Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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जीवनो (न सँहारै) घात न करवो [ते अहिंसा-अणुव्रत कहेवाय
छे]; (पर-वधकार) बीजाने दुःखदायक, (कठोर) कठोर [अने]
(निंद्य) निंदवा योग्य (वचन) वचन (नहि उचारै) न बोलवां
ते [सत्य-अणुव्रत कहेवाय छे.]
भावार्थसम्यग्ज्ञान प्राप्त करी सम्यक्चारित्र प्रगट करवुं
जोईए. ते सम्यक्चारित्रना बे भेद छे(१) एकदेश (अणु, देश,
स्थूळ) चारित्र अने (२) सर्वदेश (सकल, महा, सूक्ष्म) चारित्र,
तेमां सकलचारित्रनुं पालन मुनिराज करे छे अने देशचारित्रनुं
पालन श्रावक करे छे. आ चोथी ढाळमां देशचारित्रनुं वर्णन
करवामां आव्युं छे. सकलचारित्रनुं वर्णन छठ्ठी ढाळमां आवशे.
त्रस जीवोनी संकल्पी हिंसानो सर्वथा त्याग करी निष्प्रयोजन
स्थावर जीवोनो घात न करवो ते
*अहिंसा-अणुव्रत छे. बीजाना
* नोंधः(१) आ अहिंसा-अणुव्रतनो धारक जीव ‘आ जीव हणवा
योग्य छे, हुं आ जीवने मारुं’ ए प्रमाणे इरादापूर्वक कोई त्रस
जीवनी संकल्पी हिंसा करतो नथी. परंतु आ व्रतनो धारक आरंभी,
उद्योगिनी अने विरोधिनी हिंसानो त्यागी होतो नथी.
(२) प्रमाद अने कषायमां जोडावाथी ज्यां प्राणघात करवामां आवे छे
त्यां ज हिंसानो दोष लागे छे; ज्यां तेवुं कारण नथी त्यां प्राणघात
होवा छतां पण हिंसानो दोष लागतो नथी. जेम प्रमाद रहित
मुनि गमन करे छे; वैद-डॉकटर रोगीनो करुणाबुद्धिथी उपचार करे
छे; त्यां सामे निमित्तमां प्राणघात थतां हिंसानो दोष नथी.
(३) निश्चयसम्यग्दर्शन-ज्ञान पूर्वक प्रथमना बे कषायोनो अभाव थयो
होय ते जीवने साचा अणुव्रत होय छे, निश्चयसम्यग्दर्शन न होय
तेना व्रतने सर्वज्ञदेवे बाळव्रत (अज्ञानव्रत) कहेल छे.
११६ ][ छ ढाळा