेरु समान लोह गलि जाय, ऐसी शीत उष्णता थाय. १०.
सेमरना झाड [छे, जे] (देह) शरीरने (असि ज्यों) तरवारनी
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(ऐसी) एवा प्रकारनी (शीत) ठंडी (अने) (उष्णता) गरमी
(थाय) थाय छे [के] (मेरु समान) मेरु जेवा पर्वतनी बराबर
(लोह) लोढानो गोळो पण (गलि) गळी जई (जाय) शके छे.
मळवानी इच्छाथी ते झाड नीचे जाय छे, त्यारे ते झाडना
पांदडांओ तेनी उपर पडी, ते नारकीओना शरीरने चीरी नाखे
छे. अने ए नरकोमां एटली गरमी थाय छे के एक लाख
जोजननी ऊंचाईवाळा सुमेरु पर्वतनी बरोबर लोढानो पिंड पण
फेंकवामां आवे तो वचमां ज ओगळवा मांडे छे.
लागे छे. पहेली बीजी त्रीजी अने चोथी नरकनी भूमिओ गरम छे. पांचमी नरकमां
उपरनी भूमि गरम तथा नीचे त्रीजो भाग ठंडी अने छठ्ठी तथा सातमीनी भूमि ठंडी छे.
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गयुं वगेरे; एटले के लोढानी अंदर एकदम उग्र ठंडीना कारणे
चीकणाई ओछी थवाथी तेनो स्कंध वीखराई जाय छे. १०.
नांखे छे. अने (प्रचंड) अत्यंत (दुष्ट) क्रूर (असुर) असुरकुमार
जातिना देव, [एकबीजा साथे] (भिडावैं) लडावे छे; [तथा एटली]
(प्यास) तरस [लागे छे के] (सिन्धुनीर तैं) समुद्रभरना पाणी
पीवाथी पण (न जाय) छीपी शकती नथी (तो पण) छतां (एक बूंद)
एक टीपुं पण (न लहाय) मळी शकतुं नथी.
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छे छतां पण तेना शरीर पाछा मळी जवाथी
अने अम्बरीष वगेरे जातिना असुरकुमार देव पहेली, बीजी अने
त्रीजी नरक सुधी जईने त्यांना तीव्र दुःखी नारकीओने, पोताना
अवधिज्ञानथी वेर बतावीने अथवा क्रूरता अने कुतूहलथी
अंदरोअंदर लडावी मारे छे अने पोते आनंदित थाय छे. ते
नारकी जीवोने एटली बधी तरस लागे छे के जो मळे तो एक
महासागरनुं पाणी पण पी जाय तोपण तरस छीपी शकती नथी;
परंतु पीवाने पाणीनुं एक टीपुं पण मळतुं नथी. ११.
तोपण (भूख) भूख (न मिटै) मटी शके नहि, [परन्तु खावाने]
(कण) एक दाणो पण (न लहाय) मळतो नथी. (ये दुख) एवुं
दुःख (बहु सागर लौं) घणा सागरोपम काळ सुधी (सहै) सहन
अंशे छूटो छूटो वींखराई जाय छे. फरी एकठो करी देवाथी पोते
स्वयं एक पिंड थई जाय छे.
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मनुष्यगति (लहे) पामे छे.
मटे नहि, छतां त्यां खावाने एक दाणो पण मळी शकतो नथी.
ए नरकोमां ए जीव घणां तीव्र दुःखो घणा समय (ओछामां
ओछा दस हजार वर्ष अने वधारेमां वधारे तेत्रीस सागरोपम
काळ) सुधी भोगवे छे. कोई शुभकर्मना उदयथी ए प्राणी
मनुष्यगतिने पामे छे. १२.
रह्यो [त्यारे ते ठेकाणे] (अंग) शरीर (सकुचतैं) संकोचीने
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नीकळती वखते (जे) जे (घोर) भयंकर (दुख) दुःख (पायो)
पाम्यो (तिनको) ते दुःखोने (कहत) कहेतां (ओर) अन्त
(न आवे) आवी शकतो नथी.
होवाथी घणुं दुःख पाम्यो, जेनुं वर्णन पण थई शकतुं नथी.
कोई कोई वखते माताना पेटमांथी नीकळती वखते, मातानुं
अथवा पुत्रनुं अथवा बन्नेनुं मरण पण थई जाय छे. १३.
जुवानीमां (तरुणीरत) जुवान स्त्रीमां लीन (रह्यो) रह्यो [अने]
(बूढापनों) घडपण (अर्धमृतकसम) अधमूउं जेवुं [रह्युं; आवी
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स्वरूप (लखै) विचारे-देखे.
स्त्रीना मोह (विषयभोग)मां भूली गयो अने घडपणमां
इन्द्रियोनी शक्ति घटी गई अथवा मरणपर्यंत पहोंचे तेवो रोग
लागु पड्यो के जेथी अधमुआ जेवो पड्यो रह्यो. आवी हालतमां
आ प्राणी त्रणे अवस्थामां आत्मस्वरूपनुं दर्शन (पिछाण) न
करी शक्यो. १४.
भवनवासी व्यन्तर अने ज्योतिषीमां (सुर-तन) देवपर्याय (धरै)
धारण कर्या, [परंतु त्यां पण] (विषयचाह) पांचे इन्द्रियोना