Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Paheli Dhal; Mangalacharan; Mangalacharan Gatha; Gatha: 1-15 (Dhal 1).

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स्वरूपाचरणचारित्रनुं लक्षण अने निर्विकल्प ध्यान१८३
स्वरूपाचरणचारित्र अने अरिहंत अवस्था ...१८५
सिद्ध अवस्था(सिद्ध परमात्मा)नुं वर्णन ...१८७
मोक्ष-अवस्थानुं वर्णन ...१८९
रत्नत्रयनुं फळ, आत्महितमां प्रवृत्तिनो उपदेश१९१
छेल्ली भलामण ...१९२
ग्रंथ-रचनानो काळ अने तेमां आधार ...१९४
छठ्ठी ढाळनो सारांश, भेद-संग्रह, लक्षण-संग्रह
अंतर-प्रदर्शन अने प्रश्नावली ...
१९५-२०४
[ १९ ]

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देव, मनुष्य, तिर्यंच अने नरक
चारेय गति सदाय छे, जीवोना परिणामनुं फळ
छे, कल्पित नथी
. जेने, पोतानी सगवडता
साधवामां वच्चे अगवडता करनारा केटला
जीवोने मारी नाखवा अने केटला काळ सुधी
एवी क्रूरता करवी एनी कोई हद नथी तेने
ते अतिशय क्रूर परिणामोना फळरूपे ज्यां
बेहद दुःख भोगववानुं होय छे एवुं स्थान ते
नरक छे. लाखो खून करनारने लाख वार
फांसी मळे एवुं तो आ लोकमां बनतुं नथी
.
तेने तेना क्रूर भावोनुं ज्यां पूरुं फळ मळे छे
ते अनंत दुःख भोगववाना क्षेत्रने नरक
कहेवाय छे. ते नरकगतिनां स्थान मध्यलोकनी
नीचे छे अने शाश्वत छे. तेनी साबिती युक्ति
अने न्यायथी बराबर करी शकाय छे.
-गुरुदेवश्रीना वचनामृत बोल-७९

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श्री सद्गुरुदेवाय नमः
अध्यात्मप्रेमी कविवर पंडित दौलतरामजीकृत
छ ढाळा
(सुबोध टीका)
मंगलाचरण
(सोरठा)
तीन भुवनमें सार, वीतराग-विज्ञानता;
शिवस्वरूप शिवकार, नमहुं त्रियोग सम्हारिकैं.
अन्वयार्थ(वीतराग) रागद्वेष रहित, (विज्ञानता)
केवळज्ञान (तीन भुवनमें) त्रण लोकमां (सार) उत्तम वस्तु
(शिवस्वरूप) आनंद-स्वरूप [अने] (शिवकार) मोक्षनी प्राप्ति
करावनार छे तेने हुं (त्रियोग) त्रण योगनी (सम्हारिकैं)
सावधानीथी (नमहुं) नमस्कार करुं छुं.
भावार्थराग-द्वेषरहित ‘केवळज्ञान’ ऊर्ध्व, मध्य अने
पाताळ ए त्रण लोकमां उत्तम, आनंदस्वरूप अने मोक्ष देनारुं
नोट आ ग्रंथमां सर्वत्र ( ) एवुं चिह्न मूळ ग्रंथना पदनुं जाणवुं
अने [ ] एवुं चिह्न उपरथी संधि मेळववा माटेनुं जाणवुं.

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छे तेथी हुं (दौलतराम) मारा त्रियोग अर्थात् मन-वचन अने
काययोग द्वारा सावधानीथी ते वीतराग (१८ दोषरहित) स्वरूप
केवळज्ञानने नमस्कार करुं छुं.
२ ][ छ ढाळा

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पहेली ढाळ ][ ३
पहेली ढाळ
संसारनां दुःखोनुं वर्णन
ग्रन्थ-रचनानो उ÷ेश अने जीवनी चाहना :
जे त्रिभुवनमें जीव अनन्त, सुख चाहैं दुखतैं भयवन्त;
तातैं दुखहारी सुखकार, कहैं सीख गुरु करुणा धार. १.
अन्वयार्थ(त्रिभुवनमें) त्रणे लोकमां (जे) जे (अनन्त)
अनंत (जीव) प्राणी [छे ते] (सुख) सुखने (चाहैं) इच्छे छे अने
(दुखतैं) दुःखथी (भयवन्त) डरे छे (तातैं) तेथी (गुरु) आचार्य
(करुणा) दया (धार) करीने (दुखहारी) दुःखनो नाश करवावाळी
अने (सुखकार) सुखने आपवावाळी (सीख) शिक्षा-शिखामण
(कहैं) आपे छे.
भावार्थत्रण लोकमां जे अनंत जीव (प्राणी) छे ते
दुःखथी डरे छे अने सुखने चाहे छे तेथी आचार्य दुःखनो नाश
करवावाळी अने सुखने आपवावाळी शिखामण आपे छे. १.

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गुरु शिक्षा सांभळवानो आदेश अने
संसार-परिभ्रमणनुं कारण
ताहि सुनो भवि मन थिर आन, जो चाहो अपनो कल्यान;
मोह-महामद पियो अनादि, भूल आपको भरमत वादि. २.
अन्वयार्थ(भवि) हे भव्य जीवो! (जो) जो (अपनो)
पोतानुं (कल्यान) हित (चाहो) चाहता हो [तो] (ताहि) गुरुनी
ते शिक्षा (मन) मनने (थिर) स्थिर (आन) करीने (सुनो)
सांभळो [के आ संसारमां दरेक प्राणी] (अनादि) अनादि काळथी
(मोह-महामद) मोहरूपी जलद दारू (पियो) पीने, (आपको)
पोताना आत्माने (भूल) भूली (वादि) व्यर्थ (भरमत) भटके छे.
भावार्थहे भद्र प्राणीओ! जो पोतानुं हित चाहता
हो तो, पोतानुं मन स्थिर करीने आ शिक्षा सांभळो. जेवी
रीते कोई दारूडियो दारू पीने, नशामां चकचूर थईने, ज्यां
त्यां गोथां खाई पडे छे तेवी ज रीते जीव अनादिकाळथी
मोहमां फसी, पोताना आत्माना स्वरूपने भूली चारे गतिओमां
४ ][ छ ढाळा

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जन्म-मरण धारण करीने भटके छे. २.
आ ग्रंथनी प्रमाणिकता अने निगोदनुं दुःख
तास भ्रमनकी है बहु कथा, पै कछु कहूं कही मुनि यथा;
काल अनन्त निगोद मंझार, बीत्यो एकेन्द्री तन धार. ३.
अन्वयार्थ(तास) आ संसारमां (भ्रमनकी) भटकवानी
(कथा) कथा (बहु) मोटी (है) छे (पै) तोपण (यथा) जेवी
(मुनि) पूर्वाचार्योए (कही) कही छे (यथा) ते प्रमाणे हुं पण
(कछु) थोडी (कहुं) कहुं छुं [के आ जीवनो] (निगोद मंझार)
निगोदमां (एकेन्द्री) एकेन्द्रिय जीवना (तन) शरीर (धार)
धारण करी (अनन्त) अनंत (काल) काळ (बीत्यो) वीत्यो छे
पसार थयो छे.
भावार्थसंसारमां जन्म-मरण धारण करवानी कथा
बहु मोटी छे. तोपण जे प्रकारे पूर्वाचार्योए पोताना बीजा
ग्रंथोमां कही छे, ते प्रकारे हुं (दौलतराम) पण आ ग्रंथमां
थोडीक कहुं छुं. आ जीवे, नरकथी पण निकृष्ट निगोदमां एक
इन्द्रिय जीवना शरीर धारण कर्यां अर्थात
् साधारण-
वनस्पतिकायमां ऊपजी त्यां अनंत काळ पसार कर्यो छे. ३.
निगोदनुं दुःख अने त्यांथी नीकळी प्राप्त करेल पर्यायो
एक श्वासमें अठदस बार, जन्म्यो मर्यो भर्यो दुखभार;
निकसि भूमि जल पावक भयो, पवन प्रत्येक वनस्पति थयो. ४.
अन्वयार्थ[निगोदमां आ जीव] (एक श्वासमें) एक
पहेली ढाळ ][ ५

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नवीन शरीरनुं धारण.
वर्तमान शरीरनो त्याग.
निगोदमांथी नीकळीने आ प्रमाणे पर्यायो प्राप्त करवानो निश्चित
क्रम नथी, निगोदमांथी एकदम मनुष्यपर्याय पण प्राप्त थई शके
छे. जेम के
भरतना बत्रीस हजार पुत्रो निगोदमांथी एकदम
मनुष्यपर्याय पामी मोक्ष पण गया छे.
६ ][ छ ढाळा
श्वासमां (अठदस बार) अढार वार (जन्म्यो) जन्म्यो अने (मर्यो)
मर्यो [अने] (दुखभार) दुःखोना समूह (भर्यो) सहन कर्यां.
[अने त्यांथी] (निकसि) नीकळीने (भूमि) पृथ्वीकायिक जीव,
(जल) जलकायिक जीव, (पावक) अग्निकायिक जीव (भयो) थयो,
वळी (पवन) वायुकायिक जीव [अने] (प्रत्येक वनस्पति) प्रत्येक
वनस्पतिकायिक जीव (थयो) थयो.
भावार्थनिगोद [साधारण वनस्पति]मां आ जीवे
एकश्वासमात्र (जेटला) समयमां १८ वार जन्म अने मरण
करीने भयंकर दुःख सहन कर्युं छे. अने त्यांथी नीकळी
पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक अने प्रत्येक
वनस्पतिकायिक
जीव तरीके उत्पन्न थयो. ४.

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तिर्यंच गतिमां त्रस पर्यायनी दुर्लभता अने तेनुं दुःख
दुर्लभ लहि ज्यों चिन्तामणि, त्यों पर्याय लही त्रसतणी;
लट पिपील अलि आदि शरीर, धर धर मर्यो सही बहु पीर.
अन्वयार्थ(ज्यों) जेम (चिन्तामणि) चिन्तामणि रत्न
(दुर्लभ) मुश्केलीथी (लहि) प्राप्त थाय छे (त्यों) तेम ज
(त्रसतणी) त्रसनो (पर्याय) पर्याय (दुर्लभ) मुश्केलीथी (लही)
प्राप्त थाय छे. [त्यां पण] (लट) इयळ (पिपील) कीडी (अलि)
भमरो (आदि) वगेरेना (शरीर) शरीरो (धर धर) वारंवार
धारण करीने, (मर्यो) मरण पाम्यो [अने] (बहु पीर) घणी पीडा
(सही) सहन करी.
भावार्थजेवी रीते चिंतामणि रत्न बहु मुश्केलीथी प्राप्त
थाय छे तेवी रीते आ जीवे त्रस पर्याय पण घणी मुश्केलीथी
प्राप्त कर्यो छे. आ त्रस पर्यायमां पण इयळ वगेरे बे इन्द्रिय
जीव, कीडी वगेरे त्रण इन्द्रिय जीव अने भमरो वगेरे चार
इन्द्रिय जीवना शरीर धारण करी मर्यो अने घणां दुःखो सहन
कर्या. ५.
पहेली ढाळ ][ ७

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तिर्यंच गतिमां असंज्ञी अने संज्ञीनां दुःखो
कबहूं पंचेन्द्रिय पशु भयो, मन बिन निपट अज्ञानी थयो;
सिंहादिक सैनी ह्वै क्रूर, निबल पशु हति खाये भूर. ६.
अन्वयार्थ [आ जीव] (कबहूं) क्यारेक (पंचेन्द्रिय)
पंचेन्द्रिय (पशु) तिर्यंच (भयो) थयो [तो] (मन बिन) मन वगर
(निपट) अत्यंत (अज्ञानी) मूर्ख (थयो) थयो [अने] (सैनी) संज्ञी
[पण] (ह्वै) थयो [तो] (सिंहादिक) सिंह वगेरे (क्रूर) क्रूर जीव
(ह्वै) थईने (निबल) पोताथी नबळां, (भूर) घणां (पशु) तिर्यंचो
(हति) हणी-हणी खाधां.
भावार्थ आ जीव क्यारेक पंचेन्द्रिय असंज्ञी पशु पण
थयो तो मन विनानो होवाथी अत्यंत अज्ञानी रह्यो; अने
कोईक वखत संज्ञी थयो तो सिंह वगेरे क्रूर-निर्दय थई,
पोतानाथी निर्बल अनेक जीवो मारी नाखीने खाधां अने घोर-
अज्ञानी थयो. ६.
८ ][ छ ढाळा

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तिर्यंच गतिमां निर्बळता तथा दुःख
कबहूं आप भयो बलहीन, सबलनि करि खायो अतिदीन;
छेदन भेदन भूख पियास, भार-वहन हिम आतप त्रास. ७.
अन्वयार्थ [आ जीव तिर्यंच गतिमां] (कबहूं) क्यारेक
(आप) पोते (बलहीन) कमजोर (भयो) [तो] (अतिदीन)
असमर्थ थवाथी (सबलनि करि) पोतानाथी बळवान प्राणीओ वडे
(खायो) खवायो [अने] (छेदन) छेदावुं, (भेदन) भेदावुं, (भूख)
भूख, (पियास) तरस, (भारवहन) बोजो उपाडवो, (हिम) ठंडी,
(आतप) गरमी [वगेरेना] (त्रास) दुःखो सहन कर्यां.
पहेली ढाळ ][ ९

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भावार्थ ज्यारे आ जीव तिर्यंचगतिमां कोई वखत
स्वयं निर्बल पशु थयो तो पोते असमर्थ होवाथी पोतानाथी
बळवान प्राणीओ द्वारा खवाई गयो अने ते तिर्यंचगतिमां
छेदावुं, भेदावुं, भूख, तरस, भारवहन करवो, ठंडी, गरमी
वगेरेना दुःखो पण सहन कर्यां. ७.
तिर्यंचनां दुःखनी अधिाकता अने नरकगति
प्राप्तिनुं कारण
वध बंधन आदिक दुख घने, कोटि जीभतैं जात न भने;
अति संक्लेश भावतैं मर्यो, घोर श्वभ्रसागरमें पर्यो. ८.
अन्वयार्थ [आ तिर्यंचगतिमां जीवे बीजां पण] (वध)
हणावुं, (बंधन) बंधाववुं (आदिक) वगेरे (घने) घणां (दुख)
दुःखो सहन कर्यां; [ते] (कोटि) करोडो (जीभतैं) जीभथी (भने
न जात) कही शकातां नथी. [आथी करीने] (अति संक्लेश) घणा
माठां (भावतैं) परिणामोथी (मर्यो) मरण पामीने (घोर) भयानक
(श्वभ्रसागरमें) नरकरूपी समुद्रमां (पर्यो) जई पड्यो.
१० ][ छ ढाळा

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भावार्थ आ जीवे आ तिर्यंच गतिमां हणावुं, बंधावुं
वगेरे घणां दुःखो सहन कर्यां जे करोडो जीभोथी पण कही शकाय
तेम नथी. अने अंते एवां अत्यंत माठां परिणामो (आर्तध्यान)थी
मर्यो के महामुश्केलीथी पार करी शकाय तेवा समुद्रसमान दुस्तर
नरकमां जई पहोंच्यो. ८.
नरकभूमि अने नदीनुं दुःख
तहां भूमि परसत दुख इसो, बिच्छू सहस डसे नहिं तिसो;
तहां राध-श्रोणितवाहिनी, कृमिकुलकलित देहदाहिनी. ९.
अन्वयार्थ (तहां) ए नरकमां (भूमि) जमीन (परसत)
स्पर्शवाथी (इसो) एवुं (दुख) दुःख [थाय छे के] (सहस)
हजारो (बिच्छू) वींछीओ (डसे) डंख मारे तोपण (नहिं तिसो)
एना जेवुं दुःख थतुं नथी. [वळी] (तहां) त्यां [नरकमां]
(राध-श्रोणितवाहिनी) लोही अने परु वहेवडावनारी [एक
वैतरणी नामनी नदी छे] जे (कृमिकुलकलित) नाना नाना क्षुद्र
कीडाओथी भरेली छे अने (देहदाहिनी) शरीरमां दाह उत्पन्न
करवावाळी छे.
पहेली ढाळ ][ ११

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भावार्थ ए नरकनी जमीननो स्पर्श मात्र करवाथी
नारकीओने एटलुं दुःख थाय छे के, हजारो वींछीओ एकी
साथे डंख मारे तोपण तेटलुं दुःख थतुं नथी. वळी ए नरकमां
परु, लोही अने नाना नाना कीडाओथी भरेली अने शरीरमां
दाह उत्पन्न करवावाळी एक वैतरणी नदी छे; जेमां
शांतिलाभनी इच्छाथी नारकी जीव प्रवेश करे छे पण त्यां तो
तेनी पीडा वधारे भयंकर थई पडे छे.
(जीवोने दुःख थवानुं मूळ कारण तो तेनी शरीर साथेनी
ममता अने एकत्वबुद्धि ज छे. जमीननो स्पर्श वगेरे तो मात्र
निमित्त-कारण छे.)
नरकनां सेमरवृक्ष, शरदी अने गरमीनां दुःख
सेमर तरु दलजुत असिपत्र, असि ज्यों देह विदारैं तत्र;
मेरु समान लोह गलि जाय, ऐसी शीत उष्णता थाय. १०.
अन्वयार्थ (तत्र) ते नरकमां (असिपत्र ज्यों)
तरवारनी धार माफक तीक्ष्ण (दलजुत) पांदडावाळा (सेमर तरु)
सेमरना झाड [छे, जे] (देह) शरीरने (असि ज्यों) तरवारनी
१२ ][ छ ढाळा

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माफक (विदारैं) फाडी नाखे छे. [अने] (तत्र) त्यां [ए नरकमां]
(ऐसी) एवा प्रकारनी (शीत) ठंडी (अने) (उष्णता) गरमी
(थाय) थाय छे [के] (मेरु समान) मेरु जेवा पर्वतनी बराबर
(लोह) लोढानो गोळो पण (गलि) गळी जई (जाय) शके छे.
भावार्थ ए नरकमां घणांय सेमरनां झाडो छे, तेना
पांदडां तरवारनी धार जेवां तीक्ष्ण छे. ज्यारे दुःखी नारकी छाया
मळवानी इच्छाथी ते झाड नीचे जाय छे, त्यारे ते झाडना
पांदडांओ तेनी उपर पडी, ते नारकीओना शरीरने चीरी नाखे
छे. अने ए नरकोमां एटली गरमी थाय छे के एक लाख
जोजननी ऊंचाईवाळा सुमेरु पर्वतनी बरोबर लोढानो पिंड पण
ओगळी जाय छे, तथा एटली ठंडी पडे छे के सुमेरु समान
लोढानो गोळो पण गळी जाय छे. जेवी रीते लोकोमां कहेवाय
मेरुसम लोहपिंडं, सीदं उण्हे विलम्मि पक्खितं
ण लहदि तलप्पदेशं, विलीयदे मयणखंडं वा ।।
अर्थ जेवी रीते गरमीमां मीण पीगळी जाय छे, (पाणीनी माफक
चालवा लागे छे) तेवी रीते सुमेरु बराबर लोढानो गोळो गरम बिलनी अंदर
फेंकवामां आवे तो वचमां ज ओगळवा मांडे छे.
मेरुसम लोहपिंडं, उण्हं सीदे विलम्मि पक्खितं
ण लहदि तलं पदेशं, विलीयदे लवणखण्डं वा ।।
(त्रिलोकप्रज्ञप्ति द्वितीय महाधिकार)
अने जेवी रीते ठंड-वरसादमां मीठुं ओगळी जाय छेपाणी थई जाय छे तेवी
रीते सुमेरु समान लोढानो गोळो ठंडा बिलोमां फेंकवामां आवे तो वचमां ज ओगळवा
लागे छे. पहेली बीजी त्रीजी अने चोथी नरकनी भूमिओ गरम छे. पांचमी नरकमां
उपरनी भूमि गरम तथा नीचे त्रीजो भाग ठंडी अने छठ्ठी तथा सातमीनी भूमि ठंडी छे.
पहेली ढाळ ][ १३

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छे के ठंडीथी हाथ ठुंठवाई गया. हीमथी झाड अथवा अनाज बळी
गयुं वगेरे; एटले के लोढानी अंदर एकदम उग्र ठंडीना कारणे
चीकणाई ओछी थवाथी तेनो स्कंध वीखराई जाय छे. १०.
नरकमां अन्य नारकीओ, असुरकुमार तथा
प्यासनां दुःखो
तिल-तिल करैं देहके खंड, असुर भिडावैं दुष्ट प्रचण्ड;
सिन्धुनीरतैं प्यास न जाय, तोपण एक न बूंद लहाय. ११.
अन्वयार्थ [ए नरकमां नारकी जीव एकबीजाना] (देहके)
शरीरना (तिल-तिल) तलना दाणा जेवडां (खंड) टुकडां (करैं) करी
नांखे छे. अने (प्रचंड) अत्यंत (दुष्ट) क्रूर (असुर) असुरकुमार
जातिना देव, [एकबीजा साथे] (भिडावैं) लडावे छे; [तथा एटली]
(प्यास) तरस [लागे छे के] (सिन्धुनीर तैं) समुद्रभरना पाणी
पीवाथी पण (न जाय) छीपी शकती नथी (तो पण) छतां (एक बूंद)
एक टीपुं पण (न लहाय) मळी शकतुं नथी.
भावार्थ ते नरकोमां नारकी एकबीजाने दुःख आप्यां
१४ ][ छ ढाळा

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करे छे, अर्थात् कूतरानी माफक हंमेशां अंदरोअंदर लडे छे अने
झघडा कर्या करे छे. ते एकबीजाना शरीरना टुकडे-टुकडा करी नांखे
छे छतां पण तेना शरीर पाछा मळी जवाथी
*पारानी माफक
फरीने जेवुं ने तेवुं थई जाय छे. संक्लिष्ट परिणामवाळा अम्ब
अने अम्बरीष वगेरे जातिना असुरकुमार देव पहेली, बीजी अने
त्रीजी नरक सुधी जईने त्यांना तीव्र दुःखी नारकीओने, पोताना
अवधिज्ञानथी वेर बतावीने अथवा क्रूरता अने कुतूहलथी
अंदरोअंदर लडावी मारे छे अने पोते आनंदित थाय छे. ते
नारकी जीवोने एटली बधी तरस लागे छे के जो मळे तो एक
महासागरनुं पाणी पण पी जाय तोपण तरस छीपी शकती नथी;
परंतु पीवाने पाणीनुं एक टीपुं पण मळतुं नथी. ११.
नरकनी भूख, नरकनुं आयु अने मनुष्यगति
प्राप्तिनुं वर्णन
तीन लोक को नाज जु खाय, मिटै न भूख कणा न लहाय;
ये दुख बहु सागर लौं सहे, करम-जोगतैं नरगति लहे. १२.
अन्वयार्थ [ए नरकोमां एटली भूख लागे छे के]
(तीन लोकको) त्रण लोकनुं (नाज) अनाज (जु खाय) खाई जाय
तोपण (भूख) भूख (न मिटै) मटी शके नहि, [परन्तु खावाने]
(कण) एक दाणो पण (न लहाय) मळतो नथी. (ये दुख) एवुं
दुःख (बहु सागर लौं) घणा सागरोपम काळ सुधी (सहै) सहन
*पारो एक धातुना रस जेवो होय छे. जमीन उपर फेंकवाथी अमुक
अंशे छूटो छूटो वींखराई जाय छे. फरी एकठो करी देवाथी पोते
स्वयं एक पिंड थई जाय छे.
पहेली ढाळ ][ १५

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करे छे, (करमजोगतैं) कोई विशेष शुभकर्मना योगथी (नरगति)
मनुष्यगति (लहे) पामे छे.
भावार्थ ए नरकोमां एटली तीव्र भूख लागे छे के जो
मळे तो एकसाथे त्रणे लोकनुं अनाज खाई जाय तो पण भूख
मटे नहि, छतां त्यां खावाने एक दाणो पण मळी शकतो नथी.
ए नरकोमां ए जीव घणां तीव्र दुःखो घणा समय (ओछामां
ओछा दस हजार वर्ष अने वधारेमां वधारे तेत्रीस सागरोपम
काळ) सुधी भोगवे छे. कोई शुभकर्मना उदयथी ए प्राणी
मनुष्यगतिने पामे छे. १२.
मनुष्यगतिमां गर्भवास अने प्रसवकाळनां दुःखो
जननी-उदर वस्यो नव मास, अंग सकुचतैं पायो त्रास;
निकसत जे दुख पाये घोर, तिनको कहत न आवे ओर. १३.
अन्वयार्थ [मनुष्यगतिमां पण आ जीव] (नव मास)
नव महिना सुधी (जननी) माताना (उदरमां) पेटमां (वस्यो)
रह्यो [त्यारे ते ठेकाणे] (अंग) शरीर (सकुचतैं) संकोचीने
१६ ][ छ ढाळा

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रहेवाथी (त्रास) दुःख (पायो) पाम्यो [अने] (निकसत)
नीकळती वखते (जे) जे (घोर) भयंकर (दुख) दुःख (पायो)
पाम्यो (तिनको) ते दुःखोने (कहत) कहेतां (ओर) अन्त
(न आवे) आवी शकतो नथी.
भावार्थ मनुष्यगतिमां पण आ जीव नव महिना सुधी
तो माताना पेटमां ज रह्यो, त्यां पण शरीर संकोचीने रहेवानुं
होवाथी घणुं दुःख पाम्यो, जेनुं वर्णन पण थई शकतुं नथी.
कोई कोई वखते माताना पेटमांथी नीकळती वखते, मातानुं
अथवा पुत्रनुं अथवा बन्नेनुं मरण पण थई जाय छे. १३.
मनुष्यगतिमां बाल्य, युवा, वृद्धावस्थानां दुःखो
बालपनेमें ज्ञान न लह्यो, तरुण समय तरुणी-रत रह्यो;
अर्धमृतकसम बूढापनों, कैसे रूप लखै आपनो. १४.
अन्वयार्थ [मनुष्यगतिमां जीव] (बालपनेमें) बाळपणामां
(ज्ञान) ज्ञान (न लह्यो) पाम्यो नहि [अने] (तरुण समय)
जुवानीमां (तरुणीरत) जुवान स्त्रीमां लीन (रह्यो) रह्यो [अने]
(बूढापनों) घडपण (अर्धमृतकसम) अधमूउं जेवुं [रह्युं; आवी
पहेली ढाळ ][ १७

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हालतमां] (कैसे) केवी रीते [जीव] (आपनो) पोतानुं (रूप)
स्वरूप (लखै) विचारे-देखे.
भावार्थ मनुष्यगतिमां पण आ जीव बाल्यावस्थामां
विशेष ज्ञान पण न पाम्यो, जुवानीमां ज्ञान तो पाम्यो पण
स्त्रीना मोह (विषयभोग)मां भूली गयो अने घडपणमां
इन्द्रियोनी शक्ति घटी गई अथवा मरणपर्यंत पहोंचे तेवो रोग
लागु पड्यो के जेथी अधमुआ जेवो पड्यो रह्यो. आवी हालतमां
आ प्राणी त्रणे अवस्थामां आत्मस्वरूपनुं दर्शन (पिछाण) न
करी शक्यो. १४.
देवगतिमां भवनत्रिकनुं दुःख
कभी अकामनिर्जरा करै, भवनत्रिकमें सुर-तन धरै;
विषय-चाह-दावानल दह्यो, मरत विलाप करत दुख सह्यो. १५.
अन्वयार्थ [आ जीवे] (कभी) कोई वखत (अकाम-
निर्जरा) अकामनिर्जरा (करै) करी [तो मर्या पछी] (भवनत्रिक)
भवनवासी व्यन्तर अने ज्योतिषीमां (सुर-तन) देवपर्याय (धरै)
धारण कर्या, [परंतु त्यां पण] (विषयचाह) पांचे इन्द्रियोना
१८ ][ छ ढाळा