Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Chhathi Dhalano Lakshan-sangrah; Antar-pradasharan; Chhathi Dhalani Prashnavali.

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छठ्ठी ढाळ ][ १९९
वरणीय अने संज्वलन ए चार प्रकारे क्रोध, मान,
माया, लोभ ए दरेक प्रकारथी सेवन ३
×××
५×४×२×१६=१७२८० भेद थया.
प्रथमना ७२० अने बीजा १७२८० भेदो मळी
१८००० भेद मैथुनकर्मना दोषरूप भेद छे. तेनो
अभाव ते शील; एने निर्मळ स्वभाव-शील कहे छे.
नयनिश्चय अने व्यवहार.
निक्षेपनाम, स्थापना, द्रव्य अने भावए चार छे.
प्रमाणप्रत्यक्ष अने परोक्ष.
छÕी ढाळनो लक्षण-संग्रह
अंतरंग तपशुभाशुभ इच्छाओना निरोधपूर्वक आत्मामां
निर्मळ ज्ञान-आनंदना अनुभवथी अखंडित प्रतापवंत
रहेवुं; निस्तरंग चैतन्यपणे शोभवुं.
अनुभवस्वसन्मुख थयेल ज्ञान, सुखनुं रसास्वादन.
वस्तु विचारत ध्यावतैं, मन पावे विश्राम;
रस स्वादत सुख ऊपजे, अनुभव याको नाम.
आवश्यकमुनिओए अवश्य करवा योग्य स्ववश शुद्ध
आचरण.
कायगुप्तिकाया तरफ उपयोग न जतां आत्मामां ज लीनता.
गुप्तिमन, वचन, काया तरफ उपयोगनी प्रवृत्तिने सारी

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रीते आत्मभानपूर्वक रोकवी अर्थात् आत्मामां ज
लीनता थवी ते गुप्ति छे.
तपस्वरूपविश्रांत, निस्तरंगपणे निज शुद्धतामां प्रतापवंत
होवुं-शोभवुं ते. तेमां जेटली शुभाशुभ इच्छाओ
रोकाई जाय छे अने शुद्धता थाय छे ते तप छे.
(अन्य बार प्रकार तो व्यवहार (उपचार) तपना भेद
छे.)
ध्यानसर्व विकल्पो छोडीने पोताना ज्ञानने लक्ष्यमां स्थिर
करवुं.
नयवस्तुना एक अंशने मुख्य करीने जाणे ते नय छे अने
ते उपयोगात्मक छे-सम्यक् श्रुतज्ञानप्रमाणनो अंश ते
नय छे.
निक्षेपनयज्ञान द्वारा बाधारहितपणे प्रसंगवशात् पदार्थमां
नामादिनी स्थापना करवी ते.
परिग्रहपरवस्तुमां ममताभाव (मोह अथवा ममत्व).
परिषहजयदुःखना कारणो मळतां दुःखी न थाय तथा
सुखना कारणो मळतां सुखी न थाय पण ज्ञाता तरीके
ते ज्ञेयनो जाणवावाळो ज रहे ए ज साचो परिषहजय
छे.
(मोक्षमार्ग प्र पृ. २३२)
प्रतिक्रमणमिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्रने
निरवशेषपणे छोडीने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्-

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चारित्रने (जीव) भावे छे, ते (जीव) प्रतिक्रमण छे.
(नियमसार गाथा-९१)
प्रमाणस्व-पर वस्तुनुं निश्चय करनार सम्यग्ज्ञान.
बहिरंग तपबीजा जोई शके एवा पर पदार्थोथी संबंध
राखवावाळो इच्छानिरोध.
मनोगुप्तिमन तरफ उपयोग न जतां आत्मामां ज लीनता.
महाव्रतनिश्चय रत्नत्रयपूर्वक त्रणे योग (मन, वचन,
काया) तथा करण-करावण-अनुमोदन सहित हिंसादि
पांच पापोनो सर्वथा त्याग. (हिंसा, जूठ, चोरी,
अब्रह्म अने परिग्रह
ए पांच पापनो सर्वथा
त्याग.)
रत्नत्रयनिश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र.
वचनगुप्तिबोलवानी इच्छा गोपववी अर्थात् आत्मामां
लीनता.
शुक्ल ध्यानअत्यंत निर्मळ, वीतरागता पूर्ण ध्यान.
शुद्ध उपयोगशुभाशुभ राग-द्वेषादिथी रहित आत्मानी
चारित्रपरिणति.
समितिप्रमाद रहित यत्नाचार सहित सम्यक् प्रवृत्ति.
स्वरूपाचरण चारित्रआत्मस्वरूपमां एकाग्रतापूर्वक रमणता-
लीनता.
छठ्ठी ढाळ ][ २०१

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अंतर-प्रदर्शन
(१) ‘नय’ तो ज्ञाता एटले के जाणनार छे, अने
‘निक्षेप’ ज्ञेय अर्थात् ज्ञानमां जाणवा योग्य छे.
(२) प्रमाण तो वस्तुना बधा भागने जाणे छे पण नय
वस्तुना एक भागने जाणे छे.
(३) शुभ उपयोग तो बंधनुं अथवा संसारनुं कारण छे
पण शुद्ध उपयोग तो निर्जरा-मोक्षनुं कारण छे.
छÕी ढाळनी प्रश्नावली
(१) अंतरंग तप, अनुभव, आवश्यक, गुप्ति, गुप्तिओ,
तप, द्रव्यहिंसा, अहिंसा, ध्यानस्थ मुनि, निश्चय आत्मचारित्र,
परिग्रह, प्रमाण, प्रमाद, प्रतिक्रमण, बहिरंग तप, भावहिंसा,
अहिंसा, महाव्रत, महाव्रतो, रत्नत्रय, शुद्धात्मअनुभव, शुद्ध
उपयोग, शुक्लध्यान, समितिओ अने समिति वगेरेनां लक्षण
बतावो.
(२) अघातिया, आवश्यक, उपयोग, कायगुप्ति, छेंतालीश
दोष, तप, धर्म परिग्रह, प्रमाण, मुनिक्रिया, महाव्रत,
रत्नत्रय, शील, शेष गुण, समिति, साधुगुण अने सिद्धगुणना
भेद कहो.
(३) नय अने निक्षेपमां, प्रमाण अने नयमां, ज्ञान
अने आत्मामां, शुभ उपयोग अने शुद्ध उपयोगमां तफावत
बतावो.
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(४) आठमी पृथ्वी, ग्रंथ, ग्रंथकार, ग्रंथ छंद, ग्रंथ
प्रकरण, सर्वोत्तम तप, सर्वोत्तम धर्म, संयमनुं उपकरण, शुचिनुं
उपकरण अने ज्ञाननुं उपकरण वगेरेनां नाम बतावो.
(५) ध्यानस्थ मुनि, सम्यग्ज्ञान अने सिद्धनुं सुख
वगेरेना द्रष्टांत बतावो.
(६) छ ढाळना नाम, पींछी वगेरेनुं अपरिग्रहपणुं,
रत्नत्रयना नाम, श्रावकने नग्नतानो अभाव वगेरेनां फक्त
कारण बतावो.
(७) अरिहंत अवस्थानो वखत, अंतिम उपदेश,
आत्मस्थिरता वखतनुं सुख, केशलोचनो वखत, कर्मना नाशथी
उत्पन्न थता गुणोनो विभाग, ग्रंथ
रचनानो काळ, जीवनी
नित्यता तथा अमूर्तिकपणुं, परिषहजयनुं फळ, रागरूपी
अग्निनी शांतिनो उपाय, शुद्ध आत्मा, शुद्ध उपयोगनो विचार
अने हालत, सकलचारित्र, सिद्धोनुं आयुष्य, निवासस्थान तथा
वखत अने स्वरूपाचरणचारित्र वगेरेनुं वर्णन करो.
(८) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र, देशचारित्र,
सकलचारित्र, चार गति, स्वरूपाचरण चारित्र, बार व्रत, बार
भावना, मिथ्यात्व अने मोक्ष वगेरे विषयो उपर लेख लखो.
(९) दिगम्बर जैन मुनिना भोजन, समता, विहार
नग्नताथी हानि-लाभ, दिगंबर जैन मुनिने रात्रिगमननो
विधि अगर निषेध, दिगंबर जैन मुनिने घडियाळ, चटाई
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(आसनियुं) के चश्मां वगेरे राखवानो विधि अगर निषेध
वगेरे बाबतोनो खुलासो करो.
(१०) अमुक शब्द, चरण अने छंदनो अर्थ अथवा
भावार्थ कहो; छठ्ठी ढाळनो सारांश बतावो.
इति कविवर पंडित दौलतराम विरचित छ ढाळानो
गुजराती अनुवाद
समाप्त
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