Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Antar-pradarshan.

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एकरूप भावने सामान्य कहे छे.
सिद्धःआठ गुणो सहित तथा आठ कर्मो अने शरीररहित
परमेष्ठी.
संवेगःसंसारथी भय थवो अने धर्म तथा धर्मना फळमां परम
उत्साह थवो, तथा साधर्मी अने पंचपरमेष्ठीमां प्रीति,
तेने पण संवेग कहे छे.
निर्वेदःसंसार, शरीर अने भोगमां सम्यक्प्रकारे उदासीनपणुं
अर्थात् वैराग्य.
अंतर-प्रदर्शन
१. अनायतनमां तो कुदेव वगेरेनी प्रशंसा करवामां आवे छे; पण
मूढतामां तो तेमनी सेवा, पूजा अने विनय करवामां आवे छे.
२. माताना वंशने जाति कहेवामां आवे छे अने पिताना वंशने
कुळ कहेवाय छे.
३. धर्मद्रव्य तो छ द्रव्यमानुं एक द्रव्य छे, अने धर्म ते वस्तुनो
स्वभाव अथवा गुण छे.
४. निश्चयनय वस्तुना असली स्वरूपने बतावे छे. व्यवहारनय
स्वद्रव्य-परद्रव्य वा तेना भावोने वा कारण-कार्यादिकने
कोईना कोईमां मेळवी निरूपण करे छे. माटे एवा ज श्रद्धानथी
मिथ्यात्व छे तेथी तेनो त्याग करवो.
(मोक्षमार्ग प्रकाशक गुजराती पा. २५५)
५. निकल परमात्मा आठे कर्मोथी रहित छे अने सकल परमात्माने
चार अघाति कर्मो होय छे.
९६ ][ छ ढाळा