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माया, लोभ ए दरेक प्रकारथी सेवन ३
१८००० भेद मैथुनकर्मना दोषरूप भेद छे. तेनो
अभाव ते शील; एने निर्मळ स्वभाव-शील कहे छे.
रहेवुं; निस्तरंग चैतन्यपणे शोभवुं.
रस स्वादत सुख ऊपजे, अनुभव याको नाम.
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रोकाई जाय छे अने शुद्धता थाय छे ते तप छे.
(अन्य बार प्रकार तो व्यवहार (उपचार) तपना भेद
छे.)
नय छे.
ते ज्ञेयनो जाणवावाळो ज रहे ए ज साचो परिषहजय
छे.
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पांच पापोनो सर्वथा त्याग. (हिंसा, जूठ, चोरी,
अब्रह्म अने परिग्रह
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परिग्रह, प्रमाण, प्रमाद, प्रतिक्रमण, बहिरंग तप, भावहिंसा,
अहिंसा, महाव्रत, महाव्रतो, रत्नत्रय, शुद्धात्मअनुभव, शुद्ध
उपयोग, शुक्लध्यान, समितिओ अने समिति वगेरेनां लक्षण
बतावो.
रत्नत्रय, शील, शेष गुण, समिति, साधुगुण अने सिद्धगुणना
भेद कहो.
बतावो.
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उपकरण अने ज्ञाननुं उपकरण वगेरेनां नाम बतावो.
कारण बतावो.
उत्पन्न थता गुणोनो विभाग, ग्रंथ
अग्निनी शांतिनो उपाय, शुद्ध आत्मा, शुद्ध उपयोगनो विचार
अने हालत, सकलचारित्र, सिद्धोनुं आयुष्य, निवासस्थान तथा
वखत अने स्वरूपाचरणचारित्र वगेरेनुं वर्णन करो.
भावना, मिथ्यात्व अने मोक्ष वगेरे विषयो उपर लेख लखो.
विधि अगर निषेध, दिगंबर जैन मुनिने घडियाळ, चटाई
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वगेरे बाबतोनो खुलासो करो.