Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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निश्चयसम्यग्दर्शन अने आत्मानुं परद्रव्योथी भिन्नपणानुं यथार्थ
ज्ञान ते निश्चयसम्यग्ज्ञान छे. परद्रव्योनुं आलंबन छोडीने आत्म-
स्वरूपमां लीन थवुं ते निश्चय सम्यक्चारित्र छे. तथा साते तत्त्वोनुं
जेम छे तेम भेदरूप अटळ श्रद्धान करवुं ते व्यवहार सम्यग्दर्शन
कहेवाय छे. जोके सात तत्त्वोना भेदनी अटळ श्रद्धा शुभराग छे
तेथी ते खरेखर सम्यग्दर्शन नथी पण नीचली दशामां चोथा-
पांचमा-छठ्ठा गुणस्थानमां निश्चयसमकितनी साथे सहचर होवाथी
ते व्यवहारसम्यग्दर्शन कहेवाय छे.
८ मद, ३ मूढता, ६ अनायतन अने शंका वगेरे ८;
२५ सम्यक्त्वना दोष छे; तथा निःशंकित वगेरे ८, सम्यक्त्वना
अंग (गुण) छे, एने सारी रीते जाणीने दोषोनो त्याग अने
गुणोनुं ग्रहण करवुं जोईए.
जे विवेकी जीव निश्चयसम्यक्त्वने धारण करे छे तेने
कमजोरी छे त्यां सुधी पुरुषार्थनी मंदताना कारणे जोके जरा पण
संयम होतो नथी, तोपण ते इन्द्रादिक द्वारा पूजाय छे. त्रणलोक
अने त्रणकाळमां निश्चयसम्यक्त्व समान सुखकारी बीजी कोई
वस्तु नथी. बधां धर्मोनुं मूळ, सार अने मोक्षमार्गनुं पहेलुं
पगथियुं आ सम्यक्त्व ज छे, तेना विना ज्ञान अने चारित्र
सम्यक्पणुं पामतां नथी पण मिथ्या कहेवाय छे.
आयुष्यनो बंध थया पहेलां सम्यक्त्व धारण करनार जीव
मरण पाम्या पछी बीजा भवमां नारकी, ज्योतिषी, व्यंतर,
भवनवासी, नपुंसक, स्त्री, स्थावर, विकलत्रय, पशु, हीनांग,
नीचकुळवाळो, अल्पायु अने दरिद्री थतो नथी; मनुष्य अने
त्रीजी ढाळ ][ ९१